Aarogya Anka

आयुर्वेद दुनिया का प्राचीनतम चिकित्सा प्रणाली है Ιऐसा माना जाता है की बाद मे विकसित हुई अन्य चिकित्सा पद्धतियों मे इसी से प्रेरणा ली गई है Ιकिसी भी बीमारी को जड़ से खत्म करने के खासियत के कारण आज अधिकांश लोग आयुर्वेद के तरफ जा रहे हैΙइस लेख मे हम आयुर्वेद चिकित्सा से जुड़ी हर एक रोग और उसके इलाज के बारे मे बताएंगे Ιआयुर्वेद चिकित्सा के साथ सभी प्रकार के जड़ी -बूटी के बारे मे तथा आयुर्वेद के 8 प्रकारों से हर तरह के रोगों के इलाज के बारे मे बताया गया हैΙ सभी पोस्टों को पढे ओर जानकारी अवश्य ले ताकि आप भी अपना जीवन आरोग्य के साथ healthy बना सके| thanks . 

रस(Ras) के लाभ,प्रकार एवं गुण: in hindi

द्रव्य गुण:

संसार के प्रत्येक द्रव्य पदार्थ में रस, गुण, वीर्य, विषाक और शक्ति ये 5 बातें होती हैं। ये पाँचों अपना-अपना कार्य करते हैं। पदार्थों में 6 प्रकार के रस, 20 प्रकार के गुण, 2 प्रकार के वीर्य तथा 3 प्रकार के विषाक और अचिन्त्य प्रभाव होता है|

रस(Ras)-

पदार्थों में-मधुर, अम्ल, खारा, कड़वा, चटपटा और कसैला ये 6 रस रहते हैं “वाग्भट्ट” के अनुसार इन छहों रस में पहला पहला रस, पीछे-पीछे के रस से अधिक बल प्रद हैं-

* मधुर, अम्ल (खट्टा) और खारा-ये 3 रस वातनाशक हैं।

* मीठा, खट्टा और खारा-ये 3 रस चिकने और भारी हैं।

*चटपटा, कड़वा और कसैला ये 3 रस रूखे और हल्के हैं।

* जो रस वात को हरने वाला है, यदि उस रस वाले पदार्थ में रूखापन, शीतलता खारा और कसैला रस-वायु को कुपित करता है।

∗कड़वा, चटपटा और कसैला ये 3 रस पित्तनाशक हैं।

∗चटपटा, कड़वा और कसैला ये 3 रस रूखे और हल्के हैं।

∗मीठा, कड़वा और कसैला ये 3 रस शीतल हैं।

*मीठा और कड़वा रस-कफ को कुपित करता है।

∗चटपटा और खट्टा रस-पित्त को कुपित करता है।

∗चटपटा और ख‌ट्टा रस वात को शान्त करता है।

∗मीठा औरा कड़‌वा रस पित्त को शान्त करता है।

चटपटा और कसैला रस कफ को शान्त करता है।

∗चटपटा, कड़वा और कसैला रस-ये वायु को कुपित करते हैं। इसीलिए वायु में इनका प्रयोग कदापि उचित नहीं है।

∗चटपटा, खट्टा और नमकीन-ये रस पित्त को कुपित करते हैं। इसलिए इनका पित्त में प्रयोग उचित नहीं है।

∗मीठा, खट्टा और नमकीन-ये रस कफ को कुपित करते हैं। इसलिए कफ के रोगों में इनका प्रयोग हितकर नहीं है।

∗जो रस पित्त का शमन करने वाला है, यदि उस वाले पदार्थ में तीक्ष्णता, उष्माता और हल्कापन हो तो वह पित्त को शान्त नहीं कर सकता है।

∗जो रस कफ को शान्त करने वाला है, यदि उस रस वाले पदार्थ में-चिकनापन भारीपन और शीतलता हो तो वह कफ को नष्ट नहीं कर सकता है।

∗ सम्पूर्ण मधुर रस वाले पदार्थ कफ कारक होते हैं, किन्तु जौ, मूँग, शहद, मिश्री और जंगली जीवों का मॉल-ये कफ कारक नहीं होते हैं।

∗ समस्त, अम्ल रस वाले (खट्टे) पदार्थ-पित्त को उत्पन्न करते हैं, किन्तु आँवला और अनार खट्टे होने पर भी पित्त को उत्पन्न नहीं करते हैं।

∗समस्त प्रकार के नमक आँखों के लिए हानिकर होते हैं, किन्तु सैंधा नमक आँखों के लिए हानिकारक नहीं है।

∗समस्त चटपटे और कड़वे पदार्थ-वात को कुपित करने वाले और वीर्य के लिए हानिकर हैं, किन्तु सोंठ, पीपल, लहसुन, परवल और गिलोय-कड़वे और चरपरे होने पर भी वीर्य को हानि नहीं करते और न ही वात को कुपित करते हैं।

∗महर्षि चरक के अनुसार-सोंठ और पीपल वीर्य को बढ़ाने वाले हैं, किन्तु अन्य चरपरे पदार्थ वीर्य के लिए हानिकारक हैं।

∗सभी कसैले रस पदार्थ-प्रायः शरीर का स्तम्भन करने वाले होते हैं, किन्तु हरड़ कसैली होने पर भी ऐसी नहीं है।

रस(Ras)

रसों के गुण:-

1. मधुर रस-

⇒ये रस शीतल है। ये रस, रक्त, माँस, मेद, अस्थि, सज्जा, ओज और वीर्य को बढ़ाने वाला, स्त्रियों के स्तनों में दुग्ध वृद्धि करने वाला, आँखों व बालों को हितकर रूप और बल प्रदायक, टूटे को जोड़ने वाला, रक्त और रस को प्रसन्न करने वाला, बच्चों, बुजुर्गों तथा घावों से दुर्बल को हितकर, भौरे व चीटिंयों का प्रिय, प्यास, मूर्च्छा और दाह को शान्त करने वाला, पाँचों इन्द्रियों तथा मन को प्रसन्न करने वाला. कृमि. (चुनने/उदरकृमि) और कफ करने वाला है।

“भाव प्रकाश” में लिखा है कि मधुर रस वात और पित्त को नष्ट करने वाला. शरीर में स्थूलता (मोटापन) करने वाला, पुष्टि करने वाला, कण्ठ को शुद्ध करने वाला, भारी, विषनाशक, चिकना तथा आयु के लिए हितकर है।

 अकेले ही इस (मधुर) रस का अधिक सेवन करने से खाँसी, श्वास, अल्सक, वमन, मुख का मीठा रहना, आवाज बैठ जाना, कृमि रोग, गलगण्ड, अर्बुद (रसौली) और श्लीपद/फलिपांव (फाइलेरिया) रोग उत्पन्न करता है। बस्ति (पेडू) और गुदा मैले और भारी रहते हैं तथा नेत्रों से जल गिरता है।

“भाव प्रकाश” में लिखा है कि मीठे (मधुर) रस का अधिक सेवन-ज्वर, श्वास, अर्बुद, कृमि, स्थूलता, अग्नि की मन्दता, प्रमेह, मेद और कफ के रोग उत्पन्न करता है।

2. अम्ल(खट्टा) रस-

ये रस गर्म है तथा पाचक, रुचि उत्पन्न कारक, पित्त, कफ और रक्त वर्द्धक, हल्का, मोटे को पतला करने वाला, स्पर्श में शीतल, क्लेदन, वातनाशक, चिकना, तीक्ष्ण और दस्तावर है। वीर्य, विबन्ध, अनाह और नेत्रों की ज्योति का नाश करता है तथा रोमांच करता है। दाँतों को हर्ष करता है और नेत्र व भौहों का संकोच करने वाला है।

यदि इस (खट्टे) रस का अकेले ही बहुत अधिक सेवन किया जाये तो भ्रम, प्यास दाह, तिमिर(अन्धकार), ज्वर, खुजली, पीलिया, विसर्प, सूजन, विस्फोटक और कोढ़ करता है।

                  दाँतों में हर्ष यानी दाँतों का आम जाना, नेत्रों का मिचना, रोमों में पीड़ा अथवा छोटी-छोटी फुन्सियाँ, शरीर का ढीलापन, गर्म होने से कण्ठ, छाती और हृदय में दाह-ये विकार करता है।

3. खारी रस-

⇒ये रस भी गर्म हैं। यह रस संशोधन करने वाला, रुचिकारक, पाचक, कफ और पित्त बढ़ाने वाला, पौरुष व वात का नाश करने वाला, शरीर में शिथिलता और मृदुता करने वाला है। आँख, नाक और मुख में पानी लाने वाला, गाल व गले में जलन करने वाला है।

                              सुश्रुत में लिखा है कि ये रस जोड़ों को ढीला करने वाला, मार्गों को शोधने वाला तथा शरीर के समस्त भागों को मुलायम करने वाला है, इत्यादि। इस (खारी) रस का अकेले अधिकता के साथ सेवन करने से नेत्र पाक, रक्तपित्त, कोढ़ और क्षतादि (घाव आदि) रोग कारक, शरीर में सल्बटें डालने वाला बालों को सफेद करने वाला एवं उनको उड़ाने वाला यानी गंजा करने वाला, विसर्प और तृषा (प्यास) रोग करने वाला है।

 खाज, कोढ़, चकत्ते, सूजन, कुरूपता, पुरुषत्व (मर्दाना शक्ति) का नाश और इन्द्रियों में उत्ताप करने वाला मुँह और आँखों को पकाने वाला तथा रक्त पित्त और वातरक्त आदि रोग करने वाला है।

                 इस रस का अकेले ही अत्यधिक सेवन करने से सिर में दर्द, गर्दन में स्तम्भता. (गर्दन न हिले-न घूमे), थकान, पीड़ा, कम्पन, मूर्छा और तृषा ये रोग होते हैं तथा बल व वीर्य का नाश होता है।  गर्दन का ठहर जाना और गिर-गिर पड़ना, अर्दित वायु, सिर का दर्द, पीड़ा, फूटनी, छेदने की सी पीड़ा और मुख का स्वाद खराब- ये रोग होते है|

4. चटपटा रस-

⇒यह रस भी गर्म है। यह रस तीक्ष्ण, विशद, वात पित्त को करने वाला, कफ को हरने वाला, हल्का, अग्नि के अधिक भाग वाला, कृमि (कीड़े), खुजली और विष का नाश करने वाला, रूखा, स्तनों के दूध का नाश करने वाला, मेदा/चर्बी की मुटाई का नाश करने वाला, आँखों में आँसू लाने वाला, नाक, मुँह और जीभ में उद्वेग करने वाला, रुचिकारक, अग्नि को दीप्त करने वाला, नाक को सुखाने वाला, स्त्रोतों को प्रकट करन वाला, रूखा, बुद्धि बढ़ाने वाला और मल रोधक यानी दस्त रोकने वाला है।

               इस रस के अकेले ही अधिक सेवन करने से भ्रम और दाह होता है। ये मुख, तालू और होठों कों सुखाता है, कण्ठ आदि में दर्द करता है, मूर्च्छा और प्यास को उत्पन्न करता है तथा बल और कान्ति का नाश करता है।

यह रस भ्रम और मेद करता है, गले, तालु और होठों में खुश्की करता है। देह में सन्ताप करता है, बल का नाश करता है, कँपकँपी, पीड़ा, फूँटनी सी उत्पन्न करता है तथा हाथ, पाँव, पसली, पीठ आदि में वायुशूल यानी वादी का दर्द करता है|

5. कड़वा रस-

⇒ये रस शीतल है। यह प्यास, मूर्छा, ज्वर, पित्त और कफ का नाश करने वाला तथा कृमि, कोढ़, विष, दाह, जी मिचलाना और रक्त के रोगों से आराम करने वाला है। खुद/स्वयं तो स्वाद में बुरा है, अरुचि कारक है, किन्तु अन्य चीजों में रुचि करता है। कण्ठ व दूध को शुद्ध करता है। वातकारक, अग्निवर्द्धक, रूखा, हल्का और नाक को सुखाने वाला है। यह रस दूध का शोधन करने वाला, विष्ठा, मूत्र, गीलापन, चर्बी की चिकनाई और पीप (Pus) को सोखने वाला है।

                    इस रस का अकेले ही अत्यधिक सेवन करने से सिर में दर्द, गर्दन में स्तम्भता. (गर्दन न हिले-न घूमे), थकान, पीड़ा, कम्पन, मूर्छा और तृषा ये रोग होते हैं तथा बल व वीर्य का नाश होता है। गर्दन का ठहर जाना और गिर-गिर पड़ना, अर्दित वायु, सिर का दर्द, पीड़ा, फूटनी, छेदने की सी पीड़ा और मुख का स्वाद खराब- ये रोग होते है|

