Aarogya Anka

आयुर्वेद दुनिया का प्राचीनतम चिकित्सा प्रणाली है Ιऐसा माना जाता है की बाद मे विकसित हुई अन्य चिकित्सा पद्धतियों मे इसी से प्रेरणा ली गई है Ιकिसी भी बीमारी को जड़ से खत्म करने के खासियत के कारण आज अधिकांश लोग आयुर्वेद के तरफ जा रहे हैΙइस लेख मे हम आयुर्वेद चिकित्सा से जुड़ी हर एक रोग और उसके इलाज के बारे मे बताएंगे Ιआयुर्वेद चिकित्सा के साथ सभी प्रकार के जड़ी -बूटी के बारे मे तथा आयुर्वेद के 8 प्रकारों से हर तरह के रोगों के इलाज के बारे मे बताया गया हैΙ सभी पोस्टों को पढे ओर जानकारी अवश्य ले ताकि आप भी अपना जीवन आरोग्य के साथ healthy बना सके| thanks . 

High blood pressure(उच्च रक्तचाप)- का आयुर्वेदिक उपचार

आयुर्वेद-चिकित्सा-प्रणालीमें ‘(high blood pressure )उच्च रक्तचाप’ नामका कोई रोग नहीं है-यह मानना सर्वथा भूल है। इसका वर्णन आयुर्वेदशास्त्रोंमें वातरोगोंके अन्तर्गत आता है। इसका आयुर्वेदिक नाम ‘शिरागत वात’ है। रक्तवाहिनियों तथा धमनियोंपर रक्तका अधिक दवाव पड़ना और उनका कठोर हो जाना ही ‘शिरागत वात’ है। शिरा और कोशिकाओंकी दीवारोंपर भी रक्तके अधिक दवावके कारण high blood pressure होता है। 

यह दो प्रकारका होता है- 

1. उच्च रक्तचाप या शिरागत वात।

2.  न्यून रक्तचाप (low blood pressure)

यहाँ पर केवल ‘high blood pressure’ पर ही विचार किया जा रहा है।

सम्प्राप्ति-

मनुष्यका हृदय लगभग सात तोला रक्त एक बारके संकोचनके समय धमनीमें फेंकता है। इससे पहले भी धमनीमें रक्त पूर्णरूपसे भरा रहता है। धमनीमें अतिरिक्त रक्तके फेंके जानेसे धमनियोंमें दबाव पड़ता है और उनकी दीवारें फैल जाती हैं। यह धमनियोंकी संकुचनशीलताके कारण सम्भव हो सकता है। इस ओर विशेष ध्यान केवल आयुर्वेदमें, ही दिया गया है।

दूसरा परिणाम रक्तके कारण धमनियोंमें एक लहर पैदा होती है, जो प्रारम्भमें प्रबल होती है और धीरे-धीरे कोशिकाओंमें पहुँचनेसे पहले अदृश्य हो जाती है। धमनी जितनी कठोर होगी, लहर उतनी ही तीव्र गतिसे चलेगी। जितनी संकुचनशीलता होगी, उतनी ही धीमी गतिसे चलेगी।

उच्च रक्तचाप (high blood pressure (B.P)

symtomps of high blood pressure(B.P.) के लक्षण-

1.  रोगीके सिरमें, विशेषकर सिरके पीछेकी ओर कनपटियों अर्थात् कानके पीछेके भागमें दर्द होता है। यह सिरदर्द कभी कम अथवा कभी अधिक होता है।

2.  रोगीको सुबह और शामको चक्कर आने लगता है।

3. हृदयकी गति (चाल) अधिक हो जाती है। हृदयप्रदेशपर दर्द भी महसूस होता है। यह कभी भी हो सकता है।

4.  रोगीका कार्य करनेमें मन नहीं लगता है। वह स्वभावसे चिड़चिड़ा हो जाता है। थोड़ा-सा कार्य करनेपर भी उसे थकान आ जाती है।

