आयुर्वेद दुनिया का प्राचीनतम चिकित्सा प्रणाली है Ιऐसा माना जाता है की बाद मे विकसित हुई अन्य चिकित्सा पद्धतियों मे इसी से प्रेरणा ली गई है Ιकिसी भी बीमारी को जड़ से खत्म करने के खासियत के कारण आज अधिकांश लोग आयुर्वेद के तरफ जा रहे हैΙइस लेख मे हम आयुर्वेद चिकित्सा से जुड़ी हर एक रोग और उसके इलाज के बारे मे बताएंगे Ιआयुर्वेद चिकित्सा के साथ सभी प्रकार के जड़ी -बूटी के बारे मे तथा आयुर्वेद के 8 प्रकारों से हर तरह के रोगों के इलाज के बारे मे बताया गया हैΙ सभी पोस्टों को पढे ओर जानकारी अवश्य ले ताकि आप भी अपना जीवन आरोग्य के साथ healthy बना सके| thanks .
मनुष्यों को सदैव स्मरणीय 150 सर्वोत्तम मुख्य बाते:
नीचे लिखीं 151 उत्तम बातें “चरक” के सूत्र स्थान से ली गयी हैं। यह प्रत्येक बात संसार के समस्त मानवों (चाहे वो वैद्य हो या न हो) के लिए लाभकारक हैं-“चरक” में लिखा है कि-
एतन्निशम्य निपुणश्चिकित्सां सम्प्रयोजयेत्।
एवं कुर्वन् सदा वैद्यो धर्म कामौ समुश्नते ।।
1. अन्न-
जीवन-निर्वाहक पदार्थों में सर्वोत्तम है।
2. जल-
प्यास मिटाने वालों में सर्वोत्तम है।
3. नमक-
रुचिकर पदार्थों में सर्वोत्तम है।
4. खटाई-
हृदय के लिए हितकर पदार्थों में सर्वोत्तम है।
5. मुर्गे का मांस-
बलकारक पदार्थों में सर्वोत्तम है।
6. शराब-
थकावट दूर करने में एवं प्रफुल्ल करने वालों में सर्वोत्तम है
7. मगर का वीर्य-
वीर्य बढ़ाने वालों में सर्वोत्तम है।
8. शहद-
कफ-पित्त नाशक पदार्थों में सर्वोत्तम है।
9. घी-
वात-पित्त नाशक द्रव्यों में सर्वोत्तम है।
10. वात-
कफ नाशक द्रव्यों में सर्वोत्तम है।
(तेल को वात-नाशकों में सर्वश्रेष्ठ लिखा है, इसका अर्थ है कि तेल वातनाशक है और वातप्रधान-वात कफ नाशक है।
11.वमन-
कफ के नाश हेतु सर्वोत्तम उपाय है।
12. विरेचन-
पित्त नाश हेतु सर्वोत्तम उपाय है।
13. बस्ति-
वात हरण कर्त्ताओं में सर्वोत्तम है।
14. स्वेद-
पसीना-शरीर को नर्म करने में सर्वोत्तम है।
15. कसरत-
शरीर को मजबूत करने के उपायों में सर्वोत्तम है।
16. मैथुन-
शरीर को दुर्बल करने में सर्वप्रथम है।
17. क्षार-
मर्दाना शक्ति नाशक पदार्थों में सबसे बढ़कर है।
18. तिन्दुल फल-
अन्न में अरुचि उत्पन्न करने में सबसे बढ़कर है। (तेंदू के वृक्ष का फल-यह वृक्ष भारतवर्ष, श्री लंका, बर्मा व पूर्वी बंगाल के जंगलों में पाया जाता है। मझोले आकार के इस वृक्ष की काली लकड़ी को आबनूस कहते हैं। इस वृक्ष का फल नीबू के समान हरे रंग का होता है तथा पकने पर पीला हो जाता है।)
19. कच्चा कैथ-
स्वर भंग करने वालों में सबसे तेज है।
20. भेड़ की घी-
हृदय को हानि पहुँचाने में सर्वोपरि है।
21. बकरी का दूध-
