Aarogya Anka

आयुर्वेद दुनिया का प्राचीनतम चिकित्सा प्रणाली है Ιऐसा माना जाता है की बाद मे विकसित हुई अन्य चिकित्सा पद्धतियों मे इसी से प्रेरणा ली गई है Ιकिसी भी बीमारी को जड़ से खत्म करने के खासियत के कारण आज अधिकांश लोग आयुर्वेद के तरफ जा रहे हैΙइस लेख मे हम आयुर्वेद चिकित्सा से जुड़ी हर एक रोग और उसके इलाज के बारे मे बताएंगे Ιआयुर्वेद चिकित्सा के साथ सभी प्रकार के जड़ी -बूटी के बारे मे तथा आयुर्वेद के 8 प्रकारों से हर तरह के रोगों के इलाज के बारे मे बताया गया हैΙ सभी पोस्टों को पढे ओर जानकारी अवश्य ले ताकि आप भी अपना जीवन आरोग्य के साथ healthy बना सके| thanks . 

स्वास्थ जीवन सूत्र :

मनुष्य अपने शरीर को स्वास्थ रखे बिना अपने लक्ष्य तक नहीं पहुच पाता  हैΙकर्म , ज्ञान , भक्ति, उपासना और पुरुसार्थ के समुचित साधन स्वास्थ जीवन मे ही संभव हो सकते है ,जीवन मे गलत रहन -सहन का कुप्रभाव बढ़त जा रहा हैΙ  

                                हमलोगों के सहज स्वाभाविक गुण – प्रेम ,सहानुभूति ,सेवा  तथा सदव्यावहार आदि बहुत तेजी से समाप्त होते जा रहे है Ιऔर इनके जगह पर घृणा ,भय ,ईर्ष्या ,राग -द्वेष आदि तेजी से बढ़ते जा रहे है Ιऔर ऐसे सावभाव से कितने तरह के रोग क बीज पनप रहे है Ιआजकल लोग स्वास्थ तो रहना चाहते है , पर इसके लिए डॉक्टरी दवाओ का उपयोग करते है ,इसके उपयोग से रोग तो छुप जाते है but इसके बाद बहुत सारी छोटी – मोटी बीमारियों से परेशान रहते है, इसके बार बार डॉक्टरी दवाइयों की जरूरत पड़ती हैΙ 

1. स्वस्थता का रहस्य :

→रोगों के उपचार से अच्छा रोगों से बचना बेहतर है Ιअगर हम try करे और स्वास्थ संबंधी कुछ नियमों का नियमित पालन करे तो जीवन भर स्वास्थ रह सकते है Ι

                   सबसे पहले ये जानना आवश्यक है की स्वास्थ कौन है -वास्तव मे मनुष्य के सभी अंग अपने – अपने कार्य को करने मे समर्थ होΙ शरीर न अधिक  मोटा हो न अधिक पतला ,तथा मन और दिमाग पूरी तरह control हो Ι स्वास्थ रहने के लिए शरीर और मन दोनों का स्वास्थ रहना आवश्यक है Ι 

                    मन की प्रेरेणा से ही शरीर को कार्य करने की प्रेरणा मिलती है Ιअस्वस्थ मन से किया गया कार्य कभी भी पूर्ण नहीं होता हैΙ

2. स्वास्थ की रक्षा :

→मानव शरीर भगवान के द्वारा बनाया गया एक स्वचालित जटिल यंत्र है ,जिसमे एक ही समय मे बिभिन्न कार्य का सम्पादन करते है Ιयदि हम इनके देख-भाल ,रख -रखाव पे ध्यान नहीं देंगे तो हर पल इनकी कार्य क्षमता खत्म होती जाएगीΙ और हमारा शरीर रोगों से घिर जाएगा ,अतः जरूरी है की हम इन्हे सही ढंग से रख रखाव करे Ι स्वास्थ्य रहने के लिए निम्नलिखित नियमों का पालन करे :

  1. सामर्थ्य अनुसार व्यायाम करेΙ 
  2. भरपूर निंद्रा ले तथा आराम करे Ι
  3. आरामदायक वस्त्रों का धारण करे Ι
  4. उठने बैठने की उचित मुद्रा अपनाए Ι
  5. शरीर को साफ ओर सवाक्छ रखे Ι 
  6. उचिर मात्र मव पोस्टिक भोजन ग्रहण करेΙ 
  7. असत स्वभाव से बँचित रहे 
  8. तनाव मुक्त रहे Ι
  9. शरीर की मालिश नियमित करेΙ 
  10. सप्ताह मे एक बार उपवास करेΙ  
स्वास्थ जीवन सूत्र