5.  रोगीकी स्मरणशक्ति धीरे-धीरे कम होने लगती है|

6.  रोगीको निद्रा कम आती है और आती भी है ,तो टूट-टूटकर आती है।

7. मन्दाग्नि हो जाती है अर्थात् भूख कम लगने लगती है और खानेमें अरुचि होने लगती है।

8.  पेशाब की मात्रा कम होने लगती है। जाँच करवानेपर पता चलता है कि पेशाबमें शक्कर अलब्यूमन अथवा यूरिक एसिड बढ़ गया है।

9. उच्च रक्तचाप होनेपर नाक और शरीरके अन्य अङ्गोंसे ‘रक्तस्राव’ होने लगता है।

10.   मल आदिका अनियमित त्याग और उसमें बदबू अधिक आती है।

 

उच्च रक्तचापके सामान्य लक्षणोंमें सिरका भारी होना, सिरदर्द, याददाश्त कमजोर होना, चक्कर आना, कानोंमें घंटियाँ-सी बजना, श्रम करनेपर थकानका अनुभव होना, चिड़चिड़ापन, हाँफनी चढ़ना, दिलकी धड़कन बढ़ जाना, छातीमें पीडा होना और पैरोंमें सूजन आना आदि प्रमुख हैं। उच्च रक्तचापके कारण सिरदर्द अधिकतर सबेरेके समय और सिरके पिछले भागमें होता है। इसके अलावा किसी-किसी रोगीकी नाकसे रक्तस्राव भी होने लगता है।

जितना अधिक रक्तचाप होगा उतना ही अधिक रोगीको खतरा होगा और रोगीका जीवन उतना ही छोटा होगा। पैंतीस वर्षकी अवस्थामें जो आदमी सामान्यतया स्वस्थ है लेकिन उसका रक्तचाप 130/90 है तो उसकी उम्र लगभग चार वर्ष कम हो जाती है। यदि किसीका रक्तचाप 140/95 रहता है तो उसकी उम्र लगभग नौ वर्ष कम हो जाती है। जिसका रक्तचाप 35 वर्षकी अवस्थामें 150/100 रहता है, उसका जीवनकाल सोलह वर्ष कम हो जाता है। यदि इलाज एवं परहेजसे उच्च रक्तचापपर काबू पा लिया जाता है तो इससे होनेवाले खतरोंसे बचा जा सकता है।

उच्च रक्तचापसे सर्वाधिक हानि हृदयको होती है। उच्च रक्तचापके कारण हृदय फेल हो सकता है और दिलका दौरा भी पड़ सकता है।

उच्च रक्तचापके कारण दिमागकी नस फट सकती है और मस्तिष्कमें रक्तस्राव हो सकता है। जिसे अंग्रेजीमें ‘स्ट्रोक’ कहते हैं। इसके कारण मरीजके आधे शरीरको लकवा मार सकता है, वह बेहोश हो सकता है।

यदि उच्च रक्तचापका इलाज नहीं कराया जाय तो गुर्दे खराब हो सकते हैं। इस रोगके कारण आँखके पर्देकी रक्त-धमनियोंमें स्राव हो सकता है और रोगीकी आँखकी रोशनी जा सकती है।

ज्यों-ज्यों अवस्था बढ़ती है मनुष्यका रक्तचाप भी बढ़ता है। सामान्य रूपसे यह रक्तचाप नवजात शिशुमें लगभग 65/40, बच्चोंमें 100/60 तथा युवावस्थामें 120/80 होता है।

***मोटापे तथा उच्च रक्तचापमें गहरा सम्बन्ध है। मानसिक श्रम करनेवालोंको उच्च रक्तचापका खतरा अधिक होता है, किंतु शारीरिक श्रम करनेसे वजन एवं रक्तचाप दोनों कम हो जाते हैं।