शोष नाशकों, रक्त रोधकों, रक्त पित्त रोग नाशकों और दुग्ध वर्द्धकों में सर्वोत्तम है।
22. भेड़ का दूध-
पित्त-कफ बढ़ाने वालों में जबर्दस्त है।
23. भैस का दूध-
निद्रा लाने वालों में सर्वोत्तम है।
24. दही-
अभिष्यन्दी पदार्थों में सबसे बढ़कर है।
25. ईख-
मूत्रल पदार्थों में सबसे बढ़कर है।
26. जौ-
मल पैदा करने वालों में सबसे बढ़कर है।
27. खली-
पित्त-कफ करने वालों में सबसे बढ़कर है।
28. कुल्थी-
अम्ल पित्त करने वालों में सबसे बढ़कर है।
29. जामुन-
वायु प्रकट करने वालों में सबसे बढ़कर है।
30. उड़द-
पित्त-कफ कारकों में सबसे बढ़कर है।
31.मैनफल-
वमन, आस्थापन तथा अनुवासन के उपयोगी पदार्थों में उत्तम है।
32. पिपला मूल-
आनाह नाशकों में सर्वोत्तम है।
33. नीशोथ की जड़-
सुखपूर्वक दस्त कराने वालों में सर्वोत्तम है।
34. अरंड-
नरम जुलाबों में सर्वोत्तम है।
अरण्डी का तेल/कैस्टर ऑयल, त्रिफला के काढ़े अथवा दूध में लेना सर्वोत्तम जुलाब है। बालक, वृद्ध, क्षत-क्षीण तथा नाजुक से नाजुक रोगियों के लिए यह जुलाब सुखदायी है। इस तेल की मात्रा वयस्क रोगी के लिए 4 तोला तक है। यदि इसको त्रिफला के क्वाथ में लिया जाये तो काढ़ा दोगुना लेना चाहिए। 8 तोला त्रिफला लेकर जौकुट करके (मोटा-मोटा दरदरा कूटकर) रात के समय मिट्टी की हाँडी में भिगो दें और प्रातः समय विधिवत् काढ़ा तैयार कर, उसी में अरण्डी का तेल मिलाकर रोगी को सेवन करने हेतु निर्देशित करें।)
35. थूहर-
जोर से दस्त कराने वालों में उत्तम है।
थूहर का दूध-तीक्ष्ण जुलाबों में सबसे उत्कृष्ट है, परन्तु अन्जान/अयोग्य का दिया हुआ-थोड़ी सी भी भूल से विष के समान हो जाता है। जानकार/सुयोग्य वैद्य के द्वारा दिया गया, दोषों के भारी संचय का भी नाश करता है तथा भयानक से भयानक रोगों का नाश करता है।)
36. औंगे के बीज-
शिरोविरेचन करने वालों में सर्वोत्तम है।
37. बायविडंग-
-कृमि/कीड़ों के नाशकों में सर्वोत्तम है।
38. सिरस के बीज-
विष नाशक पदार्थों में सर्वोत्तम है।
39. खैर-
कोढ़ (लैप्रोसी) नाश करने वाले पदार्थों में सबसे बढ़कर है।
40. रास्ना-
वातनाशक पदार्थों में सबसे बढ़कर है।
41. आँवला-
आस्था-स्थापकों में सर्वश्रेष्ठ है।
42. हरड़-
समस्त प्रकार के अच्छे पथ्यों में श्रेष्ठ है।
43. अरंडी की जड़-
बलवर्द्धक तथा वातनाशकों में सर्वोत्तम है
44. चीते की छाल-
गुर्दा का दर्द व गुदा की सूजन का नाश करने वालों तथा भूख बढ़ाने वालों में सर्वोत्तम है।
45. नागरमोथा-
दीपन, पाचन संग्राहकों में मुख्य है।
46. कूट व पोहरकर मूल-
श्वास, खाँसी, हिचकी और पसली का दर्द मिटाने बालों में सर्वोत्तम है।
47. अनंतमूल-
अग्नि ज्वाला निवारक, दीपन, पाचन एवं अतिसार नाशकों में सर्वोत्तम है।