3.:निरोग रहने मे सहायक कुछ सरल बाते:

1. प्रातःकाल उठकर कुल्ला करके आधा लीटर पानी पीयें। इसे उषःपान कहते हैं। इससे क़ब्ज़ नहीं होता, पेट साफ रहता है।

2.  सप्ताहमें एक बार छोटी हर्रेका चूर्ण ३ ग्राम, ईसबगोल भूसी ३ ग्राम मिलाकर रातमें गुनगुने पानीसे लें, यह विरेचक है।

3.  7 बादाम, 7 मुनक्का, 7 काली मिर्च और 14 बड़ी इलायचीके दाने मिलाकर पीस लें। थोड़ी- सी चीनी मिलाकर गर्मियोंमें शर्बत बनाकर तथा सर्दियोंमें चटनीके रूपमें लें। इससे शरीरको ऊर्जा मिलेगी। बादाम गिरी भिगोकर ऊपरका छिलका हटा दें और मुनक्काके बीज हटा लें।

4.  6 ग्राम चना, 6 ग्राम मूँग, 6 ग्राम गेहूँ भिगोकर अंकुरित करके प्रतिदिन प्रातःकाल धीरे-धीरे चबाकर खायें। इसके आधा घंटा आगे-पीछे कुछ न लें। यह योग अत्यन्त शक्तिवर्धक और सरल है।

5. आँखोंमें प्रतिदिन सुबह-शाम पीली सरसोंका तेल अंगुलीसे लगायें। इससे आँखें नीरोग रहेंगी, मोतियाबिन्द न होगा और दृष्टि साफ रहेगी।

6. सेंधा नमकका कपड़छान चूर्ण सरसोंके तेलमें मिलाकर दाँतों एवं मसूढ़ोंमें धीरे-धीरे मलें। मुखकी दुर्गन्ध दूर हो जायगी। पायरिया नहीं होगा। दाँत स्वच्छ और मजबूत होंगे।

7. प्रतिदिन कुछ आसन, व्यायाम, सूर्यनमस्कारकी क्रियाएँ या 2-3  मीलका भ्रमण अवश्य करें, इससे शरीर पुष्ट होगा, स्फूर्ति आयेगी।

8.  पंद्रह दिनमें एक दिन उपवास रखें। उपवासमें केवल जल लें। इससे पेटको विश्राम मिलेगा और उसकी कियाएँ अधिक सक्रिय होंगी।

9. हँसना और सदा प्रसन्न रहना नीरोग रहनेकी अद्भुत औषधि है।

ये थे कुछ स्वास्थ जीवन (healthy life rules)सूत्र|

4. मुस्कुराइये नहीं, ठहाका लगाइए-

पचासके दशकमें सामान्य मानव करीब अठारह मिनटतक प्रतिदिन हँसा करता था, नब्बेके दशकमें. वही हँसी सिमटकर मात्र एक तिहाई रह गयी’- यह आकलन स्विसमें आयोजित अन्तर्देशीय हँसी-समारोहमें प्रस्तुत हुआ था। आज हमारे जीवन-स्तरमें अप्रत्याशित वृद्धि हुई है, किंतु इस भाग-दौड़ एवं होड़की जीवनशैलीमें हमारी हँसी लुप्तप्राय हो गयी है, उसकी जगहपर परेशानी, हताशा, चिन्ता एवं तनावोंने हमारे जीवनको इतना घेर लिया है कि हम हँसना ही भूल गये और अनावश्यक तनावोंसे हर समय जकड़े रहने लगे हैं।

 आखिर ऐसा क्यों हो रहा है, तो यही उत्तर प्राप्त होता है कि हँसने एवं खुशी मनानेका कोई अवसर ही प्राप्त नहीं होता। तनावों एवं हताशाओंसे जकड़ा मानव अपना सहज आनन्द, अपनी हँसी, अपना स्वास्थ्य सभी कुछ तो खो चुका है। कई लोगोंके लिये हँसना तो अतीतकी कोई कल्पना-सी बन गयी है।

‘ब्रिटिश लोग सर्वाधिक प्रसन्न एवं स्वस्थ रहते हैं’ – ऐसा बीस देशोंमें हुए एक सर्वेक्षणसे सिद्ध हुआ है, वे हर समय हँसने-हँसानेके अवसरकी प्रतीक्षामें रहते हैं। डॉ० विलियम जो स्टेनफोर्ड चिकित्सा विश्वविद्यालयसे सम्बद्ध रहे, उनका निश्चित मत है कि हँसने-हँसानेसे परहेज करनेवाले व्यक्ति तथा गमगीन रहनेवालोंको शीघ्र गम्भीर बीमारियाँ होती हैं। हँसनेसे मनकी चिन्ताएँ दूर होकर एपीनेफ्रेन, डोपामाइन आदि हारमोन्स उत्पन्न होते हैं, जो दर्दनाशक, एलर्जी- उपचारक एवं रोगोंसे मुक्ति दिलानेवाले होते हैं। हँसना

एक ऐसा अनुपम व्यायाम है, जो शरीरकी रोगप्रतिरोधक क्षमताकी वृद्धि करके मानसिक तनावको दूर करता है एवं वातरोग, पेटके विकारोंको उपचारित करता है। स्टेराइड नामक तत्त्व शरीरमें नहीं बन पाता है, जिससे जीवनी शक्तिकी वृद्धि होती है एवं शरीर रोगोंसे बचा रहता है।

ठहाके लगाने एवं जोरसे हँसनेसे शरीरमें एडोर्फिन नामक रसायनकी वृद्धि होती है, जो दर्दनाशकका काम करने लगता है। ठहाके लगाने एवं खुलकर हँसनेसे शरीर-तन्त्रमें अन्तःस्रावी क्रिया सक्रिय होकर रोगोंका समूल नाश कर देती है। तनावसे दूर रहेंगे तो सर्दी, जुकाम, दमा, हृदय-रोग, उच्च रक्तचाप, बेचैनी, सिर- दर्द, पेटकी तकलीफें, कमजोरी, खूनकी कमी, काममें मन नहीं लगना, स्मरणशक्तिकी कमी, शरीरके भिन्न- भिन्न भागोंमें दर्द तथा चक्कर आना आदिसे छुटकारा मिलेगा। मुसकुराने, मन-ही-मन हँसने एवं हँसी दबानेसे काम नहीं चलेगा।

जोरदार ठहाके लगायें, खुलकर हँसें, फिर देखें आपके कोलेस्ट्रालमें कितनी कमी आती है और रोगप्रतिरोधक शक्ति कितनी बढ़ती है। इससे हृदय- रोगोंसे निजात मिलती है। इन्सुलिनका स्राव उचित मात्रामें होनेसे मधुमेहमें कमी आती है। रक्तचाप ठीक- ठीक रहनेसे रक्त-संचरण सामान्य रहता है। श्वासके रोग, दमा, दम घुटना आदि रोगोंसे मुक्ति मिलती है। स्नायुओंका समुचित व्यायाम हो जानेसे शरीरकी कार्यशक्ति बढ़ती है, स्मरणशक्तिकी वृद्धि होकर शरीरकी जकड़न एवं दर्द तथा मानसिक तनावोंसे मुक्ति मिलती है।

मानसिक तनाव शरीरमें स्टेराइड तत्त्व पैदा करने लगता है, जिससे जीवनी शक्तिमें असाधारण कमी आती है। हँसनेसे सफेद रक्त-कण सक्रिय हो जाते हैं और बीमारीपर चारों ओरसे आक्रमण करके उसका त समूल नाश कर देते हैं। ठहाका लगाना स्नायुओंकी उत्कृष्ट कसरत है, जिससे शारीरिक थकान एवं रोग मानसिक तनावका तुरंत उपचार हो जाता है। डा० कर्नल चोपड़ाका विचार है कि हास्य चाहे कृत्रिम हो या स्वाभाविक, वह हमारे शरीरपर अपना पूरा असर करता है और हमारी जीवनी शक्ति, दर्द सहनेकी क्षमता, रोगप्रतिरोधक शक्तिकी अभिवृद्धि करनेमें निर्णायक भूमिका प्रस्तुत करता है।

मनुष्यको दिनमें दोसे चार बार अट्टहास कर लेना चाहिये। ऐसा करनेसे शरीर ठीक रहता है और रोगोंका आक्रमण नहीं होता। हँसनेका तात्पर्य है- प्रसन्न रहना। मानव प्रसन्न तभी रह सकता है, जब उसे किसी बातकी चिन्ता न हो, यदि वह चिन्ताकी चितामें जलता रहता है तो कमजोर होकर मृत्युकी ओर अग्रसर होता जायगा। चिन्तासे बचनेके लिये चिन्तामुक्त होना आवश्यक है, उसके लिये प्रसन्न रहना अत्यावश्यक है। प्रत्येक परिस्थितिको मङ्गलमय विधान समझकर प्रसन्न रहना चाहिये। प्रसन्न रहेंगे तो आप हँसेंगे और हँसेंगे तो चिन्तामुक्त तो होंगे ही। इसलिये हँसना एक ऐसी सरल औषधि है जो शरीरको स्वस्थ बना देती है।

