Aarogya Anka

स्वस्थ जीवन आरोग्य अंक /आयुर्वेद के साथ

आयुर्वेद दुनिया का प्राचीनतम चिकित्सा प्रणाली है Ιऐसा माना जाता है की बाद मे विकसित हुई अन्य चिकित्सा पद्धतियों मे इसी से प्रेरणा ली गई है Ιकिसी भी बीमारी को जड़ से खत्म करने के खासियत के कारण आज अधिकांश लोग आयुर्वेद के तरफ जा रहे हैΙइस लेख मे हम आयुर्वेद चिकित्सा से जुड़ी हर एक रोग और उसके इलाज के बारे मे बताएंगे Ιआयुर्वेद चिकित्सा के साथ सभी प्रकार के जड़ी -बूटी के बारे मे तथा आयुर्वेद के 8 प्रकारों से हर तरह के रोगों के इलाज के बारे मे बताया गया हैΙ सभी पोस्टों को पढे ओर जानकारी अवश्य ले ताकि आप भी अपना जीवन आरोग्य के साथ healthy बना सके| thanks . 

हस्त-मुद्रा चिकित्सा (Hast-Mudra Yoga):

मानव शरीर अत्यंत रहस्यों से भरा पड़ा है |शरीर की अपनी एक मुद्रा मई भाषा है ,जिसे करने से शरीर स्वस्थ लाभ मे सहयोग प्राप्त करता है|ये शरीर पाँच तत्वों के योग से बना है|5 तत्व ये है :-

      1. पृथ्वी 2. जल 3. वायु 4. अग्नि 5. आकाश

    हस्त-मुद्रा चिकित्सा के अनुसार हाथ तथा हाथों की अंगुलियों और अंगुलियों से बनने वाली मुद्राओ मे आरोग्य का राज छिपा हुआ है|हाथ की अंगुलियों मे 5 तत्व स्थित है |

    नृत्य करते समय भी मुद्रयाऐ बनाई जाती है,जो शरीर के हजारों नसों और नाड़ियो को प्रभावित करती है,और उनका प्रभाव भी शरीर पर अच्छा पड़ता है|हस्त-मुद्रा तत्काल ही असर करना शुरू कर देती है|जिस हाथ मे ये मुद्राऐ बनाते है शरीर से विपरीत भाग मे तुरंत असर होन शुरू हो जाता है|इन सब मुद्राऐ का प्रयोग करते हुए वज्रआसन ,पधासन तथा सुखासन का प्रयोग करना चाहिए|इन मुद्राओ को 30-45 min तक करने से लाभ मिलता है| एक बार मे न कर सके तो 2-3 बार मे भी कर सकते है|

    किसी भी हस्त-मुद्रा चिकित्सा को करते time जिन अंगुलियों का काम न हो उनसे सीधा रखे |

    वैसे मुद्राऐ तो बहुत है but यहा कुछ खास मुद्राओ के बारे मे बताया गया है-

     

    1. ज्ञान-मुद्रा –

    विधि –अंगूठे को तर्जनी अंगुली के सिरे पर लगा दे|शेष 3 अंगुलिया image के अनुसार सीधी रहेंगी |

    लाभ – स्मरण शक्ति का विकास होता है और ज्ञान की वृद्धि होती है,पढ़ने मे मन लगता है,मस्तिष्क के स्नायु मजबूत होता है,सिर दर्द दूर होता है तथा अनिंद्रा का नाश,स्वभाव मे परिवर्तन ,अध्यात्म शक्ति का विकास और क्रोध का नाश होता है|

    सावधानी- खान-पान सात्विक रखना चाहिए ,पान-पराग ,सुपारी,jarda इत्यादि का सेवन न करे|अति उष्ण तथा अति शीतल पदार्थों की सेवन न करे| 

     

    2. वायु-मुद्रा -

    हस्त-मुद्रा चिकित्सा

    विधि- तर्जनी अंगुली को मोड कर अंगूठे के मूल मे लगाकर हल्का दबाए |शेष अंगुलिया सीधी रखे|

    लाभ-वायु सांत होती है|लकवा,साइटिक ,गठिया,संधिवात,घुटने के दर्द ठीक होते है|गर्दन के दर्द,रीढ़ के दर्द तथा पर्किनसांस रोग मे फायदा होता है|