दस्त बाँधने वालों, वादी का नाश करने वालों, अग्निदीपन करने वालों, कफ नाश करने वालों एवं कफ रक्त के विबन्ध नाश करने वालों में सर्वोत्तम है।
49. कच्चा बेल फल-
मल को गाढ़ा करने वालों, अग्निदीपन करने वालों और वात-कफ नाशक द्रव्यों में सर्वोत्तम है।
50. अतीस-
दीपन, पाचन, संग्राहक और सब दोष हरने वालों में सर्वोत्तम है।
51. कमलगट्टा-
कमल और केशर तथा कमोदनी संग्राहक और रक्त पित्त नाशकों में सर्वोत्तम है।
52. जवासा-
पित्त कफ नाशकों में अति उत्तम है।
53. गंधपियंगू-
रक्तपित्त के अति योग नाशकों में सर्वोत्तम है।
54. कूड़ा की छाल-
कफ, पित्त और रक्त संग्राहकों एवं उपशोषक द्रव्यों में सर्वोत्तम है।
55. पीठवन -
संग्राहक है। वातहर वृक्षों में सर्वोत्तम है।
56. गंभारी फल-
संग्राहक है तथा रक्त पित्त नाशकों में सर्वोत्तम है।
57. विदारी कंद-
वृष्य है तथा सब दोष नाशकों में सर्वोत्तम है।
58. बला(खिरेंटि)-
संग्राहक, बलवर्द्धक तथा वात नाशक द्रव्यों में सर्वोत्तम है।
59. गोखरू-
मूत्रकृच्छ और वायु नाशक द्रव्यों में सर्वोत्तम है।
60. हिंग-
छेदन, दीपन, अनुलोमन तथा वात-कफ नाशकों में सर्वोत्तम है।
61. अम्लवेत-
दीपन, भेदन, अनुलोमन तथा वात-कफ नाशकों में सर्वोत्तम है।
62. जवाखार-
संशमन, पाचन तथा बवासीर नाशक द्रव्यों में सर्वोत्तम है।
63. माठा-
ग्रहणी दोष का नाश करने वालों, बवासीर का नाश करने वालों, तथा अधिक घी खाने के विकारों का नाश करने वालों में माठा/छाछ मुख्य/प्रधान है।
भोजनोपरान्त भुना जीरा सेंधा नमक मिश्रित गाय का माठा सेवन करने से खूब भूख लगती है।
एक मिट्टी की कोरी हाँडी में चीते की जड़ की छाल को पीस कर लेप कर दें और फिर छाया में सुखा लें। इस हाँडी में गाय का दूध जमा कर दही को बिलोकर माठा बनाया करें और प्रतिदिन सेवन करें। अत्यन्त लाभकर है। बवासीर के लिए तो अचूक लाभप्रद है।
64. मांसखोर जानवरों का मांस-
ग्रहणी दोष, शोष तथा बवासीर में खाना सेवन करना अत्यन्त हितकर है।
65. दूध- घी का अभ्यास-
वृद्धावस्था नाशक उपायों में अत्यन्त श्रेष्ठ है।
66. सत्तू और घी का परिमाण मे प्रतिदिन सेवन-
वृष्य एवं उदावर्त नाशक द्रव्यों मे परमोतम है|
67. सरसों के तेल का कुल्ले करना-
दाँतों को मजबूत करने वाले और हथि करने के उपायों में सर्वश्रेष्ठ है|
68. चंदन व गूलर-
दाह नाशक लेपों में सर्वोत्तम है।
69. रास्ना तथा अगर-
शीत नाशक लेपों में उत्तम है।
70. खस -
दाह का नाश करने वाले तथा चमड़े के दोष दूर करने वाले लेपों में उत्तम है।
71. कड़वा कूट-
वात नाशक अभ्यंगों तथा लेप के योग द्रव्यों में परमोत्तम है।
72. मुलहठी-
चक्षुष्य, वृष्य, केश-हितकर, कण्ठहितकर, वर्ण हितकर, अर्थात् आँख, वीर्य, बाल, गला व शरीर के रंग को लाभ पहुँचाने वाले तथा घाव भरने वाले पदार्थों में सर्वोत्तम है।
