आयुर्वेद दुनिया का प्राचीनतम चिकित्सा प्रणाली है Ιऐसा माना जाता है की बाद मे विकसित हुई अन्य चिकित्सा पद्धतियों मे इसी से प्रेरणा ली गई है Ιकिसी भी बीमारी को जड़ से खत्म करने के खासियत के कारण आज अधिकांश लोग आयुर्वेद के तरफ जा रहे हैΙइस लेख मे हम आयुर्वेद चिकित्सा से जुड़ी हर एक रोग और उसके इलाज के बारे मे बताएंगे Ιआयुर्वेद चिकित्सा के साथ सभी प्रकार के जड़ी -बूटी के बारे मे तथा आयुर्वेद के 8 प्रकारों से हर तरह के रोगों के इलाज के बारे मे बताया गया हैΙ सभी पोस्टों को पढे ओर जानकारी अवश्य ले ताकि आप भी अपना जीवन आरोग्य के साथ healthy बना सके| thanks .
वनस्पतियों का घरेलू उपयोग: Domestic Uses of plants:in hindi
मानव युगों-युगोंसे प्रकृतिके साहचर्यमें रहता आया है। उसने वनस्पतियों(plants)को नाना रूपोंमें अपने प्रयोगमें लाकर तत्सम्बन्धित कुछ अनुभव अर्जित किये हैं। इन वनस्पतियोंका साधारण ज्ञान लोक-जीवनमें प्रचुर मात्रामें बिखरा पड़ा है। यहाँ कुछ वनस्पतियों और उनके प्रयोगपर सामान्य प्रकाश डाला जा रहा है-
1. सिंधुवार-
-सिन्धुवारके पत्तेको एक सेर पानीमें रखकर औटा लें। जब एक पाव पानी शेष रहे तो इस पानीसे धोनेपर गठियाके दर्द तथा सूजनमें शीघ्र ही लाभ होता है।
-सिन्धुवारकी जड़ दो माशा पीसकर गायके घीमें पकाकर सुबह-शाम सेवन करनेसे यह नीरोग बनाता है, दिमागको ताकत देता है तथा शरीरमें फुर्ती लाता है।
-सिन्धुवारको पीसकर लगानेसे बिच्छूका विष शीघ्र दूर हो जाता है।
2. पीपल-
-पीपलके कोमल पत्तोंके रसमें शुद्ध मधु मिलाकर आँखपर लेप करनेसे आँखकी लाली, फूल्ला जड़से दूर हो जाता है। यह आँखके अन्य रोगोंको भी समाप्त कर ज्योति बढ़ाता है (आँखके अंदर गिर जानेपर कोई नुकसान भी नहीं पहुँचाता)।
-पीपलके कोमल पत्तोंक रसको कानमें डालनेसे कानदर्द, कानका बहना तथा बहरापन दूर हो जाता है।
-पीपलके फलको कूटकर कपड़ेसे छानकर चार आना भर चूर्णको एक आना भर शहदके साथ मिलाकर खानेसे चन्द दिनोंमें पुरानी खाँसी दूर हो जाती है। पीपलका पत्ता घीसे चुपड़कर फोड़ेपर बाँधनेसे आराम देता है।
-पीपलके फलको सुखाकर, कूटकर कपड़ेसे छानकर चार आना भर मात्रा रोज गायके ताजा दूधके साथ सेवन करनेपर धातुको गाढ़ा करता है। बल-वीर्य बढ़ाता है, ताकत पैदा करता है और स्त्रीके प्रसूतजन्य मासिक गड़बड़ी-प्रदरको शान्त करता है।
3. गेंहू-
गेहूँको जलाकर उसकी भस्मको शुद्ध सरसोंके तेलमें मिलाकर किसी भी प्रकारके चर्मरोग- दाद, खुजली, घाव आदिमें लगानेसे शीघ्र लाभ होता है।
4. बबूल-
बबूलकी छालको गरम पानीमें गरम करके उसके पानीको खुरपकाग्रस्त पशुके पैरोंपर डालनेसे यह रोग ठीक हो जाता है।
5. सफेद कनेर के पत्ते-
सफेद कनेरके पत्तोंको लेकर खूब गरम तेलमें डालकर इतनी देरतक गरम करें कि वह सूख जाय, तब उसे उतारकर बारीक पीसकर जो मरहम तैयार हो उसे दाद-खाज-खुजलीपर लगानेसे लाभ होता है।
6. सेम के पत्ते-
सेमके पत्तोंको नित्यप्रति आठ-दस दिन लगानेसे दाद ठीक हो जाता है।
7. दुग्धी-
इस वनस्पति के पत्तोंको तोड़नेपर दूध निकलता है, इसको तोड़कर पानीसे धोकर चबानेसे मुँहके छाले दूर हो जाते हैं।
8. कटहेरी का फूल -
कटहेरीके फूलोंके बीचमें एक पीला अङ्ग होता है उसे खानेसे खाँसी दूर हो जाती है।
जीर्ण ज्वरमें कटहेरी, मोंठ और गिलोयका काढ़ा देनेसे लाभ होता है।
मूत्रकृच्छ्रमें कटहेरीका रस मधुके साथ पीनेसे लाभ होता है।
नेत्रपीड़ामें कटहेरीके पत्तोंका रस आँखोंमें डालने और पीसकर बांधने ने से लाभ होता है।
9. औंधा या उलटा चिरचिटा-
इस पेड़की जड़को पीसकर लेप करनेसे बिच्छूका काटा शान्त हो जाता है।
10. सोंठ-
सोंठकी जड़ दहीमें पीसकर पीनेसे दस्त बंद हो जाते हैं।
सौंठ पीसकर पशुकी आँखमें काजलकी तरह लगानेसे पशुका रुका हुआ मल-मूत्र होने लगता है।
11. औधा के पत्ते-
पशुओंमें प्रायः चिरैया विषका रोग हो जाता है, जिससे वे एकदम सूख जाते हैं। इसके लिये इन पत्तोंको पशुके माथेपर खूब मलना चाहिये पर इसकी थोड़ी-सी मात्रा खिलानेसे पशुकी सूजन दूर हो जाती है।
12. बाजरा की करव-
इसकी करवको जलाकर तपाने तथा राखको शरीरमें मलनेसे चिरैया विष दूर हो जाता है।
13. भँगरा -
इसके पत्तोंको तोड़कर उनके तीन हिस्से करके पहला हिस्सा पशुको खिलाना चाहिये तथा दूसरे हिस्सेको गर्दनमें बाँध देना चाहिये और तीसरे हिस्सेको गङ्गाजलमें घोलकर उसके शरीरपर छिड़कनेसे पशुकी नजर दूर हो जाती है। यह कार्य शनिवारके दिन होना चाहिये।
14. पर्वती गोखरू-
इसके चूर्णको दूधके साथ लेनेसे प्रदररोग ठीक हो जाता है।
15. आक का पत्ता-
आकके पत्तेमें नमक मिलाकर तथा उसे जलाकर वह राख खानेसे पेटका दर्द शान्त तथा हाजमा ठीक हो जाता है।
बिच्छूके काटनेपर आकके पेड़के किसी भी अंगको पीसकर लगानेसे लाभ होता है।
आकके पत्ते तेलमें चुपड़कर गर्म करके लकवा-रोगमें बाँधना चाहिये जिससे तुरंत आराम ( मिलता है।)
चर्मरोग, फोड़ा-फुंसी आदि भीतरी अंगोंकी मोटाईपर अर्कका प्रयोग उत्तम लाभ पहुँचाता है।
16. सुदर्शन का पत्ता-
इसके रसको गरम करके कानमें डालनेसे कान का दर्द ठीक हो जाता है।
17. गेंदा की पत्ती-
इसकी लुगदी बनाकर दाढ़पर का रखनेसे दाढ़का दर्द बंद हो जाता है
18. काली मिर्च-
काली मिर्चाको दाँतोंसे मोटा-मोटा तोड़कर निगल जानेपर कब्जियत ठीक हो जाती है।
19. झरबेरी-
इसकी जड़की छालको फिटकरी डालकर कुल्ला करनेसे मुँहके छाले दूर हो जाते हैं।
20. चमेली के पत्ते-
इन पत्तोंका काढ़ा बनाकर कुल्ला करनेसे मुँहके छाले दूर हो जाते हैं।
पीली मिट्टीको मलकर कुल्ला करके शुद्ध घी लगानेसे मुँहके छाले दूर हो जाते हैं।
21. फिटकरी-
फिटकरीके टुकड़ेको मुँहमें रखकर बाहर थूकनेसे मुँहके छाले दूर हो जाते हैं
22. नीम के पत्ते-
इनके काढ़ेसे फोड़ेको धोनेसे फोड़ेका विष दूर हो जाता है।
23. नीम एवं अपामार(औंगा)-
इनकी दातौन करनेसे पायरिया रोग ठीक हो जाता है।
24. अरहर-
अरहरकी जड़ पीसकर फुलीपर लगानेसे फुली ठीक हो जाती है।
अरहर और मसूरकी दालोंको औटा लें इसमें कपूर मिलाकर कुल्ला करनेसे जीभकी जलन ठीक हो जाती है। पत्तियोंके रसका कुल्ला करने या अरहरकी दाल पानीमें भिगोकर उसके पानीसे कुल्ला करनेसे भी लाभ होता
25. एरण्ड-
नासूरपर एरण्डकी छाल पीसकर मेंहदीकी तरह लगानेसे लाभ होता है।
जलेपर एरण्डके पत्तोंका रस तेलमें पकाकर उसे लगानेसे शीघ्र ही लाभ होता है।
नींद लानेके लिये एरण्डका काजल लगानेसे लाभ होता है।
बवासीरमें एरण्डके पत्तेका बफारा देनेसे लाभ होता है।
26. आम-
कण्ठरोगमें आमके पत्तोंकी धूनी लाभदायक होती है।
हैजेमें कच्चे आमके गूदेको सेककर शक्करमें मिलाकर रख दे। यथासमय खिलानेसे आराम होता है।
पेटके कीड़ोंको मारनेके लिये आमकी गुठली चार माशेके करीब खानी चाहिये।
27. आलूबुखारा-
हैजेमें आलूबुखारा, सोंठ, पोदीना, बीजरहित मुनक्का, काला सेंधा नमक और जीरेकी चटनी देनेसे लाभ पहुँचता है।
28. इमली-
दुखते हुए बवासीरमें इमलीके फलका रस लगानेसे शीघ्र आराम होता है।
पित्ती निकलनेके समय इमलीकी छालकी धूनीसे लाभ होता है।
गलेकी सूजनमें इमलीके पानीका कुल्ला करनेसे लाभ होता है।
29. कमल-
काँच पेटके अंदर चले जानेपर कमलके पत्तोंको खाँडके साथ खानेसे लाभ होता है।
घावपर लाल कमल और बरगदके पत्ते जलाकर, बादाम रोगनके साथ सेवन करनेसे लाभ होता है।
30. कपास-
-स्तनों (आँचल) पर कपासके बीजका लेप करनेसे स्त्रीका दूध बढ़ता है।
31. करील-
बरसाती फोड़ोंपर करीलका कोयला तेलमें मिलाकर लगानेसे आराम होता है।
32. करेला-
पेटके कीड़े करेलेका रस पिलानेसे बाहर निकल जाते हैं।
जलन्धरमें करेलेके दो तोले रसमें शहद मिलाकर देनेसे लाभ होता है।
33. करोंदा-
ज्वर में करोंदेकी जड़का काढ़ा देनेसे लाभ होता है।
खाँसीमें करोंदेके पत्ते शहदमें मिलाकर खानेसे लाभ होता है।
34. चौराई-
नेहरुआपर चौराईकी जड़ पीसकर लगानेसे वह ठीक हो जाती है।
विष और मूत्रकृच्छ्रमें चौराईकी जड़ घीके साथ देनी चाहिये।
35. जामुन-
रूखी और संग्राही है, कफ और रुधिरविकार तथा विभिन्न प्रकारके उदरