Aarogya Anka

स्वस्थ जीवन आरोग्य अंक /आयुर्वेद के साथ

आयुर्वेद दुनिया का प्राचीनतम चिकित्सा प्रणाली है Ιऐसा माना जाता है की बाद मे विकसित हुई अन्य चिकित्सा पद्धतियों मे इसी से प्रेरणा ली गई है Ιकिसी भी बीमारी को जड़ से खत्म करने के खासियत के कारण आज अधिकांश लोग आयुर्वेद के तरफ जा रहे हैΙइस लेख मे हम आयुर्वेद चिकित्सा से जुड़ी हर एक रोग और उसके इलाज के बारे मे बताएंगे Ιआयुर्वेद चिकित्सा के साथ सभी प्रकार के जड़ी -बूटी के बारे मे तथा आयुर्वेद के 8 प्रकारों से हर तरह के रोगों के इलाज के बारे मे बताया गया हैΙ सभी पोस्टों को पढे ओर जानकारी अवश्य ले ताकि आप भी अपना जीवन आरोग्य के साथ healthy बना सके| thanks . 

बुढ़ापे के कष्टों से बचने के लिए अद्भुत उपाय

बुढ़ापे:-old age healthy life:

‘कल्याण’ के लाखों पाठकोंमें वृद्ध लोगोंकी संख्या भी पर्याप्त होगी। उनमें भी बहुत से लोग ऐसे भी होंगे जो 60-70  की अवस्था पार कर गये होंगे। इन वयोवृद्ध लोगोंको बुढ़ापे की तकलीफें बहुत सता रही होंगी। इन तकलीफोंसे बचने या इन्हें कम करनेके लिये समय-समयपर विद्वान् लोगोंने अपने-अपने अनुभवके आधारपर अनेकानेक उपाय बतलाये हैं, उनमेंसे कुछका प्रयोग लेखकने भी करके देखा है और उनसे पर्याप्त लाभ उठाया है। अतः ‘कल्याण’ के प्रेमी वृद्ध पाठक भी उनसे लाभ उठावें- इस विचारसे उनमेंसे कुछ अनुभूत उपाय संक्षेपमें नीचे दिये जा रहे हैं। आशा है इनके प्रयोगसे उन्हें स्वास्थ्य लाभ होगा और उनके बुढ़ापेके कष्ट बहुत कुछ अवश्य ही कम हो जायेंगे।

बुढ़ापे(old age healthy life)

1. टहलना-

जो लोग चल-फिर सकते हैं, उन्हें चाहिये कि प्रतिदिन प्रातःकाल उठकर सूर्योदयके पूर्व २-४ मील या जितना हो, जल्दी-जल्दी हो सके, टहल आया करें। हो सके तो शामको भी टहल आवें। इससे शरीरके रक्तका दौरा ठीक होता है और शरीरमें फुर्ती आती है। बुढ़ापे के कष्टोंसे बचनेका यह उत्तम उपाय है। यह क्रिया दीर्घायुके लिये अति उत्तम है। जो बाहर न जा सकें, वे घरमें छतपर टहल सकते हैं।

2. चबाकर खाना-

बुढ़ापे में पेटको साफ रखना बहुत जरूरी है। दवाइयोंके सेवनसे यह काम ठीक नहीं होता। बहुत दवाइयाँ आँतोंको कमजोर कर देती हैं, जिससे पाचनशक्ति कमजोर हो जाती है। इसके लिये सबसे अच्छा उपाय है-भोजनमें साग-सब्जीका अधिक प्रयोग करना और भोजनको धीरे-धीरे खूब चबा चबाकर खाना। दाँत न हों या ढीले पड़ गये हों तो नरम भोजन करना, पर खूब कुचलना या चुभलाना न भूलें।

 ऐसा करनेसे आँतोंको अन्न पचानेमें सहायता मिलती है और आँतें मजबूत रहती हैं, पाखाना साफ होता है और ठीक भूख लगती है। जिनको मिल सके, देशी फलोंका और हरी साग-सब्जीका सेवन अधिक करें, पर खूब चबाकर खायें। कलेवाकी जगह प्रातःकाल फल खाना अधिक अच्छा होता है। भोजनमें भूखसे एक रोटी कम ही खानेकी कोशिश करें। भरपेट या अधिक कदापि न खायें। इससे शरीर हलका रहेगा और आयुमें वृद्धि होगी।

3. पेय पदार्थ धीरे-धीरे पिना-

प्रायः लोग पानी अथवा दूध इत्यादि पेय पदार्थ एकदम गटगट पी जाते हैं। यदि वे प्रत्येक पेय पदार्थको धीरे-धीरे चायकी तरह पीया करें और साथ ही घूँटको मुँहमें कुछ देर चुभला लिया करें तो वह पदार्थ उन्हें अधिक हितकर होगा और नुकसान न करेगा। थोड़ा-थोड़ा करके दिनभरमें ५-७ गिलास जल अवश्य पीना चाहिये। इससे कोष्ठबद्धता न होगी और स्वास्थ्य ठीक रहेगा।

4. शरीर की मालिश-

शरीरकी मालिशकराने या तेल मलवानेसे भी काफी लाभ होता है। इससे खूनका दौड़ा ठीक होता है, शरीरमें फुर्ती आती है। रोज समयपर एक-आध घंटा इस क्रियाको करनेसे आयु बढ़ती देखी गयी है।

5. गहरी साँस-

गहरे श्वाससे मतलब है- लम्बी और गहरी साँस लेना। प्रत्येक मनुष्य प्रति मिनट 13-14 साँस लेता है और निकालता है। कोशिश यह करनी चाहिये कि रोज अभ्यास करते-करते उसे 10-12 साँस ही प्रति मिनट लेनेकी आदत पड़ जाय। गहरी नींदमें सोते समय जैसे धीरे-धीरे और गहरी साँस

चलती है, वैसे चलानेकी कोशिश की जाय। कहते हैं सुलाते आयु बासकी संख्यापर निर्भर रहती है, चाहे लोहे काप भीरे-धीरे लेकर 100 वर्षमें पूरी करें या जल्दी-जल्दी लेकर 60-70 वर्षमें ही संख्या पूरी कर लें। योगी लोग प्राणायाम या समाधिद्वारा साँस रोककर बहुत लम्बी आयु प्राप्त करते देखे गये हैं। बस, धीरे धीरे खूब गहरी साँस गलेतक भरने और धीरे-ही-धीरे पूरी साँस (नाभितक) निकाल देनेका अभ्यास डालना चाहिये। 

यह काम एकदमसे नहीं हो सकता। पर जब जब याद आवे, तब-तब ऐसा करनेका प्रयत्न करें तो साल-छः महीनेमें कुछ-न-कुछ आदत पड़ ही जायगी। यह क्रिया आयु बढ़ाने के सिवा शरीरके रक्तको ज्यादा साफ करेगी, जिससे अनेक छोटे-मोटे रोग न होने पायेंगे और पाचन क्रिया भी प्रदीप्त होगी। दिनमें काम करते हुए अथवा कुर्सीपर बैठे-बैठे जब याद आये, 10-15 गहरी साँसें लेनेसे थकावट मिटती है और बड़ी शान्ति मिलती है। 

रातमें सोनेसे पूर्व इस क्रियासे नींद जल्दी आ जाती है। इसे रोज सबेरे 15-20 मिनट करनेसे शरीरके तमाम रोग मिट जाते हैं, भाग जाते हैं और रक्त शुद्ध होकर आयु बढ़‌ती है। सर्दी, खाँसी, जुकाम, पेटदर्द, सिरदर्द आदि सब गायब हो जाते हैं। पर इसके साथ ब्रह्मचर्यका भी खयाल रखना अति आवश्यक है। यदि विद्यार्थी एवं अन्य युवा वर्गक लोग भी इसे करें तो उन्हें टी०बी० (राजयक्ष्मा) की बीमारी कभी न होगी।

इसी सम्बन्धकी एक क्रिया और है जिसे ‘भस्त्रिका प्राणायाम‘ कहते हैं। इस क्रियामें साँस गहरी तो भरी जाती है, पर तेजीके साथ नाकद्वारा भरी और निकाली जाती है। नाकद्वारा खूब तेजीसे भरना और उसे तेजीसे निकालना, कहीं रोकना नहीं। इस क्रियासे भी बहुत लाभ होता है। अनेक बड़ी-बड़ी वायुविकारकी बीमारियाँ इससे दूर हो जाती हैं। इसे महीने दो-महीने शुरूमें केवल 2-3 मिनट करना ही काफी है। थकावट मालूम होते ही रोक देना चाहिये। 

बहुत बीमार और हृदयके कमजोर व्यक्तिको इसे नहीं करना चाहिये।सामर्थ्य होनेपर इसे ज्यादा-से-ज्यादा 5 मिनट बढ़ाया जा सकता है। यदि अधिक करनेको इच्छा तो शामको भी खाली पेट कर सकते हैं। यह बहुत ही लाभकारी क्रिया है। इससे अनेकानेक रोगोंका नाह होता है। शारीरिक शक्ति बढ़ती है और यह आयुवर्गक भी है। प्रत्येक पाठकको इस क्रियाको थोड़ी-थोड़ी पर नियमित रूपसे करके लाभ उठाना चाहिये।

6.सूर्यस्वर-

जब दाहिना स्वर चलता हो, तत्र भोजन करनेसे वह जल्दी पच जाता है और कियों प्रकारकी हानि नहीं करता। इसलिये याद रखकर जब दाहिना स्वर चलता हो, तभी भोजन करना चाहिये और जल अथवा कोई पेय पदार्थ पीना हो तो यथासम्भव जब बायाँ स्वर चलता हो, तब पीना लाभदायक होता है।

 कुछ दिन याद रखकर इस क्रियाको करें तो धीरे- धीरे आदत पड़ जायगी। (आवश्यकता पड़नेपर दाहिने- बायें करवट लेकर अथवा नासाछिद्रमें रूई लगाकर इच्छानुसार साँस बदली जा सकती है।) इसी प्रकार दाहिने स्वरमें पाखाने जायें तो शौच साफ होता है। मूत्रत्याग यथासम्भव बायें स्वरमें करना चाहिये। इस क्रियाके करनेसे पेटके विकार न होंगे, भोजनमें रुचि होगी, चित्त प्रसन्न होगा, स्वास्थ्य ठीक रहेगा। कहा भी है-

"दिनको तो चंदा चले, चले रातमें सूर।
यह निश्चय कर जानिये, प्रान गमन बहु दूर ॥
बायीं करवट सोइये, जल बायें स्वर पीव।
दहिने स्वर भोजन करे, सुख पावत है जीव ।।"

7. आसन-

आसन तो सभी अच्छे हैं, परंतु स्वास्थ्यको सुधारकर आयुको बढ़ानेवाले कई आसन गृहस्थोंके लिये बहुत ही उपयोगी हैं- जैसे सिद्धासन, पद्मासन, पश्चिमोत्तान आसन और शीर्षासन आदि। ये आसन वैसे कठिन नहीं हैं और प्रायः सब लोग इन्हें आसानीसे कर सकते हैं। प्रारम्भमें बहुत थोड़ी देर, मिनट-दो मिनट करना चाहिये। अभ्यास परिपक्व हो जानेपर धीरे-धीरे इनका समय बढ़ाते जायें। कोई जानकार बतलानेवाला मिल जाय तो अत्युत्तम है, अन्यथा आसनोंकी कोई अच्छी पुस्तक लेकर देख लेनी चाहिये। 

बहुत बूढ़े और कमजोर तथा बौमार लोगोंको शीर्षासन नहीं करना चाहिये। योगी लोग अपनी आयु आसनों और प्राणायामोंके द्वारा बहुत बढ़ा लेते हैं। हमें तो पश्चिमोत्तान आसन बहुत सरल तथा हितकर मालूम होता है। प्रातःकाल खाली पेट 5-7 मिनट रोज करते रहें तो स्वास्थ्यमें अद्भुत परिवर्तन हो जाय। इससे रीढ़की, पेटकी तथा सारे शरीरकी पूरी कसरत हो जाती है और सारे शरीरका खून तेजीसे दौड़ने लगता है।

8. खाद्य पदार्थ-

कतिपय ओषधियाँ और खाद्य पदार्थ भी ऐसे हैं, जो स्वास्थ्यके साथ-साथ आयु बढ़ानेमें सहायक होते हैं, परंतु उनके सेवनके साथ- साथ कुछ शारीरिक परिश्रम भी करना आवश्यक होता है। गेहुँका दलिया, भिगोकर अंकुर निकले हुए चने, गेहूँ, मूँग आदिका सेवन बहुत हितकर है। जिसकी पाचनशक्ति ठीक हो उसके लिये उर्द बहुत शक्ति देनेवाला अन्न है।

 फलोंमें गाजर, अमरूद, केला, सेब, अनार, संतरा, अंगूर, नीबू, सिंघाड़ा, बेल, आँवला, खजूर, हरे चनेके बूट आदि सभी स्वास्थ्य और आयुवर्धक हैं। इसी प्रकार त्रिफला, च्यवनप्राश, दूध, दही, उषापान और तरह-तरहके मेवे आदि भी बहुत लाभ करते हैं, पर साथ-साथ शारीरिक परिश्रम भी माँगते हैं, तभी शक्ति आती है। उपर्युक्त सभी विषयोंपर सामयिक पत्रोंमें अच्छे-अच्छे लेख यदा-कदा निकला करते हैं और अनेक पुस्तकें भी प्रकाशित हो चुकी हैं। अतः विस्तृत जानकारीके लिये उनका भी अवलोकन करना चाहिये।

9. व्यायाम तथा विश्राम-

अधिक वृद्धावस्था (बुढ़ापे) में व्यायाम तो हो नहीं सकता, परंतु उसकी बहुत कुछ पूर्ति ऐसे कार्य करते रहनेसे हो सकती है, जिनसे शरीरके अङ्गोंको कुछ श्रम पड़ जाय, विशेषकर पेट और रीढ़को। ऐसे हलके काम करें, जिनमें थोड़ा-बहुत झुकना पड़े, हाथ-पैर चलाने पड़ें। थकावट लानेवाले काम न करें। हाँ, जिनमें कुछ शक्ति हो वे रोज सबेरे शाम दस-बीस बार उठें बैठें, दस-बीस कदम दौड़ें अथवा और कोई हलका व्यायाम करें। पर करें रोज,

नियमसे करें, एक दिनका भी नागा न होने पाये। थकावट मालूम होते ही थोड़ी देर आराम कर लें, किसी क्रियायें अति न करें। बहुत से लोग जवानीभर खूब मेहनत तथा व्यायाम करेंगे, पर बुढ़ापे में एकदम बंद कर देंगे, इससे हानि पहुँचती है। धीरे-धीरे कम करते हुए थोड़ा-थोड़ा नियमित व्यायाम बुढ़ापे में भी जारी रखें। इससे बुढ़ापे कम दुःखदायी होगा और आयु बढ़ेगी। सूर्यनमस्कारवाला व्यायाम भी बहुत लाभदायक है, परंतु बुढ़ापे की कमजोरी आनेके पूर्व ही इसकी आदत डाल लें तो बहुत अच्छा हो।

इसीके साथ वृद्धावस्था (बुढ़ापे) में विश्राम करना भी बहुत जरूरी है। रात्रिके अतिरिक्त दिनमें भी घंटे दो-घंटे विस्तरपर स्वस्थ, निश्चिन्त पड़कर विश्राम कर लेना चाहिये। भोजनके बाद तो अवश्य ही आधे घंटेका विश्राम जरूरी है। ज्यादा बकझक करनेसे, क्रोध करनेसे, दौड़-धूप करनेसे, अधिक पढ़ने-लिखने तथा बातचीत करनेसे शक्तिका हास होता है। विश्रामसे शक्ति वापस लौट आती है। इसलिये अधिक बुढ़ापे में अधिक विश्राम करना ही चाहिये। छोटे बच्चोंके साथ खेलनेसे मन बहलाव हो जाता है। सदा प्रसन्न रहनेसे भी प्रचुर मात्रामें शारीरिक एवं मानसिक विश्रामके साथ-साथ स्वास्थ्य लाभ भी होता है।