73. जल-
स्तम्भीय द्रव्यों में सर्वोत्तम है।
74. वायु-
बल और चैतन्यता करने में सर्वोत्तम है।
75. अग्नि-
आम, स्तम्भ, शीत, शूल तथा कम्प नाशक द्रव्यों में परमोत्तम है।
76. मिट्टी बुझाया जल-
वह जल जिसमें जती हुई मिट्टी का ढेला बुझाया गया हो, सर्वोत्तम जल है।
77. अत्यंत भोजन-
आम-दोष कारकों में सबसे तेज है।
78. यथाग्नी भोजन-
अग्निदीपक आहारों में सर्वोत्तम है।
79. अभ्यासनुरूप कार्य-
सेवनीय में सर्वोत्तम है।
80. समय का भोजन-
आरोग्य कर्त्ताओं में परमोत्तम है।
81. मल-मूत्रादि शारीरिक वेगों का रोकना-
व्याधि करने वालों में सबसे बढ़कर है।
82. मध्य विकार-
धृति, स्मृति तथा बुद्धि नाशकों में सर्वोत्तम है।
83. भारी/गरिष्ठ पदार्थ-
बड़ी कठिनता से पचने वालों में सर्वोपरि है।
84. एक समय का भोजन-
उत्तम प्रकार से पचने वालों में सर्वोपरि है।
85. स्त्रीसंग-
राजयक्ष्मा रोग करने में सर्वोपरि है।
86. शुक्रवेग को रोकना-
नपुंसकता करने वालों में सर्वोपरि है।
87. बासी अन्न-
अन्न में अरुचि करने वालों में सर्वोपरि है।
88. उपवास-
आयु कम करने वालों में सर्वोपरि है।
89. भूख जाती रहे टीबी खाना-
दुर्बलता उत्पन्न करने में सर्वोपरि है।
90. अजीर्ण मे खाना-
-ग्रहणी दोषकारों में सर्वोपरि है।
91. विषम भोजन-
अग्नि विषम करने वालों में सर्वोपरि है। (भोजन के असमय पर खाने, भोजन अधिक खाने अथवा भोजन कम खाने को ‘विषम भोजन’ कहते हैं। इससे बचना चाहिए।)
92. दूध-मांस आदि विरुद्ध पदार्थों को एक समय खाना-
कोढ़ कुष्ठ आदि निन्दित व्याधि उत्पन्न करने वालों में सर्वोपरि है।
93. शांति-
हितकारियों में सर्वश्रेष्ठ है।
94. शक्ति से अधिक परिश्रम करना-
समस्त प्रकार के अपथ्यों का राजा है।
95. आहार-विहारादी का मिथ्या योग-
व्याधि कारकों में सबसे बढ़कर है।
96. रजस्वला स्त्री से गमन करना-
अलक्ष्मी कारकों में सर्वोपरि है।
97. ब्राम्हचर्य -
आयुवर्द्धकों में सर्वोपरि है।
98. संकल्प साधन-
वृष्यादिकों में सर्वोपरि है।
99. मन की स्फूर्ति-
अवृष्यों में सर्वोपरि है।
100. बल से अधिक कार्य करना-
प्राण नाशकों में सर्वोपरि है।
101. विषाद-
रोग बढ़ाने वालों में सर्वोपरि है।
102. स्नान-
परिश्रम हरण करने वालों में सर्वोपरि है।
103. हर्ष-
प्रीति करने वालों में सर्वोपरि है।
104. बहुत शाक/सब्जी खाना-
शरीर सुखाने वालों में सर्वोपरि है।
105. संतोष से रहना-
पुष्टि करने वालों में सर्वोपरि है।
106. पुष्टि-
-निद्रा कारकों में परमोत्तम है।
107. निंद्रा-
तन्द्रा करने वालों में परमोत्तम है।
108. सर्व रसाभ्यस -
बल करने वालें में सर्वोत्तम है।
109. एक रस खाना-
दुर्बल करने वालों में सर्वोपरि है।
110. गर्भशल्य-
अनाकर्षणीयों में सर्वोपरि है।
