→गाय का दूध बहुत ही स्वादिष्ठ,स्त्रीग्ध,रुचिकर,बलवर्धक,मेधाजनक,नेत्रज्योतिवर्धक तुष्टिकारक,वीर्यवर्धक,कांतिजनक एवं रक्तपित अतिसार, उदावर्त ,जीर्ण, ज्वर,मनोव्यथा, अपस्मार,अर्श,पांडु,क्षय,हृदयरोग,गुल्म,उदरशूल, दाह जैसे घातक रोगों के लिए भी अव्यर्थ औषध का कार्य करता है|धरोष्ण दूध का सेवन सर्व रोग विनाशक माना गया है|प्राचीनतम चिकितसग्रन्थ मे गाय के दूध के 10 गुणों के वर्णन किया गया है- अर्थात गाय के दूध मे 10 गुण होते है- स्वादिष्ट,शीत(ठंडा), कोमल,चिकना, गढ़ा, सोम्य लसदार ,भारी,और मन को प्रसन्न करने वाला| गाय के दूध मे विटामिन A, B,C,D,E तथा अन्य शरीर-पोषक एवं, कई दोष निवारक तत्व होते है|
2. गोदही(गाय की दही)-
गाय के दही के गुण इस प्रकार वर्णित किया गया है-
स्त्रीगधं विपाके मधुरं दीपनं बलवर्धनम् ||
वातापहम् पवित्रं च दधि गव्यं रुचिप्रदम् |
अर्थात गाय के दूध का दही स्त्रीगध ,परिणाम मे मधुर,पाचनशक्ति वर्धक, वातहारक ,पवित्र और रुचिकारक होता है| यधपि गाय का दही अनेक भयानक रोगों को जड़ -मूल नष्ट कर देने वाला माना गया है| इतना ही नहीं मधू , मक्खन ,पीपल,सोंठ,काली मिर्च,वच और सेंधा नमक की समान-समान मात्रा लेकर उतना ही मात्रा मे गाय का दही मिला कर तुरंत पिलाने से सांप का विष दूर हो जाता है|
दही सेवन के संबंध मे कुछ विधि -निषेध भी है| उनपर भी ध्यान देना बहुत जरूरी है|किस ऋतु मे दही खाना चाहिए किस ऋतु मे नहीं – अर्थात शरद, ग्रीष्म ,और वसंत ऋतुओ मे दही खाना प्रायः अच्छा नहीं होता है|हेमंत, शिशिर और वर्षा ऋतु मे दही खाना ठीक माना गया है|
3. गोघृत(गाय का घी)-
गाय के घी के गुण तो वास्तव मे असंख्य है,गाय का घी गुणों मे सबसे श्रेष्ठ है|यह विपाक मे मधुर,शीतल,वात ,पीत और बिष का नाश करने वाला आँखों की ज्योति और शरीर के सामर्थ्य को बढ़ाने वाला है|आँख ,कान, और नाक के रोगों मे खासी ,कोढ़, मुच्छा, ज्वर,कृमि और वात,पित ,कफ आदि उपद्रव्य मे गाय का घी माहा औषधि का कार्य करता है| गाय का घी जितना पुराना होता है वह उतना ही गुड़कारी हो जाता है|10years पुराना घी’जीर्ण’ 100-1000 years पुराना ‘कौम्भ‘ और 1100 years से अधिक पुराना घी ‘महाघृत’ कहलाता है|
हैजा ,अग्निमंदता, क्षय ,आमव्याधि,एवं कोष्ठबद्धता मे घृत का सेवन हानिकारक है|ज्वर मे अथवा ज्वर जनित दाह मे घी खाने से नहीं बल्कि मालिश करने से लाभदायक है|
गोमूत्र के भी निम्न फायदे है| इन्हे बहुत सी रोगों मे काम मे लिया जाता है|अर्थात गोमूत्र के सेवन से कृमि रोग,कुष्ठ रोग,खुजली और प्लीहा रोग दूर हो जाते है|गोमूत्र,कटु,तीखा,खारा, कसैला, अंसीक मधुर, पितवर्धक और मेदक होता है| इससे समाप्त हो जाने वाले रोगों का list बहुत लंबी है,तथापि सर रूप मे यह समझ ले की पांडु,कंडु ,अर्श,चित्री ,भ्रम,त्वचारोग,मूत्ररोग,दमा अतिसार-जैसे कठिन रोग केवल गोमूत्र सेवन से ही निर्मूल किए जा सकते है| गुर्दे के रोगों को तो ये जड़ से मिटा देता है|
गोमूत्र का उपयोग सीधे तथा अन्य योगों के साथ अनेक प्रकार के साध्य एवं असाध्य रोगों पर किये जाने का उल्लेख आयुर्वेद मे आया है-
- कान के दर्द मे गोमूत्र डालने से आराम मिलता है|
- थोड़े पानी मे गोमूत्र मिलाकर कुछ दिन पीने से पेट के कृमि(कीड़े) मार जाते है|
- सिर के बाल धोते समय गोमूत्र उपयोग करने से साबुन द्वारा होनेवाली हानी तथा सिर मे पड़नेवाली रूसी से बचा जा सकता है|
- पथरी तथा जिगररोग मे गोमूत्र पीने से आराम मिलता है|
- त्वचा रोग- खाज,खुजली,कोढ़ आदि पर इसका उपयोग लाभकारी रहता है|
- योगराज गुग्गुल, पिपलामूल तथा हरड़ का समभाग मिश्रण कुछ दिन गोमूत्र के साथ सुबह-शाम लेने से पीलिया रोग मे आराम मिलता है|
- हर तरह के कंठ रोग मे नागरमोथा, इंद्रयव , अतीस, दारूहल्दी तथा कुटकी से बने काढ़े को गोमूत्र के साथ पीने से आराम मिलता है|
- हरताल एवं बाकुची के एक तथा चार (1:4)अनुपात के मिश्रण को गोमूत्र मे पीसकर आगपर गरम कर लेप बना ले, उस लेप को श्वेत दाग(कुष्ठ)- पर लगाने से लाभ होता है|
- हल्दी और अडूसे के कोमल के पत्तों को कच्छु(एक प्रकार की खुजली) रोग पर दिन मे 3 बार लगाने से आराम मिलता है|
- तिल के फूल, सेंधा नमक, सरसों का तेल और गोमूत्र के समभाग मिश्रण को लोहे के पात्र मे डालकर रगड़ने से तैयार हुए लेप को पाँव के फटी हुई बिवाई पर लगाने से लाभ होता है|
- रक्तचाप एवं ब्लड प्रेशर मे गोमूत्र को दिन मे 3 बार लगभग 20 ml पीने से लाभ मिलेगा|
- गर्भावस्था के दौरान हिचकी, अरुचि एवं जलन महसूस होनेपर आसमानी रंग की कांच की शीशी मे रखे गोमूत्र 10 ml मात्रा दिन मे 2 बार लेने से लाभ होता है|
- अग्नि दीपन तथा पेटदर्द मे 3 चम्मच गोमूत्र दिन मे 3 बार लेने से लाभ होता है|
गोमूत्र उपयोग की सावधानियाँ-
- देशी गाय का गोमूत्र ही सेवन करे|
- जंगल मे चरने वाली गाय का मूत्र सरवॉटम है|
- गाय गर्भवती या रोगी न हो|
- बिना ब्यायी गाय का मूत्र अधिक लाभकारी है|
- 1 वर्ष से कम की बछिया का मूत्र सर्वोतम है|
- मालिश के लिए 2-7 दिन पुराना गोमूत्र अच्छा होता है|
- पीने हेतु गोमूत्र को कपड़े से 5-8 बार छानकर प्रयोग करना चाहिए|
- बच्चों को 5-5 gm और बड़ों को 10-20 gm की मात्रा मे सेवन करनी चाहिए|
5. गोमय(गोबर)-
रोगों के कीटाणु और दूषित गंध दूर करने मे गोबर अद्वितीय है|प्राचीन काल मे प्रत्येक गृहस्त न केवल घर-आँगन और रसोई मे ही गोबर लेप किया करता था| अपितु कोई भी मांगलिक कार्य प्रारंभ करने के पूर्व गोबर से भूमि लेपन अनिवार्य मन जाता था|
अनेक रोगों को दूर करने मे गोबर का उपयोगिता है-जैसे- गोबर मलकर स्नान करने से खुजली दूर होता है तथा ज्यादा पसीना आने पर सूखे हुए गोबर का चूर्ण शरीर पर रगड़ कर कुछ समय बाद स्नान करने से अधिक पसीना आना बंद हो जाता है|
गोबर की रख भी अत्यंत गुड़कारी मन गया है, शीतला का प्रकोप होने पर निकले छाले अत्यंत कष्टप्रद होते है,ऐसे मे गोबर के रख को छन के रोगी के नीचे बिछा देने पर उसे आराम मिलता है|बच्चों के पेट मे छोटे-छोटे कृमि हो जाने पर छानी हुई रख 10 गुना पानी मे मिलाकर 2-2 घुट बालक को दो चार बार पिलाने से पेट के कीड़े नष्ट हो जाते है|
वैसे तो पंचगव्य के अनगिनत फायदे है लेकिन हमने आपको कुछ ही फ़ायदों के बारे मे यह बताया है, आशा करते ये नुस्खे आपके जरूर काम आएंगे|🙏🏻🙏🏻