फूलों के रस से तैयार किया गया लेप बाह्य रूप से त्वचा पर लगाने से उसकी सुगंध हृदय तथा नासिका तक अपना प्रभाव दिखा कर के मन को आनंदित कर देती है|सबसे अच्छी बात है की पुष्प चिकित्सा के कोई side effect नहीं होते है| फूलों को शरीर पे धारण करने से शरीर की शोभा, कान्ति,सौन्दर्य और श्री की वृद्धि होती है|उनकी सुगंध रोगनाशक भी है|फूलों के सुगंध परमाणु वातावरण मे घुलकर नासिका की झिल्ली मे पहुच कर अपनी सुगंध का अहसास कराते है और मष्तिस्क के अलग-अलग हिस्सों पर अपना प्रभाव दिखा कर मधुर उतेजनता सा अनुभव कराते है|पुष्प की सुगंध का मष्तिस्क, हृदय, आँख, कान, तथा पाचन क्रिया आदिपर अनुकूल प्रभाव पड़ता है|ये थकान को तुरंत दूर करते है|इसकी सुगंध से की गयी उपचार प्रणाली को ‘Aroma therepy’ कहा जाता है|
- कमल(Lotus)– कमल के फूलों (flowers)से तैयार किए गए गुलकंद का उपयोग प्रत्येक तरह के रोगों तथा कब्ज के निवारण हेतु किया जाता है|कमल के फूलों के अंदर हरा रंग के एक दाने से निकलते है, जिन्हे भूनकर मखाने बनाए जाते है|परंतु उनको कच्चा छील के खाने से ओज एवं बल की वृद्धि होती है|इसका गुण शीत है| इसका सबसे अधिक प्रयोग नेत्रों मे ज्योति बढ़ाने के लिए किया जाता है|इसके पंखुडीओ को पीस कर उबटन मे मिल कर चेहरे पर मलने से चेहरे की सुंदरता बढ़ती है|
2. केवड़ा(kevda)– केवड़े का तेल उतेजक श्वासविकार मे लाभकारी है| इसका इत्र सिर दर्द और गठिया मे उपयोगी है|इसकी मंजरी का उपयोग पानी मे उबालकर कुष्ट,चेचक,खुजली,तथा हृदय रोग मे स्नान कर के किया जा सकता है|इसका अर्क पानी मे डालकर पीने से सिर दर्द तथा थकान दूर होता है|बुखार मे एक बंद देने से पसीना बाहर आता है|इसका इत्र 2 बंद कान मे डालने से कान का दर्द ठीक होता है|
3. गुलाब(Rose)– गुलाब का फूल(flower) सौन्दर्य,स्नेह,एवं प्रेम का प्रतीक है|इसका गुलकंद रेचक है, जो पेट और आंतों की गर्मी शांत करके हृदय को प्रसन्नता प्रदान करता है|गुलाब जल से आंखे धोने से आँखों की लाली तथा सूजन कम होती है|गुलाब का इत्र उतेजक होता है, तथा इसका तेल मष्तिस्क को ठंढा रखता है|
4. चम्पा(Plumeria)– चम्पा के फूल को पीस कर कुष्ट रोग के घाव मे लगाया जा सकता है|इसका अर्क रक्त- कृमि को नष्ट करता है|इसके फूलों को सुखाकर बनाया गया चूर्ण खुजली मे उपयोगी है| यह ज्वरहर, उत्सर्जक,नेत्रज्योति वर्धक तथा पुरुषों को शक्ति एवं उतेजना प्रदान करता है|
5. सौंफ/शतपुष्पा(Fennel)– सौंफ अत्यंत गुणकारी है| सौंफ के पुष्पों (flowers) को पानी मे डालकर उबाल ले|, साथ मे एक बड़ी इलाईची तथा कुछ पुदीने के पत्ते भी डाल दे| अच्छा यह रहे की मिट्टी के बर्तन मे उबाले पानी को ठंढा करके दाँत निकलने वाले बच्चों या छोटे बच्चे जो गर्मी से पीड़ित हो , उन्हे एक-एक चम्मच कई बार दे| इससे उनके पेट की पीड़ा शांत होगी तथा दाँत भी सही से निकलेंगे |
6. गेंदा(Marigold)– मलेरिया के मच्छरों का प्रकोप कम करने के लिए यदि गेंदे की खेली गंदे नाले और घर के आस-पास की जाय तो इसकी गंध से मच्छर दूर भाग जाते है|लिवर के रोगी के लिवर की सूजन, पथरी,एवं चर्म रोग मे इसका प्रयोग किया जा सकता है|
7. बेला (Jasmine)- यह अत्यधिक सुगंधयुक्त पुष्प है| यह गर्मी मे अधिकता से फूलने वाला पौधा है| बेले के हार या पुष्पों को अपने पास रखने से पसीने मे गंध नहीं आती| इसकी सुगंध प्रदाह नाशक है| इसके कलिओ के चबाने से माशिक धर्म की अवरोध दूर हो जाता है|
8. रातरानी(Night blooming)- इसकी गंध इतनी तीव्र होती है की यह दूर-दूर तक के स्थानों को मुग्ध कर देता है|इसकी पुष्प प्रायः सायं से लेकर आधी रात के कुछ पहले तक सुगंध अधिक देता है| परंतु इसके बाद धीरे-धीरे कम होने लगता है|इसकी गंध से मच्छर नहीं आते| इसकी गंध मादक और निंद्रायक है|
9. सूरजमुखी(Sunflower)– इसमे विटामिन ए तथा डी होता है|यह सूर्य कर प्रकाश न मिलने पर होने वाले रोगों से रोकता है|इसका तेल हृदय रोग मे कॉलेस्टरल को कम करता है|
10.चमेली– चर्मरोग, पायरिया,दंतशुल,घाव,नेत्र-रोग, और फोड़े-फुंसीओ मे चमेली का तेल बनाकर इसका उपयोग किया जाता है|यह शरीर मे रक्तसंचार की मात्रा बढ़ा कर उसे स्फूर्ति प्रदान करता है|इसके पत्ते चबाने से मुह क छाले तुरंत दूर हो जाता है|मानसिक प्रसन्नता देने मे चमेली का अद्भुत योगदान है|
11. केसर(Saffron)– यह मन को प्रसन्न करता तथा चेहरे को कांतिमान बनाता है|यह शक्तिवर्धक, वमन को रोकने वाला तथा वात, पित एवं कफ (त्रिदोषों) का नाश करता है|तंत्रिकाओ मे व्याप्त उदीगर्ता एवं तनाव को केसर शांत रखता है|इसलिए इसे प्रकृति प्रदत ‘ट्रेनग्कुलैजर’ भी कहा जाता है|दूध या पान के साथ इसका सेवन करने से यह अत्यंत ओज, बल, शक्ति और स्फूर्ति को बढाता है|
12. अशोक(Saraca) flowers- यह मदन वृक्ष भी कहलाता है|इसके फूल छाल तथा पत्तिया स्त्रियों के अनेक रोगों मे औषधी के रूप मे उपयोगी है|इसकी छाल का आसव सेवन करा कर स्त्रियों की अधिकांश बीमारियों को ठीक किया जा सकता है|
13. ढाक/पलाश(Butea monosperma)– ढाक को अप्रीतम सौन्दर्य का प्रतीक माना जाता है|क्यू की इसके गुच्छेदार फूल बहुत दूर से ही आकर्षित करते है|इसी आकर्षण के कारण इसे वन की ज्योति भी कहते है|इसका चूर्ण पेट के किसी भी तरह के कृमि को नाश करने मे सहायक है|इसके पुष्पों को पानी के साथ पीस कर लुग्दी बना के पेडू पर रखने से पथरी के कारण दर्द होने पर या मूत्र न उतरने पर लाभ होता है|
14. गुड़हल/जवा(Hibiscus)– गुड़हल का पुष्प का संबंध गर्भाशय से है|ऋतु काल के बाद स्त्रिया यदि फूल को घी मे भूनकर सेवन करे तो ‘ गर्भ’ स्थिर होता है|गुड़हल के फूल चाबाने से मुह के छाले दूर हो जाते है|इसके फूलों को पिश कर बालों मे लेप करने से बालों का गाँजापन मिटता है|गुड़हल शितवर्धक, वाजिकारक तथा रक्तशोधक है| इसका शर्बत हृदय को फूल के भांति प्रफुल्लित करने वाला तथा रुचिकर होता है|
15. शंखपुष्पी( विशणुकांता)- शंखपुष्पी गर्मियों मे अधिक फूलता है| यह घास की तरह होता है| इसके फूल पत्ते तथा डंठल तीनों को उखाड़कर पीसकर छान लेने तथा इसमे शहद या मिश्री मिलाकर पीने से पूरे दिन मस्तिसक मे ताजगी रहती है|सुस्ती नहीं आती , इसका सेवन विधार्थीयो को अवश्य करना चाहिए|
16. बबूल(कीकर)– बबूल के फूलों को पीसकर सिर मे लगाने से सिर दर्द गायब हो जाता है|इसका लेप दाद और एगजीम पर करने से चर्म रोग दूर होता है|यह खासी और स्वास के रोग मे लाभकारी है|इसके कुल्ले दाँत क्षय को रोकते है|
17. नीम- इसके फूलों को पीस कर लुगदी बना कर फोड़े-फुंसी पर लगाने से जलन तथा गर्मी दूर होती है|शरीर पर मल के स्नान करने से दाद दूर होती है|यदि फूलों को पीसकर पानी मे घोल कर छान ले और इसमे शहद मिलाकर पिए तो वजन कम होता है|तथा रक्त साफ होता है|यह संक्रामक रोगों से रक्षा करने वाला है|नीम हर प्रकार का उपयोगी है इसको घर का वैध कहा जाता है|
18. लौंग – यह आमाशय और आंतों मे रहने वाले उन सूक्ष्म किटाणुयो को नष्ट करती है|जिनके कारण मनुष्य का पेट फूलता है| यह रक्त के स्वेत कणों मे वृद्धि करती है|शरीर तथा मुह के दुर्गंध का नाश करती है|सशरीर के किसी भी हिस्से पर घिस कर लगाने से दर्दनाक औषधी का काम करती है|दाढ़ या दँतशूल मे मुह मे डालकर चूसने से लाभ होता है|इसका धूम्र सेवन शरीर मे उत्पन्न अनावश्यक तत्वों को पसीने के द्वारा बाहर निकाल देता है| ं
19. हारशृंगार(पारिजात)– यह गठिया रोगों का नाशक है|इसका लेप चेहरे के कान्ति को बढाता है|इसकी मधुर सुगंध मन को प्रफुल्लित कर देती है|
20. अनार – शरीर मे पिती होने पर अनार के फूलों का रस मिश्री मिलाकर पीना चाहिए| मुह के छालों मे फूल रखकर चूसना चाहिए| आँख आने पर काली का रस आँख मे डालना चाहिए|
पुष्प सूर्य के प्रकाश मे सूर्य की किरणो से संपर्क स्थापित करके अपनी रंगीन किरणे हमारी आँखों तक पहुछाते है, जिससे शरीर को ऋणतामक, धनात्मक,तथा कुछ newtral प्रकाश की कीरणे मिलती है जो शरीर के अंदर पहुच कर विभिन्न प्रकार के रोगों को रोकने मे सहायता प्रदान करती है| इस प्रकार हम कलर थेरेपी द्वारा भी चिकित्सा का लाभ ले सकते है|