    विशेष –इस मुद्रा से लाभ न होने पर प्राण मुद्रा के अनुसार प्रयोग  करे|

    सावधानी- लाभ हो जाने तक ही करे|

    3.आकाश-मुद्रा -

    आकाश मुद्रा चिकित्सा

    विधि- मध्यमा अंगुली को अंगूठे के अग्र भाग से मिलाए|शेष तीनों अंगुलिया सीधी रखे|

    लाभ- कान के सभी प्रकार के रोग जैसे बहरापन ,आदि हड्डियों की कमजोरी तथा हृदय रोग ठीक होता है|

    सावधानी- भोजन करते समय या चलते -फिरते यह मुद्रा न करे |हाथों को सीधा रखे , लाभ हो जाने तक ही करे| 

    4.शून्य-मुद्रा-

    शून्य मुद्रा चिकित्सा

    विधि- मध्यमा अंगुली को मोड कर अंगूठे के मध्य मे लगाए एवं अंगूठे से दबाए|

    लाभ- कान के सब प्रकार के रोग जैसे बहरापन आदि दूर होकर शब्द साफ सुनाई देता है,मसूड़े की पकड़ मजबूत होती है, तथा गले के रोग एवं Thiroid -रोग मे फायदा होता है|

    5.पृथ्वी-मुद्रा-

    पृथ्वी मुद्रा चिकित्सा

    विधि- अनामिका अंगुली को अंगूठे लगाकर रखे |

    लाभ- शरीर मे स्फूर्ति, कान्ति एवं तेजस्विता आती है|दुर्बल व्यक्ति मोटा बन सकता है, वजन बढ़ता है,जीवनी शक्ति का विकास होता है|यह मुद्रा पाचन क्रिया ठीक करती है,सात्विक गुणो का विकास करती है,दिमाग मे शांति लाती है तथा विटामिन के कमी को दूर करती है|

    6.सूर्य-मुद्रा-

    सूर्य मुद्रा चिकित्सा

    विधि- अनामिका अंगुली के अनामिका के मूल पर लगाकर अंगूठे से दबाए|

    लाभ- शरीर संतुलित होता है,वजन घटता है,मोटापा कम होता है, शरीर मे उष्णता की वृद्धि,तनाव मे कमी,शक्ति का विकास,खून का cholesterol कम होता है|यह मुद्रा मधुमेह ,यकृत (जिगर )-के दोषों को दूर करती है|

    सावधानी- दुर्बल व्यक्ति इसे न करे|गर्मी मे ज्यादा टाइम तक न करे|

    7. वरुण-मुद्रा-

    वरुण मुद्रा

    विधि- कनिष्ठा अंगुली को अंगूठे से लगाकर मिलाए|

    लाभ- यह हस्त-मुद्रा चिकित्सा शरीर मे रूखापन खत्म करके चिकनाई बढ़ाती  है,skin चमकीली तथा मुलायम बनती है|चर्म रोग,रक्त- विकार एवं जल तत्व की कमी से उत्पन्न व्याधियों को दूर करती है|मुहासों को दूर करती है और चेहरे को सुंदर बनाती है |

    सावधानी- कफ प्रकृति वाले इस मुद्रा का अधिक उपयोग न करे|

    8. अपान -मुद्रा-

    अपान मुद्रा

    विधि- माध्यम तथा अनामिका अंगुलियों को अंगूठे अग्रभाग से लगा दे|

    लाभ- शरीर और नाड़ी की शुद्धि तथा कब्ज दूर होता है|मल-दोष नष्ट होते है|वायु-विकार ,मधुमेह,मूत्रावरोध ,गुर्दों के दोष,दाँतों के दोष को दूर करता है|पेट के लिए उपयोगी है, हृदय रोग मे फायदा होता है तथा यह पसीना लाती है|

    सावधानी- इस हस्त-मुद्रा चिकित्सा से मूत्र अधिक होगा|

    9. अपानवायु या हृदय -रोग -मुद्रा-

    अपान वायु हृदय रोग मुद्रा

    विधि- तर्जनी अंगुली को अंगूठे मूल मे लगाए तथा मध्यमा और अनामिका अंगुलियों को अंगूठे के अग्रभाग से लगा दे|

