कपास,रुई के द्वारा अनेक रोगों के उपचार-
भारत मे कपास की खेती बहुत बड़े पैमाने पर होती है|इसके पौधे 3-4 फीट तक लंबे होते है|इसके फूल पीले और लाल रंग के होते है|कपास के काली और सफेद दो प्रजातीया है|एक नरिया वाली कपास होती है जिसके पेड़ बड़े-बड़े होते है और फल – फूल 12 महीने होते है, इसकी रुई नरम तथा बिनौले हरे होते है|
कपास के सामान्य नाम (Kapas common names)-
वानस्पतिक नाम (Botanical Name) – Gossypium herbaceum
अंग्रेजी (English) – Cotton plant
हिंदी (Hindi) – कपास, रुई, बिनौला
संस्कृत (Sanskrit) – तुंडकेशी, समुद्रान्ता, कार्पास
अन्य (Other) – कपास (उर्दू) हत्ति (कन्नड़) कपसिया (गुजराती) तुला (बंगाल) कापसी (मराठी)
कुल (Family) – Malvaceae
कपास के आयुर्वेदिक गुणधर्म (Kapas ke ayurvedic gun)-
गुण-दोष उपयोगिता-
दोष (Dosha) – पित्त्वर्धक (मूलत्वक), कफशामक, वातशामक (बीज)
रस (Taste) – मधुर (बीज), कषाय, कटु (मूलत्वक)
गुण (Qualities) – लघु, तीक्ष्ण (मूलत्वक) स्निग्ध (बीज)
वीर्य (Potency) – उष्ण (hot)
विपाक (Post Digestion Effect) – कटु (मूलत्वक), मधुर (बीज)
अन्य (Others) – वेदनास्थापन, व्रणरोपण, आर्तवजनन, स्तन्यजनन
आयुर्वेद के मत से कपास के फूल मीठे, शीतल,पौष्टिक और दूध बढ़ाने वाले होते है|ये पित और कफ को दूर करते है|प्यास को बुझाते है तथा भ्रांति,चित की अस्थिरता और बेहोशी को दूर करता है|कपास के पत्ते वात रोग को दूर करते और खून को बढ़ाते है|ये मूत्र निस्सारक और कान की सभी प्रकार की तकलीफों को दूर करने वाले होते है|इसके बीज अर्थात बिनौले दूध बनाने वाले होते है|इस वनस्पति के सभी हिस्से चर्म -रोग मे सांप और बीछू के जहर मे तथा गर्भाशय की पीड़ाओ मे उपयोगी है|
- श्वेत प्रदर(White discharge)- कपास(रुई) की जड़ को चावल कर पानी के साथ पीसकर पिलाने से श्वेत प्रदर मे लाभ होता है|
- कष्टार्तव(Difficult menses)-कपास (रुई)के जड़ की खाल का क्वाथ(काढ़ा)पिलाने से मासिक धर्म के समय होने वाले कष्ट मीट जाते है|
- अंडवृद्धि(Ovarian cyst)- बिनौले की मिर्गी और सोंठ को जल के साथ पीसकर लेप करने से अंडवृद्धि मिटती है|
- पागलपन(Madness)– कपास के पुष्प का शर्बत पिलाने से पागलपन मिटता है और चित प्रसन्न रहता है|
- दाँत-पीड़ा(Toothache)- बिनौले को औटा कर उससे कुल्ला करने से दाँत की पीड़ा मीट जाता है|
- कामला(Jaundice)– माशे बिनौले रात को पानी मे भिगो दे| सुबह उनको पीसकर छानकर और सेंधा नमक मिला कर पीने से कामला रोग मे लाभ होता है|
- मूत्रदाह(Burning urination)– कपास की जड़ का काढ़ा पिलाने से पेशाब की समय की जलन और पीड़ा मीट जाती है|
- आमातिसार(Diarrhea)-कपास के पत्तों का रस पिलाने से आमातिसार मे लाभ होता है|
- आग से जलना(Burn from fire)-इसके मींगी को पीसकर लेप करने से आग की जलन मिटती है|
- बदगांठ(Constipation)-कपास के बीज को पीसकर टिकिया बनाकर बदगांठ पर बांधने से बदगांठ बिखर जाता है|
- घाव(Wound)-रुई की भस्म को भुरभुराने से घाव और टंकिया मे बहुत जल्दी लाभ होता है|
- धातुदौर्बल्य(Weakness of the body)-बिनौले की मींगी को दूध मे खीर बनाकर खिलाने से weakness और मष्तिस्क की कमजोरी मे बहुत लाभ होती है|
कपास में पाए जाने वाले पोषक तत्व (Kapas ke poshak tatv)-
* शर्करा
प्रोटीन
* फास्फोरस
* कैल्शियम
* लौह
* तेल
* ताम्र
* विटामिन ए, बी, सी, डी, ई
* अल्कोहल आदि।
कपास(रुई) के औषधीय फायदे एवं उपयोग (Kapas ke fayde or upyog)-
नेत्र रोगों में उपयोगी (Kapas for eyes)-
* पिसे हुए इस के पत्तों में दही को मिलाकर आंखों के आसपास लगाने से आंखों में होने वाली पीड़ा या दर्द का शमन होता है।
कान के रोगों में (Kapas for ear)-
