अजवाइन-
अजवाइन (levage)छोटी-बड़ी तथा जंगली-इस प्रकार कई प्रजाति की होती है|यह संक्षेप मे इसका परिचय तथा औषधीय उपयोग दिया जा रहा है|
अजवाइन भारत वर्ष के लगभग हर प्रांत मे पैदा की जाती है|अजवाइन के दानों मे एक उड़नशील सुगंधित तेल होता है|इसका मुख्य घटक थाइमाल 35-60% है तथा कुछ कर्वाक्रोल (Carvacrol) रहता है|मानक अजवाइन तेल मे 40%से कम थाइमाल नहीं होन चाहिए|तेल को ठंढा करने पर थाइमाल जम जाता है|जिसे अजवाइन का फूल या सत अजवाइन कहते है|
1. गुण-धर्म-
अजवाइन लघु, रुक्ष,तीक्ष्ण,कटु,तिक्त रसयुक्त,विपाक मे कटु और उष्ण वीर्य है| यह पाचक,रुचिकारक,परिपाक मे लघु, अग्निदिपक,पितवर्धक तथा शूलनाशक है| यह वात तथा कृमिनाशक है| तीक्ष्ण उष्ण होने से यह कफ-वातशामक और पितवर्धक है|
2. इसका औषधीय उपयोग-
- यह कफ, वातविकारों मे उपयोग किया जाता है|
- अजवाइन का लेप या उसके तेल का अभयंग शोथ तथा वेदनयुक्त विकारों मे लाभ करता है|
- चर्मरोगों या बिच्छू आदि के दंश मे इसका प्रयोग किया जाता है|
- सत अजवाइन को जल मे मिलाकर उससे घाव साफ किया जाता है|
- आध्मान होने पर पेटपर अजवाइन लेप करने या उसकी पोटली सेकने से लाभ होता है|
- इसकी पुल्टिस बनाकर उदारशूल,आमवात तथा संधिशुल मे सेकने से लाभ होता है|
- विषूचिका मे हाथ -पैर तथा श्वास-कास मे छाती को सेकने से लाभ होता है|
- इसके पत्तों का रस कृमिओ को मारने मे काम आता है|
- इसके पत्तों को पीसकर कीड़ों के काटे हुए स्थानों पर लगाया जाता है|
- सात- अजवाइन का उपयोग अन्नगत अंकुश, कृमि तथा अन्य जन्तुओ की वृद्धि को रोकने के लिए किया जाता है|
- अजवाइन के प्रयोग से जमा हुआ बलगम आसानी से निकलता है | कफ नष्ट होता है, कफ़की दुर्गंध नष्ट होती है और तदगत जीवाणुओ की वृद्धि रुकती है|श्वास का वेग भी कम हो जाता है|
- उदरशूल ,आध्मान आदि विकारों मे अजवाइन, सेंध नमक,सोंचर नमक ,यवाक्षार हिंग और आवले के चूर्ण को आधे एक माशा शहद के साथ प्रयोग करने से लाभ होता है|
- बच्चों के रोगों तथा हैजे मे अजवाइन का अर्क उपयोगी है|
- अजवाइन ,चिंता,सेंध नमक,सोंठ, कालीमिर्च समान भाग मे लेकर चूर्ण बनाकर खट्टे-मीठे के साथ सेवन करने से बवासीर, पीलिया तथा मंदाग्नि दूर हो जाती है|
- अजवाइन सत् ,पिपरमिंट,सत् कपुरकों मिलाकर विषूचिका(हैजा) -के प्रारंभ मे 3-4 बूँद बातासे मे मिलाकर देने से दस्त रुक जाता है|
- अजवाइन वैसे ही एक चम्मच फाँकने से पाचनक्रिया ठीक रहती है|
- भोजन करने के बाद यही वायु बनने की शिकायत हो , पेट मे भारीपन या गुड़गुड़ाहट प्रतीत हो अथवा उलटी -सीधी डकारे मालूम पड़ती हो तो स्वच्छ धुली-सुखी अजवाइन तीन माशे और खाने की सोडा 2 माशे की फँकी लेकर 2-4 घूंट गर्म पानी पिया करे|दोनों समय भोजन के बाद ऐसा करने से लाभ होगा|
- अजवाइन को अछि तरह दधो -सूखा ले| सुख जाने पर कांच अथवा चीनी के बर्तन मे उसे डालकर उपार्टक नींबू का रस भर दे तथा बर्तन को धूप मे रख से जब नींबू का रस सुख जाए तब और नींबू रस डाले , इस प्रकार सात बार करे| प्रातः- सायं गर्म पानी के साथ सेवन करने पर सब प्रकार के पेट के रोगों को दूर करने तथा पुरुषत्व की वृद्धि करने मे यह अत्यंत उपयोगी है|
- अजवाइन मे एक प्रकार का उड़नशील सुगंधयुक्त तेल होता है, जिसे सत्व अजवाइन या जवहन का फल कहते है|इसे 1 तोला पिपरमेंट, 2 तोला देशी कपूर के साथ एक शीशी मे डालकर बंद कर दे कुछ समय मे तीनों पिघल कर पानी जैसे हो जाएगा| यह सब प्रकार की पीड़ा , दनपीडा , उदारपीडा , कर्णपीड़ा , छाती और कमर पीड़ा , मस्तिष्क पीड़ा मे तुरंत लाभ पहुचाने वाली औषधि है|इसे फुरेरी से लगाइए , कुछ बुँदे पिलाए अथवा 4-6 बुँदे बातासे या चीनी के साथ ले| हैजा,दस्त, जी-मिचलाना,उलटी,श्वास, खांसी तथा विषैले कीड़ों-बिच्छू, ततैया आदि के काटने पर पर इसका निः संकोच प्रयोग किया जा सकता है|
- सुखी खांसी पर थोड़ी अजवाइन को सादे देशी पान मे रखकर उसका रस चूसना अत्यंत लाभदायक होता है|
- छोटे बच्चों को प्रायः हरे- पीले दस्त अथवा दूध उलट देने की शिकायत रहती है| इस प्रकार की बीमारी मे स्वच्छ अजवाइन महीन चूर्ण 2-4 रति दिन मे 3/4 बार प्रयोग करने से यह व्याधि नष्ट हो जाती है तथा बच्चा जल्दी ही स्वास्थ हो जाता है|
- अफोरे के रोग मे 4 माशा अजवाइन 1 माशा काला नमक के साथ गर्म पानी से देना हितकारी होता है|
- दाद, खाज, कृमि वाले घाव पर अजवाइन का उबला हुआ जल प्रयोग करने से रोग से शीघ्र ही मुक्ति मिल जाती है|
- अजवाइन को स्वच्छ कर चूर्ण बनाए , इसे नसवार की तरह सूंघने से जुकाम, सिर की पीड़ा, नासिका मे कफ का रुक जाना आदि दोष दूर हो जाते है|तथा मस्तिष्क के कृमि भी नष्ट हो जाता है|
- अजवाइन को जलाकर उसका कपड़छान चूर्ण करे इस चूर्ण को जस्ते की सिलाई आँख मे फूल हो जाने के बाद सुबह-सायं डाले तो 9 सप्ताह के प्रयोग से फूल मिटने लगता है|
- अजवाइन को जलाकर बनाए गए चूर्ण को यदि उसमे थोड़ा -सा सेंध नमक मिलाकर मंजन किया जाय तो दांत के लिए हितकर होता है|
- महिलाओ मे मासिक-अवरोध होने पर अजवाइन को पुराने गुड़ और जल मे पकाकर सुबह शाम पीने से गर्भाशय का मल साफ होता है|यह क्वाथ तब तक पिना चाहिए जब तक आर्तव साफ न आने लगे|
3. जंगली अजवाइन( Wild Thyme)-
यह हिमालय के गर्म प्रदेशों मे कश्मीर से कुमाऊ एवं ईरान तक होती है| इसके दाने बारीक और चिकने होते है|
यह उतेजक, कृमिनाशक, शूलनाशक, आंतों के लिए पौष्टिक तथा अग्निवर्धक है|
- यह उष्ण सड़न को दूर करनेवाली होती है|
- यह मूत्रजनन, उतेजक एवं आँखों के लिए हितकारी है|
- श्वास एवं कफहर, ग्राही, कृमिघ्न, वर्णशोधक और वर्णरोपक है|
- सड़न को दूर करने मे इसका बहुत योगदान रहता है|
- अजीर्ण, अग्निमान्ध मे सेबद्ध नमक के साथ प्रयोग होता है|
- इसके प्रयोग से उदारशूल दूर होता है|
- यह चर्म रोग , दाद, खाज मे बहुत लाभकारी है|
- आग से जले स्थान पर इसके रस को घी के साथ लगाने से लाभ होता है|
- इसकी धूप से वायु मण्डल शुद्ध होता है|
4. अजमोदा(बड़ी अजवाइन) Celery Fruit-
इसके दाने समान्य अजवाइन से थोड़े से बड़े होते है|इसलिए इसे बड़ी अजवाइन कहते है|
गुणधर्म– यह लघु, रुक्ष, तीक्ष्ण, कटु,तिक्त,रसयुक्त, विपाक मे कटु और उष्ण वीर्य है|
- इसका प्रयोग वातरक्त-कृमि दूर करने, मूत्राशय के रोग और नष्टार्तव मे किया जाता है|
- श्वास, पथरी, यकृत- प्लीहाविकार आदि मे इसका उपयोग किया जाता है|
- प्रसव के बाद इसका प्रयोग बल बढ़ाता है, स्तन्य की वृद्धि होती है, गर्भाशय का संशोधन होता है|तथा वायु के उपद्रव्य शांत होते है|
- डेढ़ से 3 मासे अजमोदा का चूर्ण , 1 तोला मूली के पत्ते के रस के साथ 4 रती यवक्षार मिलाकर पीने से पथरी गलकर निकाल जाती है|यह प्रयोग सुबह सायं नियमित करना चाहिए|
- बालकों को गुदा मे कृमि हो जाने पर अजमोदा को आग मे डालकर धुआ देना चाहिए|
- यही भोजन के बाद हिचकी आती है तो अजमोदा के दाने मुह मे रखने से हिचकी बंद हो जाती है|
- यदि मूत्राशय मे वायु का प्रकोप हो गया हो तो अजमोद और नमक को साफ कपड़े मे बाँध कर इस पोटली से सेंक करना चाहिए, इससे वायु नष्ट हो जाती है|
- पतले दस्त आने पर अजमोदा ,सोंठ,छाय का फूल , मोचरस समान मात्रा मे लेकर चूर्ण बनाए| इस चूर्ण को 3-6 मासे की दाने की मात्रा मे देना चाहिए|
5. पारसीक(खुरसानी) यवानी Herbane -
खुरासान, यवन आदि देशों मे बहुताय से होने के कारण इसे खुरसानी या यवानी आदि नामों से कहा जाता है|भारत और यूरोप मे भी यह पाई जाती है|
रोगों मे प्रयोग-
- इसका प्रयोग कफ तथा वातजन्य विकारों मे किया जाता है|
- यह वेदनाहर , और निंद्राहर है, इसके प्रयोग से कब्ज नहीं होती|
- दांत के कोटरों मे इसके बीज को पीसकर रखने से दंतशुल दूर होता है|
- इसको अंगारों पर जलाकर धुए को मुह मे जाने देने से दाँत शुल ठीक होता है|
- दाँत की दर्द तथा मसूड़ों से खून आने पर इसके उबाले जल से कुल्ला करना चाहिए|
- छाती की पीड़ा मे इसे पीसकर लगाना चाहिए|
- 1 पाव खुरासनी अजवाइन को 1 पाव तिल के तेल मे धीमी आच पर पकाकर तेल को छान ले , यह तेल थोड़ा गर्म कर कान मे डालने से कर्ण पीड़ा , मलने से कमर की दर्द आदि नष्ट हो जाती है|