1. मिरगी(Miragi)रोगनाशक सफल सिद्ध अवलेह और घृत-
मिरगी(miragi) बड़ा ही भयंकर रोग है|मिरगी (miragi)क्यू और कितने प्रकार की होती है? इसे विस्तार मे जानेंगे- आयुर्वेद मे इस रोग का परीक्षित इलाज मौजूद है| ऐसे ही सफल सिद्ध मिरगी नाशक 2 प्रयोग – सिद्ध अवलेह और घृत हम लोक कल्याण हेतु पाठकों की सेवा मे प्रस्तुत कर रहे है|
इन प्रयोगों के सेवन तथा पथ्यो और परहेजो का एक वर्षतक पालन करने से कठिन-से-कठिन और पुरानी-से-पुरानी मिरगी हमेसा के लिए नष्ट हो जाती है| पथ्य के बिना औषधि-सेवन व्यर्थ है|
(क) सिद्ध अवलेह (चटनी)
Ingredients( घटक द्रव्य)-
गंभारी फल गुदेसहित , हल्दी ठोस गाठदार, सिंघाड़े की सुखी एवं ठोस( घुन रहित) गिरी अर्थात सूखे सिंघाड़े, असली ब्राम्ही बूटी, शंखपुष्पी, बड़ी जाति के बेर- वृक्ष के छाया मे सुखाए पत्ते, अनार दना मीठा, भारंगी का पंचांग, वच मीठी, खरैटी , लाल-कमल का पंचांग( फूल,पत्ते,कमलगट्टे, जड़ और नाल) तालीस पत्र, नीम और कचनार की अंतर छाल, गिलोय छाया, शुष्क कुटकी, नागकेशर, नीशोथ, मुलहठी, पिंडखजूर गुठली निकला हुआ, सोंठ,
असली काला अगर, जायफल, मालकांगनी, त्रिफला, असगंध, अम्लवेत , इमली के बीज, दारूहल्दी , मूसली-सिंबल, नेत्र बाला, नागर मोथा, विधायरा , शतावर असली पीले रंग की, काली मिर्च, इन्द्रायन की जड़, रस्त्रा के पत्ते, अतीत( ठोस घुनरहित), मरोड़ फली, कौन्च के छिलके- बीजरहित, मेहेन्दी के ताजे पत्ते छाया मे सुखाए हुए,
पीली बड़ी हरड़ का छिलका, मुनक्का बीज निकाले हुए, मजीठ, बथुआ के छाया मे सुखाए पत्ते, हरी इलाईची के बीज, दालचीनी असली, पत्रज, कूटमीठा, तगर , लाल एवं सफेद चंदन का बुरादा असली, असली वंशलोचन नीली झाईवाला- ये सभी द्रव्य 40-40 gm असली एवं नए लेले| सभी द्रव्यों की खूब कूट-पीसकर कपड़े से छान कर इसका खूब बारीक चूर्ण मैदे के समान बना ले|
अब गाय का असली घी, यह न मिले तो बादाम रोगन इतना ले ले की इस चूर्ण मे मसल-मसल कर मिलाने से कम या अधिक न हो| अब चौड़े मुह की चीनी की बर्नी मे अच्छी तरह से बादाम-रोगन(तेल) मिलाया हुआ ये चूर्ण दाल दे तथा तथा इसी चूर्ण के बराबर पीसी हुई मिश्री और मिश्री के बराबर ही असली शहद इस चूर्ण पर ऊपर से डालकर किसी साफ बड़ी करछी से कम-से-कम एक घंटे तक धीरे-धीरे मिला लीजिए| ताकि सभी द्रव्य अच्छी तरह एक जान हो जाए,
अब यह अवलेह( चटनी) सेवन के लिए तैयार है| यह मिरगी(miragi) और अनिंद्रा(anindra) रोग के effective remedies है|
सेवन विधि-
इस अवलेह को सेवन करने से पहले 2 दिन से निम्नलिखित विधि के अनुसार पेट की सफाई करे| गुलगंद 4 चम्मच, त्रिफला चूर्ण 1 चम्मच और सत ईसबगोल आधी चम्मच- सबको मिलाकर केवल रात को सोने से पहले खा ले और एक ग्लास दूध मे ‘ सिरप शंखपुष्पी’ 5 चम्मच ऊपर से पी ले| सुबह एक- दो दस्त साफ होंगे, और चित प्रसन्न होगा|
ऐसा लगातार 2-3 दिन तक करे| पेट की शुद्धि हो जाएगी| चौथे दिन से इस बनाए हुए चटनी को 1 चम्मच खाली पेट खिलाकर 1 ग्लास मीठा ठंडा किया हुआ गाय का दूध रोगी को पिलाए| इसी प्रकार दूसरी खुराक शाम को 5 बजे गाय के दूध के साथ पिलाए|
इससे 8-10 साल की मिरगी 2 महीने के सेवन कराने से एवं 20-25 साल की पुरानी और किसी भी प्रकार की मिरगी निरंतर 100 दिनों तक सेवन कराने से हमेशा के लिए विदा हो जाती है| मिरगी के अलावा यह अवलेह पागलपन, हिस्टीरिया पर भी रामबाण है|
