- गाय का दूध
- गाय का दही
- गाय का मक्खन
- गाय की छाछ
- गाय का घी
- गोमूत्र
- गाय का गोबर
- गाय के गोबर की राख|
1. गाय का दूध:cow's milk:
गाय का दूध स्वादिष्ट ,रुचिकर,स्त्रीग्ध, बलकारक ,अतिपथ्य ,कांतिप्रद; बुद्धि,प्रज्ञा,मेधा,कफ,तुष्टि,पुष्टि,वीर्य और शुक्र को बढ़ाने वाला और नमकीन होता है| वात,पित,विष,वातरक्त,दाह,रक्तपित,अतिसार,उदावर्त,भ्रम,कास,मद,श्वास,मनोव्यथा,जीर्णज्वर,हृदयरोग,पिपासा,उदर,अपस्मार,मूत्रकृच्छ,गुल्म,अर्श,प्रवाहिका,पांडु,शुल,अम्लपित,क्षयरोग, अतिश्रम विषमाग्री ,गर्भपात,योनिरोग और वात रोग का नाश करता है|
काली गाय का दूध विशेष करके वात को नाश करता है| लाल और चितकबरी गाय का दूध विशेष कर पित का नाश करता है|पीली गाय का दूध वात- पित का नाश करता है|श्वेत(धौरी) गाय का दूध कफकारक होता है| मरे हुए बछड़े वाली तथा तुरंत के बछड़े वाली गाय का दूध त्रिदोष कारक होता है|बाखड़ी गाय का दूध गढ़ा ,बलवर्धक, तृप्तिकारक और त्रिदोषनाशक होता है|खली और भुना हुआ दाना खाने वाली गाय का दूध कफकारक होता है|बिनौला,घास,पती आदि खनेवाली गाय का दूध सब रोगों के लिए हितकर है|जवान गाय का दूध मधुर, रसायन और त्रिदोषनाशक है|बूढ़ी गाय का दूध दुर्बल और गाभिन गाय का तीन महीने के बाद का दूध पितकारक , खरास लिए हुए मधुर और शोषण करने वाला होता है|पहली बार व्यायी गाय का दूध नि:सार और गुणहीन होता है|
नई ब्यायी हुई गाय का दूध रूखा, दाहकारक और रक्तदोषकारक तथा पितकारक होता है| ब्याने के आदिक दिन बाद गाय का दूध मधुर दाह कारक और खट्टा होता है|तुरंत का दुह हुआ धरोष्ण दूध, वृष्य , धातुवर्धक, निंद्रा कारक,कांतिप्रद, पथ्य, स्वादिष्ट , अग्नि प्रदीप्त करने वाला, अमृतसदृश और सर्वरोगनाशक होता है|ठंडा दूध(दुहने के एक पहर बाद) त्रिदोषकारक होता है|गर्म पितनाशक होता है|उबाले हुए दूध को पीने से कफ न नाश होता है|और बिना गर्म किया हुआ दूध बलवर्धक ,वृष्य । दोषोत्पादक, अपाचक और मलस्तंभक होता है|प्रातः काल गाय का दूध शक्कर डालकर पीने से हितकारक होता है|
दूध की मलाई-
शीतल,स्त्रीग्ध , वृष्य बलकारक , शुक्रप्रद, तृप्तीकर, रुचिकर, कफवर्धक और धातुवर्धक है तथा पित, वायु, रक्तपित, दाह और रक्तरोगों का नाश करती है|
उपयोग:
1. आधासीसी मे-गाय के दूध का खोआ खाना या गाय के दूध मे बादाम के टुकड़े डालकर बनाई हुई खीर मे शक्कर डालकर पिलाना चाहिए|
2. धतूरा अथवा कनेर के विष पर-पाव भर दूध मे एक तोला शक्कर डालकर पिलाना चाहिए|
3. संखिया, तूतिया,बछनाग,मुर्दासंख इत्यादि के बिष पर– जब तक उलटी न हो जाए तब तक दूध या दूध मे शक्कर डालकर पिलाना चाहिए|