हँसनेके लिये मस्ती आवश्यक है। विनोदी जीव सदैव मस्त रहता है और दूसरोंको भी हँसाता है। अतः आप सदैव हँसमुख रहें चाहे दुःख हो या सुख। मात्र मुसकुरानेसे काम नहीं चलेगा, खूब जोरोंसे हँसें, ठहाके-पर-ठहाके लगायें, स्वयं हँसें और दूसरोंको हँसायें। हँसी मुफ्तकी दवा है।

आइए हँसिये-हँसाइए, अपने गम भुलाइए और रोगों को भगाइए|😆😆😍

स्वास्थ जीवन सूत्र|

आहार कैसा हो?

विभिन्न प्रकारके खाद्य पदार्थोंमें भिन्न-भिन्न प्रकारके पोषक तत्त्व समाहित होते हैं, जो शरीरके विभिन्न अङ्गोंको कार्यशील बनाये रखनेके लिये आवश्यक होते हैं। उदाहरणके लिये दूधमें विटामिन ‘ए’ प्रचुर मात्रामें होता है, जो शरीरके रोगोंसे रक्षा करने और अच्छी दृष्टिके लिये आवश्यक है। इसकी कमीसे शरीर रोगी तथा दृष्टि कमजोर हो सकती है। अतः हमारे भोजनमें इन पोषक तत्त्वों- जैसे प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, विटामिन तथा खनिज-तत्त्वों आदिकी संतुलित मात्रा होनी चाहिये।

आहार-संबंधी कुछ आवश्यकता नियम-

1. सदैव अपने कार्यके अनुसार आहार लेना चाहिये। यदि आपको कठोर शारीरिक परिश्रम करना पड़ता है तो अधिक पौष्टिक आहार लेवें। यदि आप हलका शारीरिक परिश्रम करते हैं तो हलका सुपाच्य आहार लेवें।

2. प्रतिदिन निश्चित समयपर ही भोजन करना चाहिये।

3. भोजनको मुँहमें डालते ही निगलें नहीं, बल्कि खूब चबाकर खायें, इससे भोजन शीघ्र पचता है।

4. भोजन करनेमें शीघ्रता न करें और न ही बातोंमें व्यस्त रहें।

5. अधिक मिर्च-मसालोंसे युक्त तथा चटपटे और तले हुए खाद्य पदार्थ न खायें। इससे पाचन तन्त्रके रोग-विकार उत्पन्न होते हैं।

6. आहार ग्रहण करनेके पश्चात् कुछ देर आराम अवश्य करें।

7. भोजनके मध्य अथवा तुरंत बाद पानी न पीयें। उचित तो यही है कि भोजन करनेके कुछ देर बाद पानी पिया जाय, किंतु यदि आवश्यक हो तो खानेके बाद बहुत कम मात्रामें पानी पी लेवें और इसके बाद कुछ देर ठहरकर ही पानी पीयें।

8. ध्यान रखें, कोई भी खाद्य पदार्थ बहुत गरम या बहुत ठंडा न खायें और न ही गरम खानेके साथ या बादमें ठंडा पानी पीयें।

9. आहार लेते समय अपना मन-मस्तिष्क चिन्तामुक्त रखें।

10. भोजनके बाद पाचक चूर्ण या ऐसा हो कोई भी अन्य औषध-पदार्थ सेवन करनेकी आदत कभी न डालें। इससे पाचन शक्ति कमजोर हो जाती है।

11. रात्रिको सोते समय यदि सम्भव हो तो गरम दूधका सेवन करें।

12. भोजनोपरान्त यदि फलोंका सेवन किया जाय तो यह न केवल शक्तिवर्द्धक होता है, बल्कि इससे भोजन शीघ्र पच भी जाता है।

13. जितनी भूख हो, उतना ही भोजन करें। स्वादिष्ठ पकवान अधिक मात्रामें खानेका लालच अन्ततः अहितकर होता है।

