शर्बत प्रकरण-
वर्तमान समय मे आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति मे शर्बतो के प्रयोग का चलन खूब बढ़ रहा है| इसको अनुपात रूप मे भी प्रयोग किया जाता है| शर्बतो के अनुपात से डी गई औषधि को बच्चे, जवान, बूढ़े/ स्त्री-पुरुष( समस्त आयु वर्ग के स्त्री- पुरुष) बड़ी ही रुचि पूर्वक सेवन करते है|तथा कितने ही रोगों की चिकित्सा तो क्वाथो , आसवारिष्टो चूर्ण, अवहेल आदि की भांति केवल शर्बत मात्र प्रयोग से ही हो जाती है|
समान्यतः शर्बत स्वाद मे मधुर तथा प्रकृति मे सौम्य पेय होने के कारण सेवन करने मे भी अत्यंत ही सुबिधा पूर्ण है| औषधि प्रयोग मे काम आने वाले शर्बत प्रायः वनस्पतियों के स्वरस, क्वाथ, अर्क तथा फलों के रस, चीनी, मिश्री आदि से बनाए जाते है|
♦ शर्बत ण अधिक गाढ़ा होना चाहिए ण् अधिक पतला होन चाहिए| क्युकी गाढ़े शर्बत बोतलों मे जम जाते है तथा पतले शर्बत जल्द ही खराब हो जाते है| जबकि ठीक प्रकार से ( न अधिक गाढ़ा न अधिक पतला) बने हुए शर्बत बहुत समय तक रखे रहने पर भी खराब नहीं होते है| कुछ लोग शर्बत को बिगड़ने या खराब होने से बचाने के लिए उनमे ” विकृति निरोधक“( preventive drugs) का भी मिश्रण करते है| हालांकि ऐसा करना कोई बुरा/ हानिकारक नहीं है| किन्तु हमारी निजी राय मे ठीक विधि से बनाए गए स्वयं ही प्राकृतिक- विकृति निरोधक होते है|
यही कारण है की हमारे देश भारत मे आम , आँवला ,सेब, बिहिदाना आदि अनेक फलों की विकृति से बचाने के लिए चीनी के शर्बत अर्थात चाशनी मे रखने की विधि प्राचीन काल से चली आ रही है|इससे यह स्वतः ही शुद्ध हो जाता है की- शर्बत मे विकृति से खुद बचे रहने तथा दूसरे पदार्थों को बचाने का गुण natural रूप से विधमान है|शर्बत 1/½ तार की गाढ़ी चाशनी होनी चाहिए|
आजकल द्रव्य पदार्थों की घनता/ गाढ़े पन को नापने के “घनता मापक” यंत्र भी बन गए है, जो बाजार मे उपलब्ध है, जिनको “हाइड्रोमीटर”(hydrometer) कहा जाता है| शर्बत के चाशनी को एक लंबे नली ( जैसे कांच के ग्लास) के 3ek4 भाग भरकर उसमे hydrometer डालकर देखने से जीतने नंबर को अंक तक हाइड्रोमीटर चाशनी मे डूब जायगा|उतने ही नंबर की चाशनी की घनता मानी जायगी|शर्बत की घनता गरम अवस्था मे 1200 नंबर से 1250 नंबर तक तथा शर्बत ठंडा होने पर 1250 से 1300 नंबर तक रहना चाहिए|
इससे अधिक नंबर के घंटा वाली चाशनी के शर्बत बोतलों मे जम जाता है| शर्बतो को जमने से बचाने के लिए कुछ लोग प्रति 10 शेर चीनी मे 3 माशा के हिसाब से फिटकरी का चूर्ण चाशनी बनाते समय मिलाते है( किन्तु इससे शर्बतो के रंग मे पीलापन आ जाता है)|
तथा कितना ही लोग प्रति 10 शेर चीनी मे 9 माशा के हिसाब से नींबू सत्व पीसकर चाशनी बनाते समय मिलाते है|( इससे शर्बत के जमने से बचने के अतिरिक्त रंग रूप मे स्वच्छता और स्वाद मे रोचकता भी आती है|) शर्बत बनाने के काम मे लिए जाने वाले स्वरस , फलरस, क्वाथ, जल व अर्क आदि ताजा ही लेने चाहिए|चीनी साफ स्वच्छ, अच्छी मिठास दार सफेद रंग की तथा मोटे दाने वाली लेनी चाहिए| मोटे दाने वाली चीनी मे मैल बहुत कम निकलता है|
♦ शर्बत की चाशनी बनाते समय मिलाये गए नींबू सत्व मे चीनी का मैल काटने का भी गुण होता है|कुछ लोग चाशनी बनाते समय उसमे पानी मिले हुए दूध के छीटे 3-4 दे देकर भी चाशनी का मैल साफ करते है|ऐसा करने से चाशनी मे जितना भी मेल होता है, वह चाशनी एक ऊपर आकार थर की तरफ एकत्रित हो जाता है|उसको लोहे के झारे से सावधानी पुवर्क निकालकर फेंक देना चाहिए|शर्बत बनाने व छानने के लिए ( छानकर रखने के लिए) पात्र तांबा या पीतल के बने रांगा की कलई किए हुए अथवा स्टेन लेस् स्टील के बने हुए होना चाहिए|
शर्बतो के अधिक समय तक बिना बिगड़े सुरक्षित रखने के लिए यह ध्यान रखा जाना अत्यावश्यक है की की शर्बतो को गर्म स्थान पर न रखा जाय|
♦ शर्बतो मे रंग या खुश्बू आदि मिलना हो तो – गरम शर्बत मे कदापि नहीं मिलाना चाहिए| शर्बत के ठंडा हो जाने पर शीशी मे भरते समय खुश्बू /एसेंस मिलाकर तुरंत( इत्र आदी) खुश्बू देने के गुणों की दृष्टि से कोई आवश्यक तो नहीं है, किन्तु शर्बतो को आकर्षण व उत्तम वर्ग का बनाने हेतु रंग या खुश्बू देना कोई बुरा/हानिकारक भी नहीं है|
♦ आजकल बहुत से लालची स्वभाव के लोग अधिक मुनाफा कमाने के गर्ज से चीनी के स्थान पर चीनी का सत्व( सैक्रिन) आदि हानिकारक द्रव्यों का प्रयोग करके सस्ते/घटिया शर्बत भी बनाते देखे जाते है|
अतः हम अपने पाठक वर्ग से यह कहना चाहते है की बाजार से शर्बतो को खरीदते समय उतमता का विचार करते हुए किसी प्रामाणिक/विश्वसनीय औषध निर्माण संस्था/ फार्मेसी द्वारा निर्मित( बनाए गए) शर्बतो को खरीदकर प्रयोग करना चाहिए|
1. अड़ूसा शर्बत:
अड़ूसा की मूल छाल 1 सेर लेकर 8 सेर पानी मे पकाकर विधिवत चतुर्थान्स क्वाथ करके साफ मोटे कपड़े अथवा फ़िल्टर से छानकर पुनः साफ कलईदार कढ़ाई अथवा भगौना आदि मे डालकर 4 शेर चीनी मिलाकर विधिवत शर्बत तैयार करके ठंडा होनेपर छानकर साफ-स्वच्छ शीशियों मे भरकर तथा लेबिल लगाकर सुरक्षित रख ले|
मात्रा व अनुपात-
(वयस्कों के लिए) 2 तोला से 4 तोला तक 24 घंटे मे 2-3 बार समान भाग पानी मिलाकर सेवन कराए|
गुण व उपयोग-
