फिटकरी(Alum)भस्म:
फिटकरी एक प्रकार की खनिज मिट्टी से (जिसको अंग्रेजी भाषा में-‘एलमशोल’ तथा देसी भाषा में-शेल कहते हैं) तैयार होने वाली वस्तु है।
यह दो प्रकार की होती है-
1. लाल फिटकरी(red Alum)
2. सफेद फिटकरी(white Alum)
अपने देश भारत वर्ष में फिटकरी बनाने बाले कई कारखाने हैं। राजपूताना के अन्दर फिटकरी की मिट्टी बहुत पायी जाती है। इसके अतिरिक्त मुम्बई, चेन्नई और पंजाब में भी Alum तैयार की जाती है। Alum का सत्व पातन करने से एल्युमिनियम धातु प्राप्त होता है। आजकल एल्युमिनियम के बर्तन बहुत बनते हैं।
भस्म बनाने की विधि-
फिटकरी के टुकड़ों को साफ-स्वच्छ करके छोटे-छोटे टुकड़े बनाकर मिट्टी की हाँडी (जिसका पेट बड़ा हो) में रखकर ऊपर से किसी ढक्कन से ढक दें। तदुपरान्त इसे गजपुट में फूंक दें। स्वांग शीतल होने पर भस्म को निकाल लें। यह भस्म स्वच्छ, मुलायम और श्वेतवर्ण की होती है।
विशेष-
बहुत से वैद्यगण फिटकरी को गर्म तवे पर रखकर, फुलाकर इसकी खोल बनाकर तथा बारीक पीस कर भी काम में लाते हैं।
1. लाल फिटकरी(Red Alum) की भस्म-
लाल फिटकरी 5 तोला लेकर ग्वारपाठा के रस में खरल करें। जब रस सूख जाये तब फिर उसे 1 दिन भांगरे के रस में खरल करके उसकी टिकिया बनाकर, धूप में सुखाकर सराव सम्पुट में बन्द करके 5 सेर कण्डों की आँच में फूंक दें। तथा स्वांग शीतल होने पर भस्म को निकाल लें।
मात्रा व अनुपान-
2 से 4 रत्ती तक वयस्क मात्रा है। शहद, गाय का घी, शर्बत बनफ्शा अथवा रोगानुसार अनुपान के साथ रोगी को सेवन करायें।
गुण व उपयोग-
फिटकरी की भस्म-सुजाक, रक्त प्रदर, पार्श्वशूल, खाँसी, पुरानी खाँसी, राजयक्ष्मा, रक्तवमन, निमोनिया, विष-विकार, मूत्रकृच्छ्र, त्रिदोष, प्रमेह, कोढ़ तथा व्रण आदि को दूर करती है। यह भस्म रक्त शोधक भी है। इसके सेवन करने से रक्त वाहिनी संकुचित हो जाती है। अतः यह बहते हुए रक्त को (रक्तस्त्राव को) रोकती है। इसके सेवन करने से बढ़े हुए श्वास-कास के वेग भी कम हो जाते हैं। छाती में कफ के जमकर बैठ जाने से खाँसी का कष्ट होने पर छाती में दर्द होने लगता है।
इस खाँसी के आघात से फुफ्फुस (लंग्ज) खराब हो जाते हैं। और उनमें दर्द भी होने लगता है। इस कफ को निकालने के लिए फिटकरी भस्म अमृत के समान गुणकारी है। कभी-कभी फुफ्फुसों में अधिक कफ संचय हो जाने से फुफ्फुस कठोर हो जाते हैं तथा अपना प्राकृत कार्य करने में भी असमर्थ हो जाते हैं। ऐसी दशा में यह भस्म अत्यन्त कल्याणकारी है।
विभिन्न रोगों मे फिटकरी(Alum) भस्म का प्रयोग व अनुपात-
- कुकुर कास (हृपिंग कफ) यह रोग प्राय बच्चों को होता है। इसमें इतने जोर की खाँसी उठती है की रोगी बच्चे को वमन तक हो जाता है| ऐसी हालात मे Alum भस्म 1 रती प्रवाल पिष्टी ½रत्ती , काकड़ासिंगी चूर्ण 2 रत्ती मे मिलाकर शहद के साथ सेवन कराए|
- Alum विष नाशक भी है। अतःसमस्त प्रकार के विषों पर इसका प्रभाव बहुत ही अच्छा होता है। नाग (सीसा) धातु की कच्ची भस्म के सेवन करने से पेट दर्द हो तो फिटकरी भस्म 1और रती अफीम 1/8 रती, कापूर से पेट में दर्द जल के साथ सेवन करने और रात्रि में एक मात्रा मृदु विरेचन चूर्ण के साथ गाय के दूध से लेने पर प्रायः दस्त पेट साफ हो जाता है, और पेट का दर्द शांत होके विष भी दूर हो जाता है|
- तत्काल सर्पदंशित(सांप काटे हुए) रोगी को- फिटकरी भस्म 1 माशा को 5 तोला गाय के घी मे मिलाकर सेवन कराने से कुछ देर के लिए विष का वेग आगे न बढ़कर रुक जाता है|
- बिच्छू के विष में भी फिटकरी एक तोला को 5 तोला गर्म जल में मिलाकर वि के फाहे से काटे हुए (दशित) स्थान पर बार-बार रखने से विच्छू का विश दूर हो जाता है।
- प्लेग रोग में-लाल फिटकरी भस्म का प्रयोग अत्याधिक लाभकर है। प्लेग में-जब ज्वर बहुत तेज हो, गर्मी के कारण रोगी व्याकुल हो जाये तथा साथ ही प्रलाप करे तब फिटकरी भस्म-3 रत्ती, मिश्री । माशा में मिलाकर सेवन कराने से बहुत लाभ होता है, परन्तु ओषधि देने के बाद एक घण्टा तक पाने नहीं देना चाहिए। बाद में एक तोला धनिया आधा सेर पानी में डालकर आधा पाव पानी शेष रहने पर छानकर पिलायें। साथ ही साथ गिल्टी पर असगन्ध को जल में घिसकर दिन भर 2-3 बार लेप करें और रोगी को पथ्य में दूध-पत दें। यह प्रयोग अनेक रोगियों पर साफल्य रहा है और उनके प्राण बच गये।
मलेरिया ज्वर (पारी वाले ज्वर) में जब रोगी को बार-बार ज्वर आता हो. ज्या का वेग किसी ओषधि से कम न हो तो लाल फिटकरी भस्म 4 रत्ती में शुद्ध संखिया सफेदू-1/10 रत्ती मिलाकर शहद के साथ ज्वर आने से । घण्टा पड़ने रोगी को सेवन कराने से 2-3 पारी के बाद शीत ज्वर अवश्य रुक जाता है।
नेत्र रोगों के लिए फिटकरी प्रकृति का एक अमूल्य बेमिसाल तोहफा है। इसके 2 रत्ती चूर्ण को सवा तोला अच्छी क्वालिटी के गुलाब जल में घोलकर-इस लोशन को नेत्रों में डालते रहने से आँखों की सुर्खी और आँखों में कीचड़ आन बन्द हो जाता है।
- आँख के अन्दर एक प्रकार का बाल (हेयर) उगता है, जिसे “पर-बाल” कहते हैं। इस रोग में-कच्ची फिटकरी की डली 4 तोला को मिट्टी के बर्तन में रखकर आँच पर चढ़ावें। जब फिटकरी पिघल जाये तब उसमें सोना गेरू का चूर्ण एक तोला डालकर लकड़ी से चलाकर एक जीव कर लें, फिर इसको नीचे उतारकर खरल में घोटकर महीन चूर्ण बनाकर कपड़छान करके रख लें। इसको अंजन की तरह आँख में लगाने से परवाल रोग बहुत शीघ्र दूर हो जाता है। आँखें स्वच्छ हो जाती हैं। तथा आँखों में पुनः किसी तरह की बीमारी होने की सम्भावना नहीं रहती है। नेत्र रोग के लिए यह अंजन बहुत ही मुफीद है।
- वण रोपण के लिए भी फिटकरी का सफल प्रयोग किया जाता है। छुरी, तलवार, कुल्हाड़ी आदि के आघात से यदि घाव हो गया हो और उसें से रक्त बह रहा हो तो कच्ची फिटकरी को बारीक पीस कर घी के साथ मिलाकर उसको घाव पर रखकर ऊपर से साफ रुई का फाहा रखकर पट्टी बाँध देने से रक्त स्त्राव तुरन्त बन्द हो जाता है तथा घाव बिना पके भर जाता है। फिटकरी के समान भाग मुर्दा संग मिलाकर पीस कर व कपड़छान करके व्रणों पर छिड़कने से व्रण घाव भर जाते हैं। यह कीटाणुनाशक होने के कारण संक्रमणता को भी नष्ट करती है।
- उपरोक्त की ही प्रकार-स्त्रियों की योनि से रक्तस्त्राव होने पर अथवा नाक से रक्त स्त्राव (नक्सीर) होने पर फिटकरी भस्म को मिश्री के साथ सेवन करने से तथा नक्सीर में इसकी भस्म को रोगी को सुंघाने से बहुत अधिक लाभ होता है। क्योंकि फिटकरी में ग्राही गुण है। अतः यह चमड़े और शिराओं को संकुचित करती है।
रस कपूर अथवा पारा के विशेष सेवन करने से अथवा किन्हीं कारणों से मुँह में छाले पड़ गये हों और मसूड़ों में जख्म हो गये हों तो फिटकरी के पानी से कुल्ले करने से लाभ होता है।
मौलश्री छाल के चूर्ण में थोड़ी सी फिटकरी मिलाकर मेंजन करने पर हिलते हुए दाँत मजबूत हो जाते हैं।
यदि गर्भाशय से रक्त स्त्राव होता हो तो गन्दना बूंटी के स्वरस में फिटकरी घोलकर उसमें साफ कपड़ा तर करके गर्भाशय में रखने से रक्त स्त्राव बन्द हो जाता है।
गर्भाशय बाहर निकल आने पर तथा गुदभ्रंश (गुदा की काँच-निकलने पर) भी उपरोक्त प्रयोग (पिचकारी देना) लाभ कर है।
जब किसी कारण से छाती में विशेष चोट लगने से रक्त आने लगे तो 4 रत्ती फिटकरी भस्म 2 माशे में मिश्री मिलाकर 2 पुड़िया बनाकर सुबह-शाम सेवन करने से रक्त आना बन्द हो जाता है। तदुपरान्त कमजोरी दूर करने और भी तर के घाव को भरने के लिए-प्रवाल पिष्टी मिलाकर अनार शर्बत के साथ सेवन करने से बहुत शीघ्र लाभ होता है।
शरीर में चोट लग जाने पर उस स्थान पर रक्त जम जाता है। उसे ठीक करने के लिए 1½ माशा फिटकरी को फांककर ऊपर से गाय का दूध सेवन करने से (दिन में 3-4 बार सेवन करने से) ही आराम हो जाता है।
नोट-
घरेलू ओषधियों में फिटकरी एक अत्यन्त चमत्कारी एवं सर्वसुलभ ओषधि है। अतः इसके कुछ अत्यन्त लाभकर (कच्ची फिटकरी) के प्रयोग भी हम ऊपर लिख आये हैं।