14. रात्रिके समय दही या लस्सीका सेवन न करें।

स्वच्छता एवं स्वास्थ्य

हम अपने स्वास्थ्यके विषयमें चाहे दिन-रात सोचते रहें तथा आहार-सम्बन्धी नियमोंका पालन करते रहें अथवा अपने स्वास्थ्यको बनाये रखनेके लिये कितने ही पौष्टिक पदार्थोंका सेवन करते रहें, किंतु स्वच्छता एवं सफाईके बिना यह सब व्यर्थ है; क्योंकि स्वच्छतासे ही स्वास्थ्यको रक्षा की जा सकती है।

स्वच्छतासे हमारा तात्पर्य केवल शारीरिक स्वच्छतासे नहीं वरन् अपने घर और आस-पासके वातावरणसे भी है। इस विषयमें आपको निम्न बातोंका ध्यान रखना चाहिये-

1. प्रतिदिन ताजे पानीसे स्रान करें, तत्पश्चात् त्वचाको तौलियेसे भली-भाँति रगड़कर सुखायें।

2. दिनमें कम-से-कम दो बार मुँह एवं दाँतोंको

सफाई अवश्य करें।

3. सदैव साफ-सुथरे वस्त्र धारण करें।

4. पीनेका पानी एवं अन्य खाद्य पदार्थ भी स्वच्छ

होने चाहिये, क्योंकि अस्वच्छतासे रोगोंकी उत्पत्ति होती है।

5. आपका घर तथा दफ्तर साफ-सुथरा, हवादार एवं प्रकाशयुक्त होना चाहिये।

6. सामान्य वस्त्रोंकी भाँति सदैव स्वच्छ अन्तर्वस्त्र ही धारण करें तथा नियमपूर्वक बदलें।

7. वस्त्रोंकी भाँति विस्तर भी साफ होना चाहिये। विस्तरकी चादरको प्रतिदिन बदलें और अन्य वस्त्रोंको धूपमें सुखा लेवें।

8. अपने पहननेके वस्त्र, तौलिया, कंघा आदि वस्तुओंके विषयमें भी पूरा-पूरा ध्यान रखें। ये चीजें न तो किसीको प्रयोगमें लाने दें और न ही किसी दूसरे व्यक्तिकी ऐसी चीजें प्रयोगमें लायें। इससे रोगके जीवाणु फैलते हैं।

9. ऐसे खाद्य पदार्थोंका सेवन कदापि न करें जो गंदे या बासी हों अथवा जिनपर मक्खियाँ आदि बैठ चुकी हों।

10. किसीकी जूठी चीज या जूठे बरतनका प्रयोग न करें और न ही किसी अन्य व्यक्तिको अपने जूठे पदार्थ अथवा बरतनका प्रयोग करने दें। अपने परिवारके सदस्योंके बीच भी इस नियमका पालन करें तथा आरम्भसे ही बच्चोंको अलग-अलग खानेकी आदत डालें।

11. रात्रिको सोनेसे पहले अपने दाँतों एवं मुँहकी अच्छी तरहसे सफाई करें और प्रातः उठनेपर भी यही काम करें।

12. खाँसी, जुकाम आदि संक्रामक रोगोंमें खाँसते अथवा छींकते समय अपने नाक एवं मुँहके आगे रूमाल रखें, ताकि रोगके जीवाणु फैलने न पायें।

13. यदि घरमें कोई रोगी हो अथवा आपको रोगीके पास रहना पड़े तो रोग जैसा भी हो, उससे सुरक्षित रहने तथा स्वच्छताके नियमोंका पालन करना अनिवार्य है।

14. बहुत-से व्यक्तियोंको जगह-जगह थूकते रहनेकी आदत होती है, यह ठीक नहीं है। यदि आपमें भी यह आदत है तो इसे त्याग देवें।

15. शारीरिक सफाई करते समय बगलों एवं गुप्तेन्द्रियोंकी सफाई करना न भूलें।

16. हाथ-पाँवके नाखून बढ़ जानेसे इनमें गंदगी भर जाती है, इसलिये नाखून बढ़ने न दें, समय-समयपर उनका छेदन करते रहें।

17. मुहद्वारा नाखून काटते रहना, उँगली या अँगूठा चूसना, नाक-कानमें उँगली डालना आदि स्वास्थ्यके लिये हानिकारक हैं। अतः इन्हें त्याग देवें।

18. मुँहद्वारा साँस नहीं लेनी चाहिये, यथासम्भव नाकद्वारा ही साँस लेवें।

19. रात्रिको सोते समय मुँह ढक कर न सोयें।

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