आयुर्वेद के दृष्टि से high blood pressure के कारण-

1.  इसका मूल कारण शरीरमें ‘वात’ की अधिकता है। इससे धमनियाँ कठोर हो जाती हैं।

2.  यह मनुष्यके अनियमित दिनचर्याके कारण हो सकता है। जैसे- समयपर न उठना, समयपर मल-त्याग न करना, व्यायाम न करना, शाकाहारी भोजन न करना, समयपर विश्राम न करना, अनावश्यक परिश्रम करना और समयपर न सोना।

3.  स्त्रियोंमें मासिक धर्म बंद होनेके समय अनियमितताका होना।

4.  अधिक शोक, मानसिक क्षोभ, चिन्ता एवं क्रोध होनेसे भी रक्तचाप बढ़ सकता है।

high blood pressure रोग का निर्णय-

आयुर्वेद-चिकित्सा पद्धतिके अनुसार इस रोगविज्ञान हेतु शक्षिणी नाडीके विषयमें विशेष ज्ञान होना अनिवार्य है। इसमें निम्नलिखित तीन बातोंका समावेश है-

1. नाडी-स्पन्दनकी संख्याका माप।

2.  स्पन्दनकी तालबद्धताका ज्ञान।

3.  नाडीकी संकोचनक्षमता।

आज तो प्रायः अधिकांश परिवारोंमें स्त्री एवं पुरुषोंमें उच्च रक्तचाप-रोग देखा जाता है। यदि यह शरीरमें एक बार प्रवेश कर जाता है तो इससे स्थायी रूपाने पीछा छुड़ाना कठिन हो जाता है। इसलिये एलोपैथी चिकित्सा पद्धतिमें यह असाध्य रोगोंकी श्रेणीमें आता है और इसका इलाज रक्तचाप बढ़ जानेपर केवल लक्षणोंको दूर करनेकी ओर ही होता है, जैसे रखे। अनिद्राको दूर करना आदि।

इसके मूल कारण

1. धमनियोंकी कठोरताको दूर करना और उनमें पुनः संकुचनशीलता लाना,

 2.  हृदयकी गति एवं स्पन्दनकी तालमें एक-बद्धता लाना – यह केवल आयुर्वेद द्वारा ही सम्भव हो पाया है।

high blood pressure(उच्च रक्तचाप)

आयुर्वेदिक चिकित्सा-

आयुर्वेद-चिकित्साके अनुसार ‘वात‘, ‘कफ‘ और ‘पित्त‘ का सम होना ही स्वस्थ शरीरका लक्षण बताया गया है। सदा स्वस्थ एवं नीरोग रहनेके लिये आयुर्वेदिक ‘स्वस्थवृत्त’ के निम्न नियमोंका पालन करना आवश्यक है-

1. कायिक , वाचिक एवं मानसिक रूपसे ब्रह्मचर्यका पालन करे।

2.  शारीरिक और मानसिक कार्य उतना ही करे, जिससे अधिक श्रम न पड़े|

3. रोज सुबह वन अथवा घने पेड़ों वाले स्थान पर घूमने जाए| जहां प्रकाश एवं स्वच्छ हवा का अच्छा प्रबंध हो, ऐसे स्थानों का सेवन करे|

4.  नित्य तिलके तेलका अभ्यङ्ग करके कुनकुने पानीसे स्नान करे।

5.  रात्रिमें सूर्यास्तसे पहले भोजन करे और निश्चित समयपर सोये।

6. सत्साहित्य पढ़ने-लिखनेकी थोड़ी-थोड़ी आदत अवश्य रखनी चाहिये। मस्तिष्कको थकान न आये, ऐसा मानसिक कार्य करे।

7. प्रातः शौचशुद्धि हो जानेकी ओर विशेष ध्यान रखे| 

जड़ी-बूटियों अथवा अन्य आयुर्वेदिक क्रियाओ द्वारा निर्मित औषधियों का प्रयोग-

चंदनादि वटी(chandnadi vati)

1.  धमनियोंकी कठोरता दूर करनेके लिये सर्वप्रथम वैद्य इस रोगमें वनस्पति ‘सर्पगन्धा’ अर्थात् ‘सरपिना’ गोलियों या इसके अन्य कम्पाउण्डोंका उपयोग करते हैं।