10. अपक्व भोजन-

अपक्व भोजनसे मतलब है जो आगपर न पकाया गया हो- जैसे भिगोये हुए गेहूँ, चने, मूंग आदि, तरह-तरहके फल, कच्चे कंद-मूल, मूली, गाजर आदि, कच्चा ताजा दूध (शर्करारहित), हरे मटरकी फली, कच्ची ताजी साग-सब्जी, कच्ची तोरई,लौकी, टमाटर आदि सब कच्चे ही खाये जायें, कोई चीज आगपर पकायी न जाय। कहते हैं, बिलकुल अपक्व भोजनसे शरीर स्वस्थ रहता है और आयु दीर्घ होती है। 

एक गाँधीभक्त आस्ट्रियनने अपनी पुस्तक ‘Eternal Youth’ में लिखा था कि अपक्व भोजनसे मनुष्य दो-तीन सौ वर्षतक स्वस्थ और हृष्ट-पुष्ट रह सकता है। १७ वर्षोंसे वह स्वयं अपक्व भोजनपर जीवन निर्वाह कर रहा है। ऐसे महात्मा लोग डेढ़-दो सौ वर्ष की आयुके देखे गये हैं. जो केवल कन्द-मूल एवं पलादिके सिवा और कुछ नहीं खाते। कई तो केवल बेल फलपर ही निर्वाह करते देखे गये हैं, जो श्री-डेड़ सौ वर्षको आयुमें भी हट्टे-कट्टे जवान बने हुए हैं।

 प्रत्येक युवा मनुष्य धीरे-धीरे पके अन्नकी मात्रा दिन-प्रतिदिन कम करते हुए साल-छः महीनेमें अपक्व भोजनकी आदत डाल ले तो वह भी स्वस्थ दीर्घ आयु प्राप्त कर सकता है।

11. बिस्तर पर की कसरते(bed exercises)-

ऊपर बुढ़ापे में स्वास्थ्य कायम रखने और जवानी लानेके लिये कई उपाय लिखे गये हैं, ऐसे ही और भी अनेक उपाय हैं, परंतु हम अब एक बहुत हो उत्तम उपाय लिखकर इस लेखको समाप्त करेंगे- इसे ‘बिस्तरपरकी कसरतें’ कहना चाहिये। एक अमेरिकनने अपनी पुस्तक (Old Age, Its Cause and Preventions) में बहुत विस्तारके साथ इसका वर्णन किया है। 

वह कहता है कि 50 वर्षकी अवस्थामें वह बहुत बूढ़ा तथा कमजोर हो गया था। डॉक्टरोंने कह दिया था कि ‘दो-चार वर्षमें बूढ़े होकर मर जाओगे।’ उसने दवाइयाँ बहुत खार्यों, पर लाभ न हुआ। अन्तमें निराश होकर उसने अपना काम-धंधा छोड़कर नीचे लिखे जा रहे एक उपायपर अमल किया तो उसे बहुत लाभ मालूम हुआ। यहाँतक कि ७२ वर्षकी अवस्थामें वह फिर जवान हो गया और उसने 8 मीलकी दौड़में बाजी मारी। उसने दवाइयोंकी बहुत निन्दा की है।

यह उपाय बहुत सरल है। इसमें कोई खर्च नहीं है, न बहुत परिश्रम ही करना पड़ता है और न समय हो बहुत लगता है। यह क्रिया या उपाय क्या है-एक प्रकारको अंगड़ाई है, जिससे सब अङ्गोंमें खून तेजीसे दौड़ने लगता है और शरीरमें फुर्ती आ जाती है। रोज रोज नियमित रूपसे केवल 10-15 मिनट भी ऐसा करता रहे तो कुछ दिनोंमें जवानी-सी आने लगती है। हम इसे बराबर कर रहे हैं और लाभ उठा रहे हैं।सबरे सोकर उठते ही बिस्तरपर चित्त पड़े-हो पड़े, तकिया हटाकर इन कसरतोंको करना पड़ता है।