111. अजीर्ण-
कै/वमन कराने योग्य में सर्वोपरि है
112. बालक-
मृदु ओषधियों द्वारा चिकित्सा करने योग्यों में प्रधान है।
113. बूढ़े का रोग-
याप्य रोगों में सबसे बढ़कर है।
114. गर्भवती रोग-
तेज ओषधि, कसरत, मेहनत, तथा पुरुष संसर्ग/समागम से बचने वालों में सर्वोपरि है।
115. मन की प्रसन्नता-
गर्भ धारकों में सर्वोत्तम है।
116. सन्निपात-
दुश्चिकित्स्यों में सबसे बढ़कर है।
117. आम चिकित्सा-
विरुद्ध चिकित्सा में सबसे बढ़कर है।
(आमदोष-जब आम आदि लक्षणों से भुक्त होता है, तब उसे ‘विष’ कहते हैं। जब आम दोष विष के समान हो, तब उसकी शीत चिकित्सा करनी चाहिए, किन्तु इस अवसर पर गर्म चिकित्सा लाभकर होती है। इसी से आम की चिकित्सा अधिक बली है।)
118. ज्वर-
रोगों में सबसे अधिक बली है।
119. कोढ़-
बहुत समय तक रहने वाले रोगों में राजा है।
120. राजयक्षमा-
समस्त रोगों में असाध्य है।
121. प्रमेह-
न छोड़ने वाले रोगों में सबसे बढ़कर है।
122. जोंक-
पशस्त्रों में सबसे अच्छी है।
123. वस्ति-
पञ्च कर्मों में श्रेष्ठ है।
124. हिमालय-
ओषधि भूमि में सर्वश्रेष्ठ है।
125. मरुभूमि-
आरोग्य देशों में सर्वोत्तम है।
126. सोमलता-
ओषधियों में सर्वोत्तम है।
127. अनुपदेश-
अहितकर्त्ता देशों में सबसे बढ़कर है।
128. वैध/चिकित्सक के आज्ञा का पालन करना-
रोगी के गुणों में सर्वोत्तम है|
129. वैध/चिकित्सक-
-चिकित्सा के चतुष्पादों में प्रधान है।
130. नास्तिक-
वर्जनीयों में सर्वाधिक वर्जनीय है।
131. लोभ-
क्लेश कारकों में सबसे बढ़कर है।
132. अस्थिरता-
-डरपोक मन के लक्षणों में प्रधान है।
133. देश, काल आदि विचारपूर्वक औषध देना-
वैद्यों में प्रधान गुण है।
134. वैध समूह-
-निःसंशय कारकों में प्रधान है।
135. शस्त्र ज्ञान-
ओषधों में प्रधान है।
136. शस्त्रानुमोदित युक्ति-
ज्ञानोपादकों में प्रधान है।
138. अनुत्याग-
व्यवसाय नाशक तथा काल नाशक हेतुओं में सर्वोत्तम है।
139. चिकित्सक की बहुदर्शिता-
निस्सन्देह करने वाले उपायों में प्रधान है।
140. असमर्थता-
भय उत्पन्न करने वालों में सर्वोपरि है।
141. अपने सहपाठी से शास्त्रर्थ करना-
बुद्धिवर्द्धक उपायों में प्रधान है।
142. आचार्य-
शास्त्राधिकार हेतुओं में प्रधान है।
143. आयुर्वेद -
अमृतों में प्रधान है।
144. सद्धचन-
वैद्यों में प्रधान गुण है।
145. बिना विचार किए ही बोल उठना-
सब तरह के अहित करने वालों में प्रधान है।
146. सर्व त्याग-
सुख करने वालों में सर्वोत्तम है।
147. दूध-
जीवनियों में प्रधान है।
148. मांस-
वृंहणों अथवा ताकत लाने वालों में प्रधान है।
149. गवेधुक धान्य -
कृशताकारकों में प्रधान है।
150. उद्दालक अन्न-
रुक्षता करने यानी रूखापन करने वालों में प्रधान है।