6. कसैला रस-

⇒ये रस शीतल है। यह रस घाव को भरने वाला, शरीर को स्तम्भन करने वाला, वण को शोधने वाला, खण आदि पर उने माँस को छीलने वाला पीड़ा करने वाला, चन्द्रमा से उत्पन्न हुआ, षण व मज्जा आदि को सुखाने वाला. वायु को कुपित करने वाला, कफ, रुधिर और पित्त को हरने वाला, रूखा, हल्का, चमड़े (Skin) को शुद्ध और ठीक करने वाला, आम को रोकने वाला, फैलने वाला, कण्ठ और छेदों को रोकने वाला है। इस रस के अकेले ही अत्यधिक सेवन ग्राही, हृदय की पीड़ा और आक्षेपक-कम्प आदि रोग उत्पन्न करने वाला है।

               हृदय में पीड़ा, मुख सूखना, उदर रोग. अफारा, बातों का साफ स्पष्ट न बोलना, गर्दन की नस का रह जाना, अँग फड़कना, चुनचुनाहट, अँग सुकड़ना और अतिकम्प आदि रोग होते है|

1. मधुर पदार्थ-

दूध, घी, चावल, चर्बी, जौ, गेहूँ, उड़द, सिंघाड़े, कसेरू, खीरा, अरिया, फूट, ककड़ी, घिया, तरबूज, चिरौंजी, महुआ, दाव, किशमिश छुहारा, खिरनी, ताड़फल, खोपरा, ईखरस, गुड़, शक्कर, चीनी, खिरेंटी, कँघी, कौंच के बीज, बिदारीकन्द, दूध, रबड़ी, मलाई, अरण्ड, काशीफल, पेठा और शहर इत्यादि मीठे पदार्थ हैं।

2. खट्टे पदार्थ-
खट्टे रस युक्त पदार्थ

अनार, आँवला, नीबू, कैथ, करौंदा, छोटे-बड़े बेर इमली, फालसे, बड़हल, अम्लबेंत, जम्भीरी नीबू, दही, छाछ, मद्य, शूक्त, सौवीर, व तुषोदक (एक प्रकार की कॉजी) इत्यादि खट्टे पदार्थ हैं।

3. खारे पदार्थ-

सेंधा नमक, काला नमक, बिड मटिया नमक, मनियारी नमक, साँभर नमक, समन्दर नमक, जवाखार, रेह, सज्जी, सुहागा और शोरा आदि खारी पदार्थ हैं।

4. चरपरे पदार्थ-

सहजना, मूली, कपूर, लहसुन, कूट, देवदारू, बाबची, खुरासानी-अजवायन, देसी अजवायन, नागरमोथा, गूगल और लालमिर्च आदि चरपरे पदार्थ हैं।

5. कड़वे पदार्थ-

दोनों प्रकार की हल्दी, इन्द्र जौ, दोनों प्रकार की कटेली, निशोथ, ककोड़े, बैंगन, कनेर के फूल, टेंटी, शंखाहुली, कुटकी चिरामता, अरणी और माल काँगनी आदि कड़वे पदार्थ होते हैं।

6. कसैले पदार्थ-

⇔ त्रिफला, जामुन, मौलश्री, पाषाण भेद, जीवन्तीशाक, पालक व चौलाई आदि कसैले पदार्थ हैं।

द्रव्यों के गुण-

1. हल्के गुण वाले पदार्थ अत्यंत पथ्य, कफ नाशक और शीघ्र पचने वाले होते है|

2 गरिष्ठ(भारी) पदार्थ- वातनाशक , कफनाशक और देर से पचने वाले होते है|

3. स्निग्ध/चिकने पदार्थ वातनाशक, कफकारक, बल व वीर्य वर्द्धक होते हैं।

4. रूखे पदार्थ अत्यन्त वायु वर्द्धक और कफ नाशक होते हैं।

5. तीक्ष्ण पदार्थ अधिक पित्तकारक, लेखन और कफ-वात नाशक होते हैं।

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