    लाभ- जिनका दिल कमजोर है,उन्हे इसे daily करना चाहिए|दिल का दौरा पड़ते ही यह हस्त-मुद्रा चिकित्सा करने पर आराम मिलता है|पेट मे गैस होने पर यह उसे निकाल देती है|सिर दर्द होने तथा दमे की शिकायत होने पर लाभ मिलता है |सीढ़ी चढ़ने से 5-10 मिनट पहले यह मुद्रा करके चढ़े|इससे high blood pressure मे फायदा होता है|

    सावधानी- हृदय का दौरा आते ही इस मुद्रा का आकस्मिक तौर पर उपयोग करे|

    10. प्राण-मुद्रा-

    प्राण मुद्रा

    विधि- कनिष्ठा तथा अनामिका अंगुलियों के अग्रभाग को अंगूठे के अग्रभाग से मिलाए|

    लाभ- यह हस्त-मुद्रा चिकित्सा शारीरिक दुर्बलता दूर करती है,मन को शांत करती है,आँखों के दोषों को दूर करके ज्योति बढ़ाती है,विटामिनों की कमी को दूर करती है,तथा थकान दूर करके नवशक्ति का संचार करती है|लंबे उपवास कल के दौरान भूख-प्यास नहीं सताती तथा चेहरे ओर आँखों एवं शरीर को चमकदार बनती है|अनिंद्रा मे इसे ज्ञान-मुद्रा के साथ करे|

    11. लिङ्ग -मुद्रा-

    लिंग मुद्रा

    विधि- image के अनुसार मुट्ठी बांधे तथा बाए हाथ के अंगूठे को खड़ा रखे,अन्य अंगुलिया बंधी हुई रखे|

    लाभ- शरीर मे गर्मी बढ़ाती है| सर्दी,जुखाम,दमा,खासी ,साइनस ,लकवा तथा निम्न रक्तचाप मे लाभप्रद है, कफ़ों को सुखाती है|

    सावधानी- इस हस्त-मुद्रा चिकित्सा का प्रयोग करने पर जल,फल,फलों का रस ,घी और दूध का सेवन अधिक मात्रा मे करे|इस मुद्रा को अधिक लंबे समय तक न करे|

    कौन-सी हस्त-मुद्रा चिकित्सा से स्किन को चमकदार बनता है?

    वरुण मुद्रा से हम शरीर को चमकदार बना सकते है इस प्रकार-

    विधि- कनिष्ठा अंगुली को अंगूठे से लगाकर मिलाए|

    लाभ- यह मुद्रा शरीर मे रूखापन खत्म करके चिकनाई बढ़ाती  है,skin चमकीली तथा मुलायम बनती है|चर्म रोग,रक्त- विकार एवं जल तत्व की कमी से उत्पन्न व्याधियों को दूर करती है|मुहासों को दूर करती है और चेहरे को सुंदर बनाती है |

    सावधानी- कफ प्रकृति वाले इस मुद्रा का अधिक उपयोग न करे|

    प्राण मुद्रा से हम शरीर के दुर्बलता और अन्य चीजों मे फायदा उठा सकते है| इस प्रकार-

    विधि- कनिष्ठा तथा अनामिका अंगुलियों के अग्रभाग को अंगूठे के अग्रभाग से मिलाए|

    लाभ- यह मुद्रा शारीरिक दुर्बलता दूर करती है,मन को शांत करती है,आँखों के दोषों को दूर करके ज्योति बढ़ाती है,विटामिनों की कमी को दूर करती है,तथा थकान दूर करके नवशक्ति का संचार करती है|लंबे उपवास कल के दौरान भूख-प्यास नहीं सताती तथा चेहरे ओर आँखों एवं शरीर को चमकदार बनती है|अनिंद्रा मे इसे ज्ञान-मुद्रा के साथ करे|

    पृथ्वी मुद्रा से हम अपने वजन को बढ़ाने तथा अन्य चीजों मे लाभ उठा सकते है| इस प्रकार-

    विधि- अनामिका अंगुली को अंगूठे लगाकर रखे |

    लाभ- शरीर मे स्फूर्ति, कान्ति एवं तेजस्विता आती है|दुर्बल व्यक्ति मोटा बन सकता है, वजन बढ़ता है,जीवनी शक्ति का विकास होता है|यह मुद्रा पाचन क्रिया ठीक करती है,सात्विक गुणो का विकास करती है,दिमाग मे शांति लाती है तथा विटामिन के कमी को दूर करती 

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