Aarogya Anka

स्वस्थ जीवन आरोग्य अंक /आयुर्वेद के साथ

आयुर्वेद दुनिया का प्राचीनतम चिकित्सा प्रणाली है Ιऐसा माना जाता है की बाद मे विकसित हुई अन्य चिकित्सा पद्धतियों मे इसी से प्रेरणा ली गई है Ιकिसी भी बीमारी को जड़ से खत्म करने के खासियत के कारण आज अधिकांश लोग आयुर्वेद के तरफ जा रहे हैΙइस लेख मे हम आयुर्वेद चिकित्सा से जुड़ी हर एक रोग और उसके इलाज के बारे मे बताएंगे Ιआयुर्वेद चिकित्सा के साथ सभी प्रकार के जड़ी -बूटी के बारे मे तथा आयुर्वेद के 8 प्रकारों से हर तरह के रोगों के इलाज के बारे मे बताया गया हैΙ सभी पोस्टों को पढे ओर जानकारी अवश्य ले ताकि आप भी अपना जीवन आरोग्य के साथ healthy बना सके| thanks . 

बैठकर करने के आसन-

बैठकर करने के आसन-

1. मत्स्येनद्रासन-

मत्स्येनद्रासन को 5 भागों मे विभक्त करने मे आसानी होगी-

() बाए पाव का पंजा दाये पाव के मूल मे इस प्रकार रखे कि उसकी एडी टूडी मे,लगे अंगुलिया पालथी के बाहर न हो|

() दाया पाव बाये घुटने के पास,पंजा भूमिपर लगाकर रखे|

()बाया हाथ दाए घुटने के बाहर से चित डालकर उसकी चुटकी मे दाए पाव का अंगूठा पकड़े,उस पाव के पंजे को बाहर सटा कर रखे|

()दाया हाथ पीठ की ओर से फिराकर उससे बाए पैर की जांघ पकड़ ले|

() मुख तथा छाती पीछे की ओर फिराकर ताने तथा नासाग्र मे दृष्टि रखे|इसी प्रकार दूसरी ओर से भी करे|

फायदे(benefits)- पीठ,पेट,पाँव, गला ,बाहु ,कमर,नाभि के निचले भाग तथा छाती के स्नायो का अच्छा खिचाव होता है , जठरग्नि प्रदीप्त और पेट के सब रोग-आमवात,परिणामशूल तथा आंतों के सब रोग नष्ट होते है| ग्रहणी रक्तविकार ,अतिसार, कृमि,स्वास,कास,वातरोग,आदि दूर होकर स्वास्थ लाभ होता है| 

आसन

2.वृच्श्रीकासन -

आसन

कोहनी से पंजे तक का भाग भूमि पर रखकर उसके सहारे सब शरीर को संभालकर दीवाल के सहारे पाव को घुटनों मे मोडकर सिर क ऊपर रख दे|

दूसरे प्रकार से केवल पंजों ऊपर ही सब शरीर को संभाल कर रखने भी आसन किया जाता है|

फायदे(benefits)- हाथों और बाहों मे बलवृद्धि,पेट तथा आतों का,निर्दोष,होना, शरीर का फुर्तीला और हल्का होना ,मेरुदंड का शुद्ध और शक्तिशाली होन,तीली,यकृत एवं पांडु रोग आदि का दूर होना|

3. उष्ट्रासन -

आसन

व्रजासन के समान हाथों से एड़ियों को पकड़कर बैठे|पश्चात् हाथों से पावो को पकड़े हुए नितंबोको उठाये,सिर पीछे पीठ की ओर झुकावे और पेट भरसक आगे की ओर निकाले|

फायदे(benefits)- यकृत,प्लीहा,आमवात,आदि पेट के सब रोग दूर होते है,और कंठ निरोग होता है| 

4. सुप्त व्रजासन-

आसन

व्रजासन करके चित लेटे , सिर को जमीन से लगा हुआ रखे,पीठ के भाग को भरसक जमीन से ऊपर उठाये रखे,और दोनों हाथों को छाती के ऊपर रखे,अथवा सिर के नीचे रखे|

फायदे(benefits)- पेट,छाती,गर्दन और जंघाओ के रोगों को दूर करता है| 

5. निस्पंदभावासन-

इस आसन में मन का स्पंदन कम करते हुए विचारों को रोका जाता है। इसीलिए यह निस्पंदभावासन कहलाता है।

विधि –

पैर पसार कर बैठे। दोनों पैरों के बीच 12 या 18 इंच की दूरी रहे। पैर हीले रहें। शरीर के पीछे दोनों ओर दोनों हाथ ज़मीन पर रखें। सिर ऊपर उठावें । आँखें बंद रखें। धीरे-धीरे सांस लें और छोड़े।

सारे शरीर पर मन केन्द्रित करें। सभी अवयव ढीले रहे। आराम लें। अगर हाथ थक जायें तो दीवार से पीठ को सटा कर आराम लें।