तख्त या फर्शपर और भी अच्छा है। स्वभायात सबेरे उठते ही अंगड़ाई लेते हैं, उसीका यह विशाद है। इसमें बिस्तरपर पड़े ही पड़े एक-एक करके प्रक अङ्गको तानना (कसना) और 2-4 सेकेंड बाद एकटया ढोला छोड़ देना पड़ता है। मुट्टी कसकर दवाओं से हथेलीका खून ऊपर कलाईमें दौड़ जाता है और एकदम ढील देनेपर खून तेजीसे लौट आता है। इसी प्रकार शरीरके प्रत्येक अङ्गको बारी-बारीसे अकड़ाने (तानने) और ढीला करनेपर वहाँका खून दौड़ता है।

 बुढ़ापे में नसोंके अंदर मल जम जाता है और नसें कड़ी पह जाती हैं, इसीसे बुढ़ापे आता है। इस क्रिया (Contraction and Relaxation) से वह मल धीरे-धीरे खूनको दौड़ानेके साथ साफ होता जाता है, हटता जाता है और नसें नरम तथा लचीली होने लगती हैं, जो जवानोंकी निशानी है। उक्त अमेरिकनका कहना है कि नसोंके अंदर मल न जमने पाये तो बुढ़ापा आयेगा ही नहीं। दवाइयोंसे यह काम हो नहीं सकता, केवल परिश्रमसे तथा खूनकी दौड़ानसे यह सफाई ठीक होती है।

अतः आप भी ऊपरसे शुरू करके नीचेतक शरीरके प्रत्येक अङ्ग‌को रोज सबेरे तानकर (अकड़ाकर) एकदम ढीला कर दीजिये तो आपका बुढ़ापा कुछ दिनोंमें भागना शुरू करेगा और धीरे-धीरे जवानी (शक्ति) आने लगेगी। हाथ, गर्दन, कंधा, कमर, पेट, पीठ, पैर आदि एकके बाद एक ताने जा सकते हैं। मुँहके जबड़े, दाढ़ी, कनपटी, हथेली, भुजाएँ, पैरको पिंडली, पंजे आदि भी ताने जा सकते हैं। 

ऐसे हो और भी जो-जो अङ्ग आप तान सकें, तानिये, इधर-उधर फैलाइये, घुमाइये, करवट लीजिये। बहुत थकनेको जरूरत नहीं है। थकावट मालूम हो तो बीच-बीचमें एक आध मिनट सुस्ता लीजिये, दम ले लीजिये, हर एक अवयवको तानना और ढोला करना यही इस क्रियाका उद्देश्य है। सम्पूर्ण क्रियामें 10-15 मिनट लगते हैं, परंतु इससे लाभ अपूर्व होता है, 

प्रारम्भमें प्रत्येक अङ्गको 2-4  बार तानकर 5-7  मिनटमें खतम कर दीजिये। बादमें अभ्यास परिपक्व हो जाय, तबसंख्या धीरे-धीरे बढ़ाते-बढ़ाते 10-12 तक ले जाइये। हम तो इस क्रियाके बाद चित्त पड़े पड़े टाँगोंको ऊपर उठाकर दस-बीस बार हवामें साइकिल-जैसी चलाते हैं। इससे पेट एवं टाँगोंकी अच्छी कसरत हो जाती है और पाखाना भी साफ होता है।

आप इन कसरतोंको एक-दो महीना करके देखिये कैसा लाभ होता है। प्रत्येक अङ्गको तानते समय यदि थोड़ी-सी साँस रोक ली जाय और ढील देते समय धीरे-धीरे निकाल दी जाय तो जल्दी लाभ होगा, इसे खुली हवामें अथवा खिड़कियाँ खोलकर करना चाहिये। बहुत ठंढके दिनोंमें कंबल ओढ़े हुए भी बहुत कुछ कर सकते हैं, पर मुँह खुला रहे। बैठकर भी ये क्रियाएँ की जा सकती हैं।

आप इस क्रियाको आलस्य त्यागकर नियमितरूपसे करते रहेंगे तो बुढ़ापेके कष्ट बहुत कुछ कम हो जायँगे। बूढ़े लोगोंके लिये यह बड़े कामकी चीज है।50-60  वर्षके बूढ़ोंको इसे अवश्य करके लाभ उठाना चाहिये। 70-75 वर्षके जर्जर बूढ़े भी धीरे-धीरे कर सकते हैं।

ये थे old age healthy life style के कुछ उपाय|

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