(ख) मिरगी(miragi)नाशक सिद्ध घृत-
उपयुक्त नुस्खे की ही सभी दवाये लेकर उन सबको दरदरा कूटकर- पीसकर इसी मिश्रण मे गन्ने की जड़ , सफेद दूब , काँस और कुश की जड़े 40-40 gm लेकर उन्हे भी दरदरा( मोटा-मोटा) कूटकर 16 गुने पानी मे डालकर खूब उबाले ले| जब पानी 4 गुण शेष रह जाय तो आग से उतारकर ढाक कर रख दे|
ठंडा होने पर मशल कर सूती कपड़े मे छान ले| फिर इसमे संभाग काली बकरी का दूध और 4 शेर गाय का घी मिलाकर और धीमी आच पर रखकर तबतक पकाये जब तक की सारा पानी बचकर सिर्फ घी शेष न बच जाए| अब इसे ठंडा करके चीनी मिट्टी की बर्तन मे रख ले| सफल सिद्ध घी तैयार है|
नोट:- इस घी को बनाने से पहले इसमे मिश्री ,शहद, बादाम-रोगन न मिलाए|
सेवन विधि- पूर्वोंतक रीति से 2-3 दिनोंतक हल्का जुलाब देकर पेट की सफाई कर दे और 1-1 चम्मच सुबह-शाम यह घी खाकर ऊपर से 1-1 ग्लास गुनगुना दूध पीलाया करे| 60 दिनों मे बहुत पुरानी मिरगी(miragi) रोग हमेसा के लिए चला जाएगा|
सपनी सुबिधा के अनुसार इसमे से कोई-सी भी एक दवा बनाकर सेवन कराए| इस घी से पगलपन पर स्त्रीओ के हिस्टीरिया भी समूल नष्ट हो जाता है|
विशेष- अवलेह(चटनी) या घृत(घी) के सेवन काल मे सप्ताह मे एक दिन दवा बंद रखकर पूर्वोक्त जुलाब अवश्य दे| दिन मे 2 समय दवा खिलाए और रात को जुलाब दे दे| अगले दिन दवा न दे| दूसरे दिन से पुनः दवा खिलाना शुरू करे| इससे विशेष तथा स्थायी लाभ होता है|
परहेज( क्या-क्या ना खाए) –
तले पदार्थ, तेल, गुड़ , सभी खटाइयाँ, मट्ठा, दही, चावल, आलू, अर्वी , बैगन, ब्रेड, बिस्कुट, टोस्ट, फूलगोभी, मटर, चनेका बेसन, उड़द, मसूर, मांस, मदिरा, मछली, मादक- द्रव्य आदि का 1 साल तक कदापि सेवन न करे| मांस, मदिरा द्रव्यों का जीवनभर कदापि सेवन न करे| मेवा और मैदे से बने पदार्थ न खाए|
पथ्य( क्या – क्या खाए)-
मूंग और अरहर की डाले, पालक, बथुआ, चौलाई, मेथी की भाजी, मेथी दाने का साग, पत्ता गोभी, परवल, टिंडा, लौकी, तुरई, गिलकी, गेंहू की रोटी, दलिया, दूध, घी, शक्कर, मीठे सेब, चीकू, पपीता, पेठे की मिठाई, आदि का सेवन करे| पथ्य के बिना औषधि सेवन व्यर्थ है| औषध- सेवन काल मे ब्रम्हाचर्य पालन अवश्य करे|
2. अनिंद्रा(anindra)- बनाम विकृति मानस-jivan
आज की मानसिकता मे जिनेवाला व्यक्ति अप्राकृतिक कृत्रिम दिनचर्या का अवलम्बन लेकर मानसिक अशान्ति, चिंता, तनाव आदि के शिकंजे मे पूर्णतया जकड़ चुका है| इस भौतिकवादी युग मे वह न जाने कितने प्रदूषणों से बुरी तरह आक्रांत है|
ऐसी अशान्ति मे गहरी सुखद निंद्रा कहा? किन्तु आयुर्वेद मे इस अनिंद्रा(anindra) का भी नितांत हानिरहित इलाज है- सर्प गंधा घनवटी 2 गोली, दिमागदोषहरी 2 गोली, खमीरा गावजबान अंबरी जवाहर वाला 1 चम्मच, सिरप शंखपुष्पी 4 चम्मच- यह सब एक मात्रा है| केवल रात को सोते समय पहले ये खमीरा खाए| फिर एक कप दूध 4 चम्मच सिरप शंखपुष्पी घोल ले| फिर उन चारों गोलिओ को उस 1 कप दूध से निगल ले| रोगन लबूब सब- यह यूनानी दवाओ से निर्मित एक केशतेल है|
इसे केवल रात को सोते समय ही सिरके बीच मे चुपड़कर 15 मिनट तक हल्के-हल्के मले| तीसरे दिन से गहरी नींद सुखद नींद आने लगती है| 20-25 दिनों तक कर ले| स्थायी लाभ हो जायगा| इसके बाद इन दवाओ का उपयोग छोड़ दे| इसकी आदत नहीं पड़ती| केवल रात को ही उपयोग करे, दिन मे न करे|