लाभ –

यह शवासन की तरह शरीर के अवयवों को आराम पहुँचाता है। बाकी आसन करते समय थकावट हो तो बीच-बीच में यह आसन करना चाहिए।

6. उत्कुट पवन-मुक्तासन-

इस आसन में अशुद्ध अपान वायु बाहर निकल जाती है। इसीलिए यह उत्कुट पवन मुक्तासन कहलाता है।

विधि-

(अ) बैठ कर दोनों पैर पसारें। दोनों एड़ियाँ मिलावे। दायाँ घुटना मोड़ कर दोनों हाथों से उसे जकड़े। दायीं जाँघ पेट से लगा कर दबावे । साँस छोड़ते हुए सिर झुका कर ठोढ़ी से घुटने का स्पर्श करें। सांस लेते हुए दायाँ पैर सीधा करें।

(आ) दायें पैर की तरह, बायें पैर से भी इसी प्रकार करें।

(इ) एक-एक पैर से यह क्रिया करने के बाद, दोनों घुटने मोड़ें। दोनों जाँघों को पेट से लगा कर दबावें। ठोढ़ी दोनों घुटनों के बीच लाने का प्रयास करें। पेट में मन लगावें।

 

यह एक चक्र याने रोड है। इस प्रकार 3 या 4 रोड करें।

सभी अवस्था के लोग, चाहे वे किसी भी हालत में हों, खाली पेट यह आसन कर सकते हैं। संभव न हो तो भोजन करने के 41/2-5 घंटे के बाद यह क्रिया कर सकते हैं। प्रातः निद्रा से जागने के समय करें।

लाभ –

घुटनों का दर्द, तोंद, गैस, एसिडिटी, कब्ज एवं अजीर्ण दूर होते हैं।

7. पश्चिमोत्तानासन-

पश्चिम का मतलब है पीठ। यह पीठ को खींच कर रखनेवाला आसन है। इसलिए यह पश्चिमोत्तानासन कहलाता है।

ये क्रियाएँ करते समय आगे झुकने पर सांस छोड़ें। उठने पर साँस लें।

विधि –

1. दोनों पेर आगे की ओर पसारे। पैरों के अंगुठे एक दूसरे को छूते रहे। आगे पीछे झूलते रहें। घुटनों, पिंडलियों तथा पैरों की उंगलियों का स्पर्श हाथों से करते रहे।

2. बैठ कर दोनों पैर आगे की ओर पसारें। दोनों हाथ दोनों घुटनों पर रखें।

3. ऐसा रख कर हाथ और थोड़ा आगे पसारे। पेरों की उँगलियाँ पकड़ने का प्रयास करें।

4. पैर पसार कर, पैरों की उँगलियाँ पकड़ें। दोनों कुहनियाँ दोनों घुटनों के बगल में ज़मीन पर लगाने का प्रयास करें। माथे या नाक से घुटनों का स्पर्श करें। उपर्युक्त चार स्तरों का अभ्यास करते-करते इस चरम स्तर तक पहुँचने का प्रयास करते रहे। पीठ पर मन लगा रहे।

लाभ –

चलने और ज्यादा देर खड़े रहने के लिये पीठ की शक्ति काम आती है। वह शक्ति इस आसन से पीठ को प्राप्त होती है। शरीर की स्थूलता कम होती है। रीढ़ की हड़ी चुस्त रहती है। स्त्रियों का ऋतुस्त्राव ठीक तरह न हो तो इस आसन से वह दोष दूर होता है। यह कठिन आसन है। स्थूलकाय वाले स्त्री-पुरुषों, तोंदवालों एवं रीढ़ की हड़ी न झुका सकनेवालों को बिना जल्दबाज़ी के यह आसन बड़ी सावधानी से करना चाहिए।

8. विस्तृत पाद हस्तासन या भूनमनासन-

इस आसन में दूर रखते हुए पैर और हाथ मिलाये जाते हैं। इसीलिए यह विस्तृत पाद हस्तासन कहलाता है।

विधि –

बैठ कर दोनों पैर दोनों और सीधे पसारें।

जहाँ तक हो सके उन्हें दूर-दूर रखें। दोनों हाथ ऊपर उठावें। कमर झुकाते हुए दोनों हाथों से दोनों चरणों का स्पर्श करते हुए, छाती तथा सिर को जमीन पर टिकाने का प्रयत्न करें। झुकने पर साँस छोड़ें। साँस लेते हुए हाथ ऊपर उठावें। इस प्रकार 5 या 6 बार करें। जब सिर भूमि का स्पर्श कर सकेगा तब उस चरम स्थिति को भूनमनासन भी कहते हैं। पीठ तथा रीढ़ की हड़ी या पिंडलियों पर ध्यान लगावें।

लाभ –

पिंडलियाँ, जाँघ, कमर एवं पीठ को शक्ति मिलती है। तोंद कम होती है।

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