                 सरपिना उष्ण प्रकृति होनेसे पित्त प्रकृतिवाले व्यक्ति जो उच्च रक्तचापके रोगी होते हैं, इसका प्रयोग करनेपर तुरंत घबराहट तथा बेचैनीका अनुभव करते हैं और इस प्रकारकी औषधिका पुनः सेवन करनेसे इन्कार करते हैं।

महर्षि चरकने संकुचनशीलता पैदा करनेके लिये ‘चरकजा’ का उपदेश दिया है। उन्होंने बताया है कि सूखी हुई लकड़ी भी जब ‘स्नेहन’ और ‘स्वेदन’ द्वारा मनके अनुसार मोड़ी जा सकती है तो फिर जीवित मनुष्यको तो ‘स्नेहन’ और ‘स्वेदन‘ द्वारा इच्छानुसार परिवर्तित क्यों नहीं किया जा सकता है। इससे रोगीको स्थायी लाभ अवश्य मिलता है।

प्रथम रोगीको बाह्य एवं आभ्यन्तर ‘स्नेहन’ कराये। ‘स्नेहन’ के लिये ‘सुरेन्द्र-तेल’, ‘बला-तेल‘ का उपयोग करे। यदि उक्त तेलका आभ्यन्तर उपयोग न किया जा सके तो ‘बादामका तेल’ दूधमें मिलाकर दे। पित्तका अनुबन्ध होनेपर शास्त्रानुसार घृतका उपयोग कराये।

‘सेहन’ के पश्चात् रोगीको ‘स्वेदन’ कराना चाहिये। शिराओंकी कठोरता दूर करनेके लिये ‘मृदु स्वेदन’ जरूर देना चाहिये। इसके लिये गरम जलका ‘नाडी स्वेदन’ अथवा अवगाहन स्वेदन देनेसे ही काम चल जायगा।

high blood pressure की औषधि

1.  बृहद् वातचिन्तामणि रस-

 इसमें मिलाये हुए द्रव्योंमें-

(क) स्वर्णभस्म –यह मधुर, खिग्ध और बृहद् गुणयुक्त होनेसे वातका शमन और रक्तप्रसादन कर सेन्द्रिय विषका शमन करता है। खिग्ध और शीतल गुणसे जीव रक्तवाहिनी शिराओंकी कठोरता कम करता है। रसायन होनेसे वृद्धावस्थाकी वातबाहुल्यको नियमित करता है।

(ख) रौप्य भस्म -(चाँदीका भरम) यह अम्लरस, शीतल, खिग्ध और मधुर विपाकवाला होनेसे शिराओंके कोनेके कफ अंशको बढ़ायेगा, इससे कठोरता कम होगी। यह शरीरके सेन्द्रिय विषको निकालकर आकुशन, प्रसादन आदि गुर्णांकी वृद्धि करेगा। शरीरके अङ्ग प्रत्यङ्गोंके रोगोंकी दुर्बलता दूर होगी और हृदय शक्तिशाली बनेगा।

(ग) लौहभस्म -यह हृदयव्यथाजन्य रोग नष्ट करता है। लौहभस्मके सेवनसे शरीर शुद्ध होकर रक्ताणु बलवान् बनते हैं। रसायन होनेसे यह वृद्धावस्थाजन्य प्रवृद्ध वातका नियमन करता है। यह व्याधिको दूर करके शरीरको नौरोग बनाता है।

(घ) अभ्रक भस्म -यह खिग्ध तथा शीतल होनेसे वायुका शमन करता है। मधुर रसात्मक होनेसे वातका शमन करता है तथा जीवरक्तवाहिनी शिराओंमें मृदुता लाता है।

(ङ) रससिन्दूर -यह हृदयके लिये पौष्टिक, वातनाशक और विषनाशक होनेसे उच्च रक्तचापमें हितकर है।

(च) घी-कार -उदरस्थ अङ्गोंको व्यवस्थित कर दूषित अंशको शरीरसे बाहर करनेके कारण पक्वाशयको स्वस्थ बनाता है।