यह अड़ूसा शर्बत खाँसी, श्वास(दमा) , प्रतिश्याय/जुकाम, रक्तपित, रक्तप्रदर,रक्तार्श (खूनी बवासीर) आदि रोगों मे स्वतंत्र रूप से ( यू ही अकेले) अथवा औषधियों के अनुपात रूप से प्रयोग कराए| उत्तम लाभ होगा|
2. अनार का शर्बत:
मीठे अनार ( बेदाना) का रस 1 सेर लेकर इतना पकाये की यह रस ½ सेर रह जाय| तदुपरांत उसमे आधा सेर पानी और 2 सेर चीनी मिलाकर विधिवत शर्बत बनाकर ठंडा होने पर साफ मोटे कपड़े से छान के उसमे खाने का तरल गुलाबी रंग और अनार् का एसेंस मिलाकर शीशियों मे भरकर सुरक्षित रख ले|
मात्रा व अनुपात-
(वयस्कों के लिए) 3 ½ तोला से 5 तोला 1 समान भाग पानी मिलाकर 24 घंटे मे 2-3 बार या आवश्यकतानुसार सेवन कराए|
गुण व उपयोग-
यह शर्बत मन को प्रसन्न रखने वाला, प्यास मिटाने वाला, गर्मी अर्थात दाह को शांत करने वाला, श्रम अर्थात थकावट को मिटाने वाला, दीपन-पाचन, दीपन-पाचन, सुमधुर व रुचिवर्धक और पीने मे अत्यधिक स्वादिष्ट है| बहुत से लोग ग्रीष्म ऋतु मे स्वयं तथा अपने पारिवारिक सदस्यों मे इस शर्बत का खूब व्यवहार करते है|
3. उन्नाव का शर्बत:
असली उन्नाव आधा सेर लेकर यवकूट कर( जरा स कूटकर) 2 सेर पानी मे पकाये जब 1 सेर पानी शेष रहे तब साफ स्वच्छ मोटे कपड़े से छानकर 3 सेर चीनी डालकर विधिवत शर्बत तैयार करके छानकर साफ-स्वच्छ शीशियों मे भरकर व लेबिल लगाकर सुरक्षित रख दे|
मात्रा व अनुपात-
(वयस्कों के लिए) 2 तोला से 4 तोला जल मिलाकर दिन मे 2 बार सुबह-शाम सेवन कराए|
गुण व उपयोग-
उन्नाव शर्बत का सेवन करने से क्षय, खाँसी मे कफ के साथ खून निकलना, रक्तपित, यौवन पीडिकाये(मुहासे), पितविकार, आदि मे खूब लाभ होता है|यह त्वचा के वर्ण को निखारता हैतथा मुख मण्डल को कान्ति युक्त बना देता है| स्वाद मे सुमधुर व स्वादिष्ट है|
4. केवड़ा का शर्बत:
केवड़ा का जल 1 पाव, पानी 1 सेर, चीनी 2 ½ सेर और साइट्रिक एसिड 15 रती से विधिवत शर्बत तैयार कर ले और ठंडा होनेपर छानकर खाने का हरा रंग (तरल) यथा आवश्यकतानुसार मिलाकर तथा एसेंस केवड़ा(आवश्यकतानुसार) देकर साफ शीशियों मे भरकर सुरक्षित रख ले|
मात्रा व अनुपात-
(वयस्कों के लिए) 2 ½ तोला से 5 तोला तक 1 गिलास( 200 ml) पानी मे मिलाकर सेवन कराए|
गुण व उपयोग-
यह शर्बत अत्यंत स्वादिष्ट, सुमधुर, दीपन, पाचन, रुचिवर्धक और मन को प्रसन्न करने वाला है| इसके अतिरिक्त यह शर्बत आमाशय को शांति प्रदान करता है, ,मूत्र साफ लाता है, शारीरिक और मानसिक थकावट को मिटाता है, मस्तिष्क को शांति प्रदान करता है, प्यास को मिटाकर तृप्ति और आनंद प्रदायक है| अंतर्दाह, मूत्रकृच्छ और ग्लानि नाशक है|
5. खस का शर्बत:
खस का अर्क 1 पाव पानी 1 सेर, चीनी 2½ सेर और नीबू सत्व 15 रत्ती मिलाकर विधिवत् शर्बत तैयार कर लें। ठण्डा होने पर मोटे कपड़े से छानकर आवश्यकतानुसार खाने वाला तरल हरा रंग और ऐसन्स खस आवश्यकतानुसार मिलाकर शीशियों में भर कर सुरक्षित रख लें।
गुण व उपयोग-
यह शर्बत अत्यन्त जायकेदार व सुमधुर है। प्यास, अन्तर्दाह, मूत्र जलन, मूत्रकृच्छ, श्रम, ग्लानि तथा शारीरिक व मानसिक थकावट नाशक, तृप्ति कारक व आनन्द दायक है। रक्तपित्त, पित्तज्वर, पित्त विकार, नेत्रों में लालिमा व जलन आदि दूर करता है। बहुत से जानकार लोग गर्मी की ऋतु में अपने व पारिवारिक सदस्यों में इसका प्रतिदिन व्यवहार करते है।
6. गिलोय का शर्बत:
प्रथम विधि-
ताजा गिलोय का रस 1 सेर को लेकर आग पर इतना पकायें कि गिलोय का शर्बत वह आधा सेर रह जाये। तदुपरान्त उसमें 1 सेर पानी और 3 सेर चीनी मिलाकर विधिवत् शर्बत बनाकर ठण्डा होने पर शीशियों में भरकर सुरक्षित रख लें।
द्वितीय विधि-
आधा सेर गिलोय को कूट कर आठ गुणा जल में भिगोकर 1 सेर क्वाथ बचने पर छानकर उसमें या गिलोय के 1 सेर अर्क में 2 सेर चीनी मिलाकर विधिवत् शर्बत बनाकर शीशियों में भरकर सुरक्षित रख लें।
मात्रा व अनुपात-
(वयस्कों के लिए) 2 से 4 तोला शर्बत को जल में मिलाकर दिन में 2 बार सुबह-शाम सेवन करायें।
गुण व उपयोग-
यह गिलोय शर्बत समस्त प्रकार के ज्वरों को मिटाने वाला, ज्वर के बढ़े हुए वेग को कम करने वाला, पित्त विकार, मूत्र की जलन, हृदय व छाती की जलन, नेत्रों की जलन व नेत्र लाल रहना, (सुर्खी/लालिमा छायी रहना),मूत्रकृच्छ्र, वातरक्त, हलीमक, रक्तपित्त, जीर्णज्वर, धातुगत ज्वर, प्यास की अधिकता, दुर्गन्धयुक्त पसीना निकलना, पूयमेह (सूजाक) तथा प्रमेह आदि विकारों को नष्ट करने हेतु अत्यन्त ही उपयोगी है|
7. गुलाब का शर्बत:
1. गुलाब का जल 1 सेर में चीनी 1½ सेर मिलाकर शर्बत बनाकर तुरन्त ही छानकर रख लें।
2. गुलाब का जल 1 सेर चीनी 2½ सेर नीबू सत्व (साइट्रिक एसिड) आधा ड्राम मिलाकर विधिवत् शर्बत बना लें। खाने वाला गुलाबी तरल रंग आवश्यकतानुसार तथा गुलाब की खूशबू (ऐसन्स) मिलाकर व छानकर शीशियों में भर लें।
मात्रा व अनुपात-
(वयस्क रोगियों के लिए) 2 तोला से 5 तोला तक 1 गिलास (200 मि०लि०) पानी में मिलाकर 24 घण्टे में 2-3 बार सेवन करें।
गुण व उपयोग-
गुलाब का शर्बत अत्यन्त सु-मधुर और स्वादिष्ट है। प्यास की अधिकता, अन्तर्दाह, थकावट, अवसाद, ग्लानि, भ्रम, चित्त की अस्थिरता, मूत्र की जलन, मूत्रकृच्छ्र, नेत्रों की जलन व लालिमा आदि विकार नाशक है। बहुत से लोग ग्रीष्म ऋतु में गुलाब के शर्बत का प्रतिदिन सेवन करके गर्मी की अधिकता म होने वाले विकारों से सुरक्षित रहते है।