4. मैनसिल के विषपर- दूध मे मधू डालकर 3 दिन पिलाना चाहिए|
5. कोदो के विष पर– ठंडा दूध पिलाना चाहिए|
6. कांच का चूर्ण– यदि किसी अन्न के साथ पेट मे कांच का टुकड़ा चला गया हो तो ऊपर से दूध पिलाना चाहिए|
7. गंधक के विष पर- दूध मे घी डालकर पिलाना चाहिए|
8. पुष्टि,बल और वीर्य की वृद्धि के लिए- गर्म किए हुए दूध मे गाय का घी और शक्कर डालकर पिलाना चाहिए| इसके जैसा पथ्य, तेजोवर्धक और बलवर्धक प्रयोग कोई नहीं है|
9. जीर्ण ज्वर पर– दूध मे गाय का घी, सोंठ, छुहारा और काली दाख डालकर उसे आगपर उबालकर पिलाना चाहिए|
10. मूत्र कृच्छ और मधुमेह पर- दूध मे गुड अथवा घी डालकर उसे थोड़ा गर्म करके पिलाना अथवा गर्म किया हुआ दूध घी के साथ बराबर शक्कर डालकर पिलाना चाहिए|
11. आँख उठी होनेपर या जलन होने पर- गाय के दूध मे रुई को भिगोकर और उसके ऊपर फिटकरी का चूर्ण डालकर आँख के ऊपर पट्टी बंध देनी चाहिए|
12. पुष्टि के लिए- गाय का दूध ,घी और मधू मिलाकर पिलाना चाहिए|
13. पित विकार के ऊपर– 7 तोला दूध लेकर उसमे आधा तोला से 1 तोला तक सोंठ उबालकर खोआ बनाए, उसमे शक्कर डालकर गोली बना ले और रात को सोने से पहले प्रतिदिन खिलाए| खाने के बाद पानी न पीने दे|इस प्रकार कुछ अधिक दिनों तक इसका सेवन कराना चाहिए|
14. चेचक अथवा छोटी माता होने के कारण बालक के शरीर मे आने वाले ज्वर के ऊपर- तुरंत दुहे हुए दूध और घी को मिलाकर मिश्री डालकर पिलाए|
15. छाती तथा हृदय रोग पर– दूध मे शुद्ध भिलावे का तेल 10 बूँद तक डालकर पिलाना चाहिए|
16. रक्तपित के ऊपर- दूध मे 5 गुना पानी डालकर अच्छी तरह उबाले और सारा पानी जल जाने के बाद दूध पीला दे|
17. हड्डी टूटने पर- प्रातः कल बाखड़ी( ब्याने के बाद लगभग 6- 7-8 महीने दूध दे चुकने वाली ) गाय का दूध शक्कर डालकर गर्म करे| उसमे घी और लाख का चूर्ण डालकर ठंडा होनेपर पिलाए|इससे टूटी हड्डी ठीक हो जाती है|
18. कफ पर– गर्म दूध मे काली मिर्च की चूर्ण और मिश्री डालकर पिलानी चाहिए|
19. सिर के रक्तज और पितज रोगों पर- रुई की मोती तह करके गाय के दूध मे भिगोकर सिर के ऊपर रखे, उसके ऊपर पट्टी बांध दे और बारंबार दूध देता रहे| इस प्रकार सबेरे से शाम तक रखे| शाम को सिरधोकर मक्खन लगाए|- इस प्रकार 2-3 दिनों तक करे|
20. प्रवाहिका और रक्त पितादी के ऊपर-आधा दूध और आधा पानी मिलाकर उबाले, जब पानी जल जाए तो बचे दूध का उपयोग शुल, प्रवाहिका और रक्तपित रोग के ऊपर करे|
21. पांडु रोग, क्षय और संग्रहणी के ऊपर- लोहे के बर्तन मे गर्म किया हुआ दूध 7 दिन पिलाना और पथ्य सेवन करना चाहिए|
22. हिचकी के ऊपर– औटाया हुआ दूध पिलाना चाहिए|
23. मूत्रावरोध से हुए उदावर्त वायु के ऊपर- दूध और पानी एक साथ मिलाकर पिलाना चाहिए|
24. मेहनत करके थके हुए- मनुष्य को दूध गर्म करके पिलाए; इससे थकावट दूर हो जाएगी और स्फूर्ति आ जायगी|थकावट के लिए यह अद्वितीय औषधि है|
25. सिरदर्द के ऊपर– गाय के दूध मे सोंठ घिसकर सिरपर उसका लेप करे|और ऊपर से रुई बांध दे|इस प्रकार 7-8 घंटे मे भयंकर से भी भयंकर दर्द ठीक हो जाएगा|
2. गाय का दही: cow's curd:
गाय का दही स्वादिष्ट, बलवर्धक,रुचिकर,तेजस्वी,दीपन,पौष्टिक,मीठा,ठंडा और वातजन्य अर्श(बवासीर)- का नाश करनेवाला है| दही मंद, स्वादिष्ट, स्वाव्दम्ल , (स्वादिष्ट खट्टा), खट्टा और अतिखट्टा- 5 प्रकार का होता है| मंद दही भारी दूध के समान मूत्रकारक , सारक , दाहक और त्रिदोषनाशक है| स्वादिष्ट दही भी भारी,मीठा, वृष्य , पाक-काल मधुर, अभिष्यन्दकारक , मेद, वायु और कफ का नाश करने वाला है| स्वादिष्ट खट्टा दही भारी, मीठा, किंचित खट्टा और तुर्श होता है| दूसरे गुण स्वादिष्ट दहीके समान है| खट्टा दही रक्त, पित और कफ बढ़ानेवाला और दीपन है| अत्यंत खट्टा दही दीपन, गले मे दाह करनेवाला, रोंगटे खड़ा करनेवाला, रक्तपित पैदा करनेवाला और दाँत के लिए हानिकारक है|
औटे हुए दूध का दही शीतल,लघु विषतभकारक , वात कारक, दीपन, मधुर, रुचिकर और थोड़ा पितकारक होता है|औटाकर मलाई निकाले हुए दूध का दही ठंडा, लघु विष्टंभकारक , वातकारक, दीपन,मधुर, रुचिकर और थोड़ा पितकारक होता है|शक्कर मिला हुआ दही खाने से पित, दाह, तृषा और रक्तदोष का नाश होता है|गुड़ मिला हुआ दही तृप्तिकर , धातुवर्धक, गुरु और वात का नाश करनेवाला होता है|दही का निचोड़ा हुआ पानी बल बढ़ानेवाला , तुर्श, पितकारक , सारक, गर्म, रुचिकर, खट्टा, लघु, स्त्रोतशोधक और प्लीहोदर , तृषा, कफ़की बवासीर, वायु, विष्टंभ, पांडुरोग, शुल और श्वास रोग का नाश करनेवाला है|दही के ऊपर का जल सारक, गुरु और रक्तपित, कफ और वीर्य को बढ़ाने वाला और जठराग्नि को मंद करनेवाला तथा वात नाशक है| दूसरे गुण दूध-जैसे ही है|
उपयोग-
गाय के दही का उपयोग-
- अजीर्णजनित विषूचिका पर- गाय का दही या छाछ समान भाग पानी डालकर पिलाए|
- यदि कांच का चूर्ण अनाज के साथ खाया गया हो तो गाय का दही पिलाए|
- तृष्णा रोग के ऊपर– पुरानी ईट साफ धोकर आग मे डाले, खूब लाल हो जाए तबतक गर्म करे, फिर उसे गाय के दही मे डाल दे और उस दही को थोड़ा-थोड़ा खिलाए|
- कनेर के विष पर- गाय का दही शक्कर डालकर पिलाए|
- सूर्यावर्त(आधासीसी) रोग पर- सूर्योदय होने के पहले दही और भात 3 दिन तक खिलाए|
- तृष्णा रोग पर– गाय का मधुर दही 128 भाग, शक्कर 64 भाग, घी 5 भाग, मधू 3 भाग, काली मिर्च का चूर्ण 2 भाग, सोंठ का चूर्ण 2 भाग, इलाईची 2 भाग- ये सब चीज़े एक साथ कलई किए हुए बर्तन मे रख दे और उसमे से थोड़ा-थोड़ा खिलाए|दूसरा प्रकार यह है की दही का तमाम पानी वस्त्र से छान कर उसमे शक्कर वगैरह सब मसाले डालकर घोलकर पिलाए|इसे श्रीखंड कहते है|यह तृषा ,दाह और पितनाशक तथा मधुर होता है|
- सर्प के विष के ऊपर- दही,मधू और मक्खन इन तीनों को 3-3 तोला ले तथा पीपल,सोंठ, काली मिर्च , बच और सेंधा नमक समभाग लेकर बारीक चूर्ण बनाकर वस्त्र से छान ले| यह चूर्ण 3 तोला लेकर करके 12 तोले मिश्रण तैयार करे|उसमे से 4 तोला पिलाए| 1 मिनट के अंदर वमन और विरेचन न होतो फिर दूसरी बार दे| जरूरत पड़े तो तीसरी बार भी पिलाए| इस प्रकार 3 मात्रा लेनेपर अवश्य ही वमन- विरेचन होकर रोग से मुक्ति मिलेगी|काष्ठौषधि नई होनी चाहिए|नई वनस्पति हो तो शास्त्रकार लिखते है की तक्षक, वासूकी या उससे भी बलवान सर्प का विष इस औषधि से दूर हो जाता है| सर्प काटने के बाद तुरंत ही दवा देनी चाहिए|
- सूजन, व्रण की तीक्ष्ण पीडा और दाह के ऊपर- दही को कपड़े मे बांधकर पानी निकालकर उसे दर्दवाली जगह पर बांधने से दर्द दूर होता है, शुल तथा दाह मीट जाता है, निकलता हुआ फोड़ा बैठ जाता है और निकला हुआ फोड़ा फटकर भर जाता है|
3.गाय का मक्खन:cow's butter:
गाय का मक्खन शीतल, धातुवर्धक, वृष्य, कान्ति बढ़ानेवाला, ग्राह्य , बलप्रद, बालक और वृद्ध के लिए ठोस, रुचिकर, मधुर, सुखकारक ,आँख की ज्योति बढ़ाने वाला, पुष्टिकारक, वात, पित, कफ, अर्श , क्षय , रक्त-विकार, सर्वांगशूल , थकावट और तंद्रा का नाश करता है|
ठंडा मक्खन- बल बढ़ानेवाला , वीर्यकारक , भारी, कफ करने वाला, आँखों के लिए हितकर , धातुवर्धक अप्रिय, अनभीष्यन्दी तथा 2-3 दिन तीनों का हो तो खारा , खट्टा,तीखा और वन्ति , अर्श, कोढ़- इन दोषों के सिवा नेत्ररोग और दूसरे सब रोगों का नाश करनेवाला होता है|
उपयोग:
- क्षय का नाश करके शक्ति देने के लिए– गाय का मक्खन, मिश्री, मधू और सोने का वर्फ सबको एकत्र करके खिलाए|
- आँखों के दाह पर– मक्खन आँखों के ऊपर चुपड़ दे|
- शरीर मे मंदज्वर होनेपर- मक्खन और मिश्री खुलाये|
- शीतला अथवा छोटी माता के कारण लड़कों के मंदज्वर के ऊपर- गाय का मक्खन और मिश्री मिलाकर उसमे जीरे का चूर्ण डाले और छोटी सुपारी के बराबर गोली बनाकर रोग सबेरे खिलाए|
- कान मे बहुत जलन होनेपर- गाय का मक्खन थोड़ा गर्म करके कान मे डाल दे|
- भीलवा आदि उड़कर आँख मे पड़ जानेपर- गाय का मक्खन लगा दे| भिलावे के कारण शरीर मे दाह उत्पन्न होता हो तो मक्खन पुष्कल परिणाम मे खिलाए|
- कनेर के विष पर- गाय का मक्खन थोड़ा उष्ण करके खिलाए|
- रक्तातिसार पर- मक्खन मे मधू और मिश्री डालकर खिलाए|
- अर्श व्याधि पर- मक्खन और तिल खिलाए|
4. गाय की छाछ: cow's buttermilk:
गाय की छाछ जठराग्नि को प्रदीप्त करने वाली और त्रिदोष तथा अर्श का नाश करनेवाली होती है| साधारण छाछ स्वादिष्ट ग्राही, रूखी, अवृष्य , बलप्रद, तृप्तीकर, हृदय को विकसित करने वाली , रुचिकारक और शरीर को कृश बनानेवाली होती है तथा प्रमेह, मेद, अर्श, पांडु, संग्रहणी, मलस्तंभ, अतिसार, अरुचि, भगन्दर, उदर, प्लीहा, गुल्म, सूजन, कफ, कोढ़,कृमि, पसीना, घीका अजीर्ण , वायु, त्रिदोष, विषमज्वर आउए शुल का नाश करती है|छाछ मधुर पाकी होती है, इससे पित का कोप नहीं करती|रूखी गर्म और तुर्श होती है|इसलिए कफ का नाश करती है|खट्टी और मधुर होती है|इसलिए वात का नाश करती है|मधुर छाछ कफ करने वाली एवं वात-पितनाशक होती है|
खट्टी छाछ रक्तपित और कृमि का नाश करती है| खट्टी छाछ मीठे के साथ पीने से वायु का नाश होता है|मीठी छाछ शक्कर के साथ पीने से पित का नाश होता है|मीठी छाछ नमक, सोंठ, काली मिर्च और पीपल के साथ मिलाकर मीठी छाछ दे|मक्खन वाली छाछ तंद्रा तथा शरीर मे जड़ता पैदा करने वाली और भारी होती है|मक्खन निकली हुई छाछ लघु और पथ्य करनेवाली होती है| घोल( पानी डालकर हिलाया हुआ दही का मट्ठा)उष्ण और त्रिदोष नाशक होता है|
उपयोग:
- कफ़ोंदर के ऊपर– त्रिकुट ,अजवाइन, जीरा और सेंधा नमक डालकर छाछ पिलाए|त्रिकुट ,सेंधा नमक, जवखार वगैरह डालकर छाछ को सन्तिपातोदर मे देना चाहिए|क्षय, दौर्बल्य , मूर्छा, भ्रम, दाह तथा रक्तपित मे कभी छाछ नहीं पिलानी चाहिए|
- दाह के ऊपर– गाय के छाछ मे कपड़ा भिगोकर उससे रोगी के शरीर का स्पर्श कराते रहे, इससे दाह का नाश होता है|
- संग्रहणी , अतिसार और अर्श के ऊपर- छाछ पिलाए; इससे शरीर का रक्त शुद्ध होकर रस, बल, पुष्टि और वर्ण सरस होता है|तथा वात और कफ के दोषों का शमन होता है| छाछ-कल्प( 40 दिन तक केवल छाछ पर रहे) कराने से कठिन-से-कठिन संग्रहणी और उदर रोग मीट जाते है|
- कोष्ठबद्धता के ऊपर- अजवाइन और विड नमक डालकर छाछ पिलाए|
- अर्श के ऊपर– चित्रामूल की छाल उसके रस को एक बर्तन मे डाले, उसमे गाय का दही या छाछ डालकर पिलाए अथवा सोंठ, काली मिर्च, विड नमक और छोटी पीपल डालकर गाय की छाछ पिलाए|
- संग्रहणी के ऊपर– गाय की छाछ मे एक तोला सफेद मूसली पीसकर पिलाए और छाछ भात का पथ्य दे, अथवा गाय की छाछ मे सोंठ और छोटी पीपल का चूर्ण डालकर पिलाए| संग्रहणी रोग के लिए छाछ दीपन, ग्राह्य और लघु होती है|तथा बहुत ही लाभदायक है|
- मूंगफली खाकर छाछ पी लेने पर- कोई नुकसान नहीं होता तथा उससे होनेवाली अजीर्ण के लिए भी छाछ लाभदायक होती है|
5. गाय का घी: cow's ghee:
गाय का घी रस और पाक मे स्वादिष्ट, शीतल, भारी, जठराग्नि को प्रदीप्त करनेवाला, स्निग्ध , सुगन्धित , रसायन ,रुचिकर, नेत्रों ककी बढ़ानेवाला, कान्तिकारक, वृष्य और मेधा, लावण्य, तेज तट बल् देनेवाला, आयुप्रद, बुद्धिवर्धक, शुक्र वर्धक, स्वर कारक, मनुष्य के लिए हितकारक और बाल, वृद्धि तथा क्षत क्षीण के लिए ठोस और अग्निग्ध व्रण, शस्त्र क्षत, वात, पित, कफ, दम, विष, तथा त्रिदोष का नाश करता है|सतत ज्वर के लिए हितकारक तट आम ज्वर के लिए विष के समान है|मक्खन मे से ताजा निकाला हुआ घी तृप्ति कारक , दुर्बल, मनुष्य के लिए हितकारक और भोजन मे स्वादिष्ट होता है| नेत्र रोग ,पांडु तथा कमला के लिए प्रशस्त है|
हैजा , बाल, वृद्ध,, क्षय रोग, आमव्याधि, कफ़रोग, मदात्यय , कोष्ठबद्धता और ज्वर मे घी कम ही देना चाहिए| पुराना घी तीक्ष्ण, सारक, खट्टा, लघु, तीखा, उष्ण वीर्य, वर्णकारक, छेदक, सुनने की शक्ति बढ़ानेवाला, अग्निदिपक, घ्राणसंशोधक, व्रण को सुखाने वाला और गुल्म, योनि रोग, मस्तक रोग, नेत्र रोग, कर्ण रोग, सूजन, अपस्मार, मद, मूर्च्छा, ज्वर, श्वास, खाँसी, संग्रहणी, अर्श, श्लेष्म, कोढ़, उन्माद, कृमि, विष- अलक्ष्मी और त्रिदोष का नाश करता है|यह वस्तिकर्म और नस्य मे प्रशस्त है| 10 वर्ष का पुराना घी ‘जीर्ण‘ 100-1000 वर्ष का ‘कौम्भ‘ और 1100 वर्ष से ऊपर का ‘महाघृत’ कहलाता है| यह जितना ही पुराना होता है उतना ही इसका गुण अधिक बढ़ता जाता है| 100 बार धोया हुआ घी घाव, दाह, मोह, और ज्वर का नाश करता है| घी मे दूसरे गुण दूध जैसे होते है|
गाय के घी को धोए बिना फोड़े आदि चर्म रोग पर लगाने से जहर के समान असर होता है|, वैसे ही धोए हुए घी को खाने से विषवत असर होता है|यानि फोड़े पर धोया हुआ घी लगाना चाहिए, पर धोया हुआ घी कभी खाना नहीं चाहिए|ज्वर, कोष्ठबद्धता, विषूचिका, अरुचि, मंदाग्नि और मदात्यय रोगों मे नया घी अपकारी होता है| पुराना घी यदि 1 वर्ष से ऊपर का हो तो मूर्च्छा, मूत्रकृच्छ, उन्माद, कर्णशूल, नेत्रशूल, शोथ, अर्श, व्रण और योनीदोष इत्यादि रोगों मे विशेष हितकारी है|
उपयोग:
- आधासीसी के ऊपर– गाय का अच्छा घी सबेरे-शाम नाक मे डाले, इससे 7 दिन मे आधासीसी बिल्कुल दूर हो जायगी| अथवा प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व 1 तोला गाय का घी और 1 तोला मिश्री मिलाकर 3 दिनतक खिलाए तो निश्चय ही आराम होता है|
- नाक से खून गिरने पर – गाय का अच्छा घी नाक मे डाले|
- पित सिर मे चढ़ जानेपर- अच्छा घी माथे पर चुपड़ दे, इससे चढ़ा हुआ पित तत्काल उतर जाता है|
- हाथ-पैर मे दाह होनेपर- गाय का अच्छा घी चुपड़ दे|
- ज्वर के कारण शरीर मे अत्यंत दाह होने पर– घी को 100 या 1000 बार धोकर शरीर पर लेपकरे|
- धतूरा अथवा रसकपूर के विष के ऊपर– गाय का घी खूब पिलाए|
- शराब का नशा उतारने के लिए- 2 तोला घी और 2 तोला शक्कर मिलाकर खिलाए|
- गर्भिणी के रक्तसत्राव के ऊपर- गाय का घी, दही,दूध, और गोबर का रस इसमे से घी को सिद्ध करके पिलाए|
- जले हुए शरीर पर- गाय के धोए हुए घी का लेप करे|
- सिर दर्दके ऊपर– गाय का दूध और घी इकट्ठा करके अन्जन करे| इससे नेत्र की शिराये लाल हो जाती है और रोग चला जाता है|
- बालकों के छाती मे कफ जम जानेपर- गाय का पुराना घी छाती पर लगाकर मालिश करे|
- शरीर मे गर्मी होने से रक्त खराब होकर– शरीर के ऊपर तांबे के रंग के काले चकते हो जाए और उनकी गांठ शरीर के ऊपर निकल आए तब पहले जोंक से रक्त निकलवा दे|पीछे पीतल के बर्तन मे गाय का घी 10 तोला अथवा आधा गाय और आधा बकरी का घी लेकर उसमे पानी डालकर हाथ से खूब फेंटे और वह पानी निकालकर दूसरा पानी डाले| इस प्रकार 100 बार पानी से धोए| उसमे ढाई तोला फुलाई हुई फिटकरी का चूर्ण डालकर घोंटे,और उसे एक मिट्टी के बर्तन मे रखे| इसे नित्य सोते समय गांठ बने हुए सब स्थानों पर लेप करने से शरीर मे जमी हुई गर्मी कम हो जाती है|कुछ ही दिन मे शरीर से दाह मीट जाता है, रक्त शुद्ध हो जाता है और यह दुष्ट रोग नष्ट हो जाता है|
- तृष्णा रोग के ऊपर- घी और दूध मिलाकर पिलाए|
- दाह के ऊपर– 100- 1000 बार धोए हुए घी को शरीर पर चुपड़े|
- हिचकी पर– गाय का घी पिलाए|
- संनिपातज विसर्प के ऊपर- 100 बार धोए हुए घी का बार-बार लेप करे|
- गर्मी के ऊपर- गाय के घी मे सीप का भष्म डालकर उसे खरल करके लेप करे|
- सर्प के विष के ऊपर- पहले 20-40 तोला घी पिए, उसके 15 मिनट के बाद थोड़ा उष्ण जल जितना हो सके उतना पिए|इससे उलटी और दस्त होकर विष का शमन हो जाता है| जरूरत हो तो दूसरे समय भी घी और पानी पिए|
गौ का मूत्र तुर्श, कड़वा, तीखा, लघु, खारा , गर्म, तीक्ष्ण, पाचन, अग्निदिपन, भेदक, पितकारक, मेधाप्रद , मधुर, सारक और बुधीवर्धक होता है| तथा कफ ,वायु, कुष्ठ, गुल्म, उदर, पांडु, चित्री, शुल, अर्श, कंडु, दमा, आम, भ्रम, ज्वर, आनाह वायु, खाँसी, मलस्तंभ, सूजन, मुखरोग, नेत्र रोग, त्वचारोग, स्त्रियों का अतिसार और मूत्र रोग- इन सबका नाश करता है| सब मूत्रों की अपेक्षा गोमूत्र मे अधिक गुण होते है|
उपयोग:
- कफ़रोग पर- केवल गोमूत्र पिलाए|
- रेचन के लिए– जितनी बार रेचन देना हो, उतनी बार गोमूत्र कपड़े से निचोड़कर पिलाना चाहिए|
- उदर और भार पर- गोमूत्र मे शक्कर और नमक महीन पीसकर समभाग डालकर पिलाए अथवा गोमूत्र मे सेंधा नमक तथा राई का चूर्ण डालकर पिलाना चाहिए|
- वराध( बच्चों के उदर पर)- पर- गोमूत्र दो वक्त लेकर उसमे हल्दी डालकर पिलाए|
- उदर रोग और बच्चों के पेट के आफ़रे या डब्बे पर– गोमूत्र 4 तोला लेकर उसमे नारियल की गिरी पैसा भर और खरवत का सूखा पता पैसा भर घिस करके पिलाए, इससे पेट के सब रोग अलग होकर मलद्वार से निकल जाते है| बालकों को यह औषधि 1/4 और 1/8 प्रमाण मे दे|
- पांडु रोग पर- रोज सबेरे शक्ति के अनुसार गोमूत्र वस्त्र से छानकर रोग के न्यूनाधिक जोर के अनुसार 21 या 42 दिन तक सेवन कराए|
- कान बहने पर– गरम गोमूत्र से कान धोए|
- स्त्रियों के प्रसूति रोग होने पर- किसी कारण से गर्भाशय मे गांठ हो गई हो अथवा शरीर मे सूजन आ गया हो तो गोमूत्र प्रतिदिन दिन मे 2 बार 4-4 तोला पिलाए|
- उदर रोग पर- गोमूत्र के क्षार 1 माशा दिन मे 2 वक्त घी के साथ दे| इससे पुराना उदर रोग भी निश्चय पूर्वक दूर हो जायगा|
- आँखों मे दाह, सुस्ती, कब्जियत और अरुचि के ऊपर- गोमूत्र मे थोड़ी शक्कर मिलाकर पिलाना चाहिए|
- सफेद दाग या चकतों के ऊपर- हरताल पत्र, बावची मालकांगनी गोमूत्र मे दिनभर भिगोकर पीछे खरल करके बटोरकर छाया मे डाल दे| बाद को नींबू के रस मे घिसकर लेप करे|
7. गोबर:cow's dung:
गौ का गोबर दुर्गंधनाशक , शोधक, सारक, शोषक, वीर्यवर्धक, पोषक, रसयुक्त, कांतिप्रद और लेपन के लिए स्त्रीग्ध तथा मल वगैरह को दूर करने वाला होता है|
उपयोग:
- मृत गर्भ बाहर निकालने के लिए- गोबर का रस 7 तोला गाय के दूध मे पिलाए|
- गुदभ्रंश के लिए- गोबर गर्म करके सेंक करे|
- पसीना बंद करने के लिए– सुखाए हुए गोबर और नमक के पुराने बर्तन- इन दोनों को शरीर पर लेप करे|
- खुजली के लिए- गोबर शरीर मे लगाकर गर्म पानी से स्नान करे|
8. गाय के गोबर की रख: cow dung ash :
यह शोधक , व्रण को दूर करने वाली, दुर्गंधनाशक, धान्यवर्धक, कृमि-कीटनाशक और शितनिवारक होती है|
उपयोग:
शीतला से फुट निकले छालों पर- राख को कपड़े से छानकर उससे भर दे| इस पर यही उपाय मुख्यतः श्रेष्ठ है|
- साधारण व्रण के ऊपर– घी मे रख मिलाकर लेप करे|
- अन्न को राख मे भरकर रखनेपर– घुन आदि नहीं पड़ते|
- पेट मे छोटे-छोटे कृमि होनेपर- गोबर की सफेद राख 2 तोला लेकर 10 तोला पानी मे मिलाकर पानी कपड़े से छान ले| 3 दिन तक सबेरे शाम इस पानी को पिलाए|
- दाँत की दुर्गंधित, जन्तु और मसूड़ों के दर्द पर- गाय के गोबर को जलाए, जब उसका धुआ निकल जाए तब उसे पानी मे डालकर बुझा ले, फिर कोयला करे| पीछे चूर्ण करके कपड़े से छान ले, इस मंजन को डिब्बे मे रख दे| रोज इस मंजन से दाँत साफ करने से दाँत के सब रोग नष्ट हो जाते है|
ये थे गव्य के अन्य पदार्थ के बारे मे- i think aapko ये जानकारी अच्छी लगी होगी|