2. योगेन्द्र रस-

योगेन्द्र रसमें स्वर्णका प्रमाण अपेक्षा या अधिक होनेसे सेन्द्रिय विषका नाश कर रक्तका प्रसादन करता है। रक्तका बलकारक होनेसे हृदयको संकोचन एवं प्रसारण प्रक्रियाको नियमित करता है। जिससे रक्तचापकी वृद्धि कम हो जाती है। यह अप्रत्यक्षरूपसे पाचनसंस्थान और मूत्रसंस्थानपर भी अपना असर करता है। इस रसायनके सेवनसे ‘अजीर्ण वातविकार’, ‘निद्रानाश’ आदि रोग भी दूर हो जाते हैं।

3.  भृङ्गराजासव– 

इसमें पहला मूल द्रव्य भृङ्गराज है दूसरा द्रव्य हरड़ है, जो अधिक मात्रामें है। हरड़की वजहसे प्रथम प्रत्यक्ष क्रिया पक्वाशयपर होती है। यह पक्वाशयको धीरे-धीरे स्वच्छ करके बद्धकोष्ठताको दूर करता है। इससे वातदोषका निर्माण कम होता है, जो कि रक्तचापकी वृद्धिका मूल है। अतः अप्रत्यक्षरूपसे यह रक्तचापवृद्धिके लिये उपयोगी है।

अर्जुन-त्वक् -यह रक्तशोधक और विषनाशक होनेसे सेन्द्रिय विषको दूरकर रक्तको शुद्ध करता है। रक्तचापवृद्धिकी प्रारम्भिक अवस्थामें श्वास, दाह, तृष्णा आदि लक्षण हों, तब इसका प्रयोग करना चाहिये।

चन्द्रभागा – (सर्पगन्धा) यह वात और कफको दूर करती है। उष्ण होनेसे वायुका अनुलोमन करती है तथा रक्तचापवृद्धिको कम करती है और निद्रा लाती है।

जटामासी -इसके कड़वी, कसैली एवं शीतल होनेके कारण रक्तचापवृद्धि रोगके साथ मधुमेह रोग हो तो धमासा, शङ्खपुष्पीके साथ उपयोग करनेसे शक्कर कम हो जाती है। यह मस्तिष्ककी पीडा और दिलको धड़कनको दूर करती है।

शङ्खपुष्पी -यह सारक और उष्ण होनेसे वायुका अनुलोमन करती है। यह शिराओंकी कठोरता दूर करके रोगको दूर करती है। रसायन होनेसे वृद्धावस्थाजन्य बढ़े हुए वायुका नियमन कर रोगको दूर करती है। मेध्या होनेसे मस्तिष्कको शक्ति देगी और निद्रा आने लगेगी।

धमासा-जवासा -शीतल होनेसे यह रक्तशोधक एवं रक्तरोधक है। रक्तशोधक होनेसे शुद्ध रक्तद्वारा हृदयको शक्ति मिलती है तथा इदयका कार्य नियमित होने लगता है। यह कषाय रस एवं लेखन गुणोंसे शिराओंकी कठोरताको कम करता है।

रोग की विशेष अवस्था मे-

1.  यदि सिरदर्द अधिक हो तो कपर्दी भस्म तथा अकीक भस्म आँवलेके मुरब्बेके साथ देखें। रात्रिमें बृहद् वातचिन्तामणि रस और सर्पगन्धा चूर्ण मिलाकर दूधके साथ दें।

२. अनिद्रा हो तो सुबह-शाम सर्पगन्धा चूर्ण और बृहद् वातचिन्तामणि रस मिलाकर दूधके साथ दें। रक्त-दबाव कम करनेके लिये ‘ सर्पगन्धा’ एलोपैथिक चिकित्सक भी प्रचुर मात्रामें उपयोगमें लाते हैं। सर्पगन्धा स्वयं उष्णवीर्य है। अतः पित्तप्रकृतिवालेको प्रवाल पिष्टी या सिता मिलाकर देनेसे अच्छा लाभहोता है। नारायण तेलको अथवा कडूके तेलकी सिरपर मालिश करनेसे भी लाभ होता है।

रक्तचापको अत्यन्त बढी हई अवस्था पक्षात रोग होनेकी सम्भावना रहती है। इसलिये ‘उच्या रक्तचापवृद्धिको पक्षाघातका सचेतक मान लेना चाहिये। पक्षाघात होनेसे पूर्व उच्च रक्तचापवृद्धिमें शिराओंवा कठोर होना आवश्यक है।

रक्तचापवृद्धि’ के और ‘शिरावगत वातरोग’ के लक्षणमें कोई अन्तर नहीं है। अनुभवी वैद्योंसे परामर्श कर रोगीको लाभ लेना चाहिये।

कोई भी औषधि कम मात्रामें लेना रोगीके लिये कोई भी लाभ न देगी। इससे उन औषधियोंको उपयोगिता नहीं है यह मान लेना एक भ्रम है। औषधियोंका प्रभाव शीघ्र हो, इसके लिये मात्राये अधिक औषधि नहीं लेनी चाहिये। अधिक लेनेसे हानि हो सकती है, इसलिये प्रत्येक आयुर्वेदिक औषधिको अनुभवी शिक्षित वैद्यके मार्गदर्शनमें ही लेना चाहिये।

रोकथाम

उच्च रक्तचापका जल्दी पता लगाना भी कठिन काम है, इसलिये पैंतीस वर्षकी अवस्थाके बाद प्रत्येक मनुष्यको वर्षमें एक बार स्वास्थ्य परीक्षण अवश्य कराना चाहिये। यदि किसीके माता-पिता उच्च रक्तचापसे पीडित हैं, तो उन्हें भी अपने रक्तचापकी नियमित जाँच कराते रहना चाहिये।

क्या खायें , क्या नहीं खायें

उच्च रक्तचापपर नियन्त्रण रखनेके लिये खानपानमें सावधानी रखना आवश्यक है। सप्ताहमें एक दिन उपवास भी उच्च रक्तचापके रोगियोंके लिये उपयोगी है, किंतु इस बातका ध्यान रहे कि उपवासवाले दिन कुछ भी खाया-पिया न जाय। नमक कम खाये। 

 रोगीको निम्नलिखित चीजोंसे परहेज करना चाहिये-

1.  मांस, मद्य, अंडे आदि, 

2.  मलाई युक्त दूध, क्रीम, मक्खन, पनीर, खीर, देशी घी एवं दूधसे बनी मिठाइयाँ आदि

 3. वनस्पति घी, नारियलका तेल आदि; क्योंकि इनमें सेचुरेटेड वसा होती है, जो रक्तचाप तथा सीरम कोलेस्ट्रॉलको बढ़ाती है। 

4. आइसक्रीम, चॉकलेट एवं सूखे मेवे। 

5.  ऐसी चीजें, जिनमें नमक तथा खानेका सोडा मिला हो; जैसे अचार, डिब्बेबंद सब्जियाँ, केक, पेस्ट्री, ब्रेड, बंद, बिस्कुट, चिप्स, शीतल पेय एवं सोडावाटर आदि।

 उच्च रक्तचापके रोगी ये चीजें खा सकते हैं-

1.  उबली सब्जियाँ एवं कच्ची सब्जियाँ।

 2.  नीबू-पानी, कम नमकयुक्त सब्जियोंका सूप।

 3.  लस्सी, मलाई उतारा दूध, क्रीम निकाले दूधसे बना पनीर, दही आदि।

 4.  सोयाबीनका दूध। 

5.  सोयाबीनका दही, मूँगफलीका तेल आदि। इस प्रकार खानपानमें सावधानी रखने तथा संयमित दिनचर्या, व्यायाम एवं शारीरिक श्रमके माध्यमसे उच्च रक्तचापसे बचा जा सकता है

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