8. चंदन का शर्बत:
(1) आधा पाव सफेद चन्दन का बुरादा लेकर आधा सेर गुलाब जल में रात्रि के समय भिगो दें। प्रातः समय हल्का सा जोश देकर (उबालकर) 1½ पाव जल शेष रहने पर मल कर छान लें। तदुपरान्त उसमें आधा सेर मिश्री मिलाकर विधिवत् शर्वत बना लें।
नोट-उबालते समय ढक्कन लगा दें, अन्यथा तेल उड़ जाता है।
(2) सफेद चन्दन का अर्क 1 पाव, पानी 1 सेर, चीनी 2½ सेर, नीबू सत्व 15 रत्ती मिलाकर शर्बत बना लें। खाने वाला पीला रंग और खुशबू (ऐसन्स) आवश्यकतानुसार मिलाकर शीशियों में भर कर सुरक्षित रख लें।
मात्रा व अनुपात-
(वयस्कों के लिए) यह (चन्दन का) शर्बत भी अत्यन्त स्वादिष्ट व सुमधुर, शीतवीर्य, मन-मस्तिष्क को ठण्डक/तरावट पहुँचाने वाला हे। अन्तर्दाह, प्यास की अधिकता, क्लान्ति, अवसाद, भ्रम, मूर्च्छा, मूत्र लाल या पीले वर्ण का होना, मूत्र जलन के साथ आना, नाक व मुख में खुशकी रहना, बढ़ा हुआ ज्वर का वेग, रक्तपित्त, पित्त विकार, सूजाक रोग तथा ग्रीष्म ऋतु में होने वाले विकारों आदि में उत्तम गुणकारी है। बहुत से लोग ग्रीष्म ऋतु में इसका प्रतिदिन प्रयोग करते हैं।
9. नीलोफर का शर्बत:
नीलोफर के फूल 10 तोला लेकर 1 सेर पानी मे रात्री के समय भिगो दे और सुबह के समय पकाकर ½ सेर (आधा सेर) शेष रहने पर। सेर चीनी डाल कर शर्बत ठण्डा होने पर बोतलों में भरकर सुरक्षित रख लें।
मात्रा व अनुपात-
(वयस्क मात्रा) 1 तोला शर्बत पानी या गाबजबां अर्क 1-2 तोला में मिलाकर सेवन करें।
गुण व उपयोग-
यह शर्बत पित्त की तीक्ष्णता को कम करता है और पिपासा सन्ताप का शमन करता है। हृदय को बल प्रदायक है। अन्तर्दाह, गर्मी व पित्त विकारों तथा रक्तपित्त और शुष्क कास (ड्राई कफ) में उत्तम लाभकारी हैं।
10. नींबू का शर्बत:
नीबू के रस में 2½ गुणा शक्कर (चीनी) की चाशनी बना लें और गर्म, गर्म ही छान लें (क्योंकि यह ठण्डा होने पर छनता नहीं हैं।)
मात्रा व अनुपात-
(वयस्कों के लिए) 1 तोला से 2 तोला तक आवश्यकतानुसार जल में मिलाकर सेवन करें।
गुण व उपयोग-
इस नीबू शर्बत के सेवन करने से मन्दाग्नि, पित्त विकार, अरूचि, तृषा, जी मिचलाना, अजीर्ण, मलावरोध, तथा रक्तदोष आदि दूर होते हैं। अग्नि प्रदीप्त होती है। ग्रीष्म ऋतु में सूर्य के ताप (धूप) में घूमने-फिरने से उत्पन्न व्याकुलता और पित्त प्रकोप सत्वर दूर होते हैं। सन्ताप और दाह शान्त होता है। मन प्रसन्न/प्रफुल्लित रहता है और थकावट दूर होती है।
11. बेल का शर्बत:
बेल के अच्छी प्रकार से पके हुए, ताजा फलों के गुदा आधा सेर लेकर 2 सेर पानी में मिलाकर व आग पर पकाकर । सेर पानी शेष रहने पर छानकर 2 सेर चीनी ‘डालकर शर्बत बनाकर ठण्डा होने पर छान कर बोतलों में भरकर सुरक्षित रख लें।
मात्रा व अनुपात-
(वयस्क मात्रा) 2 से 4 तोला तक आवश्यकतानुसार पानी में मिलाकर दिन में 2-3 बार सेवन करें।
गुण व उपयोग-
बेल का शर्बत प्रवाहिका, अतिसार, विशेषकर रक्तातिसार, संग्रहणी, आमदोष, खूनी बवासीर, रक्तप्रदर, पुराना कब्ज, मानसिक सन्ताप, अवसाद, भ्रम, मूर्च्छा और क्लम को नष्ट करता है। हृदय को उत्तम बल प्रदायक है तथा रस. रक्त आदि धातु वर्द्धक भी हैं।
12. ब्राह्मी का शर्बत:
ब्राह्मी 2 छटांक, शंखपुष्पी आधा छटांक इन दोनों को लेकर शाम के समय 3 सेर आधा पानी में भिगो दें और सुबह के समय चूल्हा/आग पर पकाकर 2% सेर पानी शेष रहने पर छानकर 5 सेर चीनी और नीबू सत्व 30 रत्ती डालकर शर्बत बना लें और ठण्डा होने पर छान कर बोतलों में भकर रखें। इसमें खाने वाला हरा तरल रंग आधा या एक ड्राम भी आवश्यकतानुसार मिला सकते है, इससे रंग अच्छा हो जाता है|
मात्रा व अनुपात-
(वयस्क मात्रा)1 से 2 तोला तक आवश्यकतानुसार पानी में मिलाकर दिन में 2-3 बार दें।
गुण व उपयोग-
यह ब्राह्मी का शर्बत दिमागी कमजोरी, उन्माद, अपस्मार, हिस्टीरिया, मूर्च्छा, याददाशत की कमी, सिरदर्द, मानसिक दुर्बलता, स्नायु दौर्बल्य आदि विकारों को नष्ट करने में अत्यन्त ही गुणकारी है। स्मरण शक्ति को बढ़ाने और दिमाग को पुष्ट करने में सुप्रसिद्ध है। यह शर्वत गर्मी को शान्त करता है और चित्त, भ्रम, अनिद्रा, ग्लानि आदि को मिटाता है।
13. फालसा का शर्बत:
फालसा का रस 30 तोला और चीनी 11% सेर मिलाकर विधिवत् शर्बत बना लें तथा ठण्डा होने पर छानकर बोतलों में भर कर सुरक्षित रख लें।
मात्रा व अनुपात-
(वयस्क मात्रा) 2 से 4 तोला तक शर्बत शीतल जल मिलाकर आवश्यकतानुसार सेवन करें।
गुण व उपयोग-
यह फालसा का शर्बत आमाशय व हृदय को बल प्रदायक तथा यकृत की ऊष्मा और तृष्णा शामक है। वमन व अतिसार नाशक है। इसके अतिरिक्त यह मल-मूत्र का शोधक है। यह शर्बत अत्यन्त स्वादिष्ट, रोचक व शीतवीर्य है जो मन को प्रसन्न रखता है। चित्त, भ्रम, मानसिक अशान्ति और बेचैनी को दूर करता है।
14. रक्तशोधक शर्बत:
उशवा 8 तोला, मंजीठ 4 तोला, सौंफ 2 तोला, हंसराज व गावजवां 1-1 तोला. उन्नाव 25 नग और सपिस्तान 25 नाग लेकर जौकुट कर के रात्रि को 8 गुणा पानी में भिगो दें और प्रातः समय विधिवत् क्वाथ करें। अष्टमांश जल शेष रहने पर उतारकर छान लें और बोतलों में भर लें।
मात्रा व अनुपात-
(वयस्क मात्रा) 1½ तोला से 2½ तोला तक आवश्यकतानुसार जल में मिलाकर दिन में 2 बार सेवन करायें।