* कान का दर्द होते समय यदि कपास के पत्तों का रस कान में डाला जाता है तो कान में होने वाला दर्द कम हो जाता है।
* सर्ज छाल चूर्ण में कपास के फलों का स्वरस तथा शहद मिलाकर कान में डालने से कान का बहना बंद होता है।
खांसी में (Kapas for cough)-
* कपास के फूलों के रस में शहद मिलाकर पीने से खांसी और श्वास नली में होने वाले सूजन में लाभ मिलता है।
प्यास में-
* दोनों तरह के कपास के फलों का पेस्ट बनाकर उसे जल में घोलकर पीने से प्यास की समस्या में लाभ होता है।
दस्त में लाभकारी कपास (Kapas for diarrhea)-
* प्लक्ष रस तथा उसी मात्रा में कपास को शहद के साथ लेने से कफ के कारण होने वाले अतिसार में लाभ मिलता है।
* पेचिश, दस्त जैसी समस्याओं को दूर करने के लिए सुबह शाम कपास के पत्तों का चूर्ण बनाकर उनका सेवन करना चाहिए।
* कपास के पत्तों का काढ़ा बनाकर पीने से दस्त की समस्या का समापन होता है।
सिर से जुड़े रोगो में (Kapas for head problems)-
* बालों की रुसी को समाप्त करने के लिए इस के तेल का प्रयोग हमेशा उत्तम रहता हैं।
* इस की पीसी हुई मींगी का लेप बनाकर सिर पर लगाने से सिर दर्द का शमन होता हैं।
पाचक अग्नि बढ़ाने में उपयोगी कपास (Kapas for digestion)-
* कपास के फूलों का चूर्ण बनाकर उसे शहद के साथ लेने से पाचक अग्नि बढ़ती है तथा उदर रोगों का नाश होता है।
अर्श की समस्या में (Kapas for piles)-
* नींबू के रस तथा कपास के पत्तों के रस को बराबर मात्रा में मिलाकर लेने से अर्श या में लाभ होता है।
पथरी के कारण होने वाले दर्द में (Kapas for calculus)-
* कपास के फूलों एवं पत्तों का चूर्ण बनाकर लेने से पथरी के कारण होने वाले मूत्राशय के दर्द में राहत मिलती है।
* कपास के पत्तों का रस और नींबू के रस को मिलाकर पीने से पथरी छोटे-छोटे टुकड़ों में मूत्र के माध्यम से बाहर निकल जाती है।
* यदि मूत्र त्याग करते समय जलन या दर्द होता हो तो कपास की जड़ का काढ़ा बनाकर पीना चाहिए।
आमवात में-
इस के पत्तों का चूर्ण बनाकर उन्हें जोड़ों पर लगाने से दर्द तथा सूजन का शमन होता है।
* इस की मींगी के तेल की मालिश करने से जोड़ों के दर्द में आराम मिलता है।
कपास के पत्तों पर तेल लगाकर उन्हें हल्का गर्म करके जोड़ों पर बांधने से जोड़ों में होने वाले दर्द का शमन होता है।
त्वचा रोग में लाभदायक कपास (Kapas for skin)-
* इस के फूलों से निर्मित कल्क को लगाने से कुष्ठ रोग का शमन होता है।
* कपास के पंचांग रस में पकाए हुए तेल को लगाने से मुख्यतः कपाल कुष्ठ की समाप्ति होती है।
आग से जलने पर या किसी गर्म पदार्थ से जलने पर होने वाली समस्याओं में कपास के फूलों का चूर्ण तथा बीजों के तेल को मिलाकर प्रभावित स्थान पर लगाना चाहिए।
मूत्रकृच्छ में (Kapas for urinary problems)-
* कपास के फूलों एवं पत्तों के चूर्ण का सेवन करने से मूत्रकृच्छ जैसी समस्याओं में बहुत अच्छा लाभ मिलता है।
* यदि मूत्र दाह की समस्या है तो कपास की जड़ का काढ़ा बनाकर पीने से इस समस्या में आराम मिलता है।
प्रदर की समस्या में-
चावल के धोवन के साथ इस की जड़ के कल्क को पीने से प्रदर की समस्या के साथ-साथ खून की कमी जेसी समस्या भी समाप्त होती है।
* अनावर्त या कष्टावर्त जैसी समस्या होने पर दिन में एक से दो बार इस के फूल के चूर्ण का सेवन करना चाहिए।
स्तन की समस्याओं में-
* इस के बीजों का चूर्ण बनाकर उसमें दूध और शक्कर मिलाकर पीने स्तनों की वृद्धि होती है।
* इस की जड़ तथा छाल के चूर्ण में गन्ने के रस को तथा शहद को मिलाकर पीने से स्तन्य (दूध) की वृद्धि होती है।
अंडकोष में सूजन आने पर-
अंडकोष पर इस औषधि की मींगी और सोंठ का लेप करना चाहिए। इससे सूजन का शमन होता है।