गठिया(अर्थराइटिस)क्या है: what is arthritis in hindi -
उम्र बढ़ने के साथ ही शरीर का ऊतक कमजोर पड़ने लगते है| शरीर के विभिन्न जोड़ घिसने लगते है|ऐसे स्तिथि मे जोड़ों मे दर्द रहने लगता है, भोजन के प्रति अरुचि होती है, प्यास अधिक लगती है, हाथ-पैर, जांघ , एडी तथा कमर आदि के जोड़ों मे दर्द होने लगता है, घुटनों मे सूजन भी हो जाता है|रोग बढ़ जानेपर चलते- फिरते समय भयंकर कष्ट होता है|
बढ़ती उम्र के कारण जो गठिया होता है उसे आस्टियो अर्थराइटिस कहते है, जोड़ों मे सूजन या प्रदाह के कारण उत्पन्न गठिया को रियूमेटायड अर्थराइटिस कहते है|जोड़ों मे यूरिक अम्ल के जमा होने के कारण उत्पन्न गठिया को गाउटी अर्थराइटिस कहते है|हीमोफीलिया मे रक्तसत्राव से जोड़ों मे खून के थक्के जम जाने के कारण उत्पन्न गठिया को एक्यूट(गंभीर) अर्थराइटिस कहते है|क्षय रोग और आमवात मे भी हड्डी के जोड़ प्रभावित होते है|
गठिया (अर्थराइटिस)के प्रकार: type of arthritis in hindi-
गठिया कितने प्रकार के होते है-
गठिया मुख्यतः 9 प्रकार के होते है-
- एंटीलोसिंग स्पान्डीलाइटीस
- गाउट
- जुवेनाइल इडियोपथिक अर्थराइटिस(अज्ञात कारण से बच्चों को गठिया)
- आस्टियो अर्थराइटिस (अस्थिसंधिशोथ )
- सोरियाटिक अर्थराइटिस
- रिएक्टिव अर्थराइटिस
- रुमेटाइड अर्थराइटिस
- सेप्टिक अर्थराइटिस
- थंब अर्थराइटिस (अंगूठे मे गठिया)
गठिया(अर्थराइटिस) के कारण-
अर्थराइटिस के होने के कई कारण हो सकते हैं। चोट लगने से, जोड़ों में इन्फेक्शन होने से और कुछ अन्य कारणों से अर्थराइटिस देखा जा सकता है।
गठिया होने के कुछ मुख्य कारण निम्नलिखित हैं:
जोड़ों का घिसना – उपास्थि (नरम हड्डी) जो आपके जोड़ों में हड्डियों के सिरों को कुशन करती है, धीरे-धीरे बिगड़ती जाती है। आखिरकार, अगर उपास्थि पूरी तरह से खराब हो जाती है, तो हड्डी हड्डी पर रगड़ जाएगी।
ऑटोइम्यून डिसऑर्डर – जब प्रतिरक्षा प्रणाली खुद ही शरीर के ऊतकों पर हमला करके उन्हें नष्ट करने लगती है तो जोड़ों में दर्द रहने लगता है।
मांसपेशी में कमजोरी – पोषक तत्वों या अन्य कारणों से मांसपेशी में कमजोरी आने पर जोड़ों में भी दर्द हो सकता है जो आर्थराइटिस का मुख्य लक्षण है।
गठिया(अर्थराइटिस) के जोखिम कारण-
कुछ व्यवहार और विशेषताएं, जिन्हें जोखिम कारक कहा जाता है, एक वयस्क के कुछ प्रकार के गठिया होने या इसे बदतर बनाने की संभावना को बढ़ाते हैं। आप कुछ जोखिम कारकों को नियंत्रित कर सकते हैं, और अन्य आप नहीं कर सकते।
आप जिन जोखिम कारकों को नियंत्रित कर सकते हैं उन्हें बदलकर आप गठिया होने या गठिया(अर्थराइटिस) को बदतर बनाने के अपने जोखिम को कम कर सकते हैं।
- मोटापे के कारण – मोटापे की वजह से भी शरीर के जोड़ कमजोर हो जाते हैं जिसकी वजह से वो शरीर के वजन को संभाल नहीं पाते। ऐसी स्थिति अर्थराइटिस रोग की शुरुआत कर सकती है।
- चोट लगना – किसी दुर्घटना या खेल – कूद में आई चोट के कारण आर्थराइटिस विकसित होने की संभावना रहती है।
- अनुवांशिक – पीढ़ियों से आर्थराइटिस की समस्या रही है तो आने वाली पीढ़ियों में भी यह समस्या देखी जा सकती है।
- उम्र – अधिक उम्र होने पर शरीर में कैल्शियम की कमी होने लगती है जिससे हड्डियां कमजकर होने लगती हैं और जोड़ों में दर्द होता है। वृद्धावस्था ( 50 साल की उम्र या इससे अधिक) में गठिया होने की संभावना अधिक रहती है।
गठिया(अर्थराइटिस) के लक्षण-
जोड़ों में दर्द होने से गठिया रोग की पहचान नही की जा सकती है। जोड़ों में सिर्फ दर्द होना आर्थ्राल्जिया का संकेत होता है लेकिन जोड़ों में सूजन के कारण दर्द रहना अर्थराइटिस का लक्षण होता है। अर्थराइटिस के कुछ मुख्य लक्षण निम्नलिखित हैं:
- एक या एक से अधिक जोड़ों में दर्द होना
- जोड़ों में दर्द के साथ-साथ लालिमा, गर्मी और सूजन होना
- जोड़ों में जलन रहना
- हाथों और पैरों को हिलाते समय जोड़ों में हल्का या तेज दर्द होना
- वजन का घटना
- घुटनों को मोड़ने में असहनीय दर्द होना
- संयुक्त गति की कमी
गठिया(अर्थराइटिस) का घरेलू उपचार-
इसका घरेलू उपचार इस प्रकार है-
- सुबह एक पूथिया लहसुन आधा किलो दूध मे डालकर उबाले| दूध के आधा पाव रह जानेपर उसे छानकर पीले| दूसरे दिन दो एकपूथिया लहसुन , तीसरे दिन 3 एकपूथिया लहसुन , इसी प्रकार 11 वे दिन 11 एकपूथिया लहसुन दूध मे उबाले और उसे छानकर पी जाए|12 दिन से लहसुन के संख्या एक एक करके कम करते जाए|
- पुनर्नवा की जड़ 10 gm 100 gm पानी मे उबाले और 25 gm शेष रहने पर छानकर पी ले|
- योगराज गुग्गुल सुबह-शाम दो- दो गोली गर्म पानी से ले|
- अश्वगंधा, चोपचिनी , पीपला मूल , सोंठ- इसका समान मात्रा मे चूर्ण सुबह-शाम दूध के साथ पिए|
- जोड़ों पर सेंक करके रेडी के पत्तों पर घी लगाकर बांधे|
- रात को सोते समय 10 gm मेथी का दाना निगल कर पानी पी ले|
- दर्द के स्थान पर नारायण तेल की मालिश करे|
पथ्य( क्या-क्या खाए)-
गेंहू, बाजरे की रोटी, मेथी, चौलाई, करैला, टिंडा, सेब, पपीता, अंगूर, खजूर, लहसुन आदि वस्तुओ का सेवन हितकर है|
अपथ्य( क्या-क्या न खाए न करे )-
चावल,आलू,गोभी,मूली,सें,चना,उरद दाल,केला,संतरा,नींबू, अमरूद ,टमाटर, दही तथा समस्त वायुकारक पदार्थ, दीवाशयन, अधिक परिश्रम इत्यादि रोगों को बढ़ाते है|