गुण व उपयोग-
यह रक्तदोष शर्बत-रक्तदोष, उपदंश (सिफलिस), पूयमेह/सूजाक (गोनोरिया), कुष्ठ (लेप्रोसी), फोड़ा-फुन्सी, वातरक्त, दाद, विसर्प, खाज-खुजली. एक्जिमा अगदि रोगों में अत्यन्त ही हितकर है। यह रक्त को शुद्ध साफ करता है. रक्त वृद्धि करता है और त्वचा के वर्ण को निखारता है।
15. संतरा का शर्बत-
अच्छी क्वालिटी का मीठा पका हुआ सन्नारा के रस में 2% गुणा चीनी की चाशनी बनाकर गर्म-गर्म ही छान लें और ठण्डा होने पर बोतलों में भरकर सुरक्षित रख लें।
मात्रा व अनुपात-
(वयस्क मात्रा) 2 से 4 तोला तक आवश्यकतानुसार पानी में मिलाकर दिन में 2-3 बार सेवन करें।
गुण व उपयोग-
यह सन्तरा का शर्बत अत्यन्त स्वादिष्ट, मन को प्रसन्नता प्रदायक, थकावट नाशक, प्यास, दाह, क्लान्ति और अवसाद को मिटाने वाला है, दीपनपाचन और बल व रक्त वर्द्धक और त्वचा के वर्ण को निखारता है।
16. सेब का शर्बत:
सेब का रस 1 पाव, मिश्री अथवा चीनी आधा सेर लेकर उनका विधिवत् शर्बत बनाकर ठण्डा होने पर छान कर बोतल में भरकर सुरक्षित रख लें।
मात्रा व अनुपात-
(वयस्क मात्रा) 1 तोला इस (सेब का) शर्बत को अर्क गाबजवां 5 तोला में मिलाकर सेवन करें।
गुण व उपयोग-
यह सेब का शर्बत हृदय को पुष्ट और उल्लसित करता है। हृदय की धड़कन, अतिसार और वमन में अत्यन्त लाभकर है। मानसिक अशान्ति, भ्रम, मानसिक कमजोरी, अवसाद और थकावट आदि को दूर करता है। यह शर्बत उत्तम बलवर्द्धक और रस, रक्त आदि धातुवर्द्धक भी है।
17. शंखपुष्पी का शर्बत:
शंखपुष्पी आधा पाव, हरिद्वार की ब्राह्मी आधा छटांक लेकर शाम के समय 3 सेर आधा पाव पानी में भिगो दें और सुबह के समय अग्नि पर पकायें। 2½ सेर पानी शेष रहने पर कपड़े से छानकर 5 सेर चीनी और नीबू सत्व (साइट्रिक एसिड) 30 रत्ती (1 ड्राम) मिलाकर विधिवत् शर्बत बनाकर ठण्डा होने पर छानकर बोतलों में भरकर सुरक्षित रख लें। इसमें खाने वाला हरा तरल रंग । ड्राम अथवा ड्राम (आवश्यकतानुसार) मिला सकते हैं। इससे शर्बत का रंग अच्छा होता है।
मात्रा व अनुपात-
(वयस्क मात्रा) । तोला से 2 तोला तक आवश्यकतानुसार पानी में मिलाकर दिन में 2 बार (सुबह-शाम) सेवन करायें।
गुण व उपयोग-
इस शंखपुष्पी शर्बत के सेवन करने से मानसिक शक्ति/बुद्धि और स्मरणशक्ति बहुत ही बढ़ती है। दिमागी कमजोरी के कारण जरा सी भी दिमागी मेहनत का काम करने से होने वाली दिमागी थकावट और सिरदर्द नष्ट होता है। उन्माद, अपस्मार, मूर्च्छा, हिस्टीरिया आदि विकारों को नष्ट करता है। मानसिक अशान्ति और चित्त विभ्रस को भी नष्ट करता है। स्नायु दौर्बल्य की मिटाता है और दिमाग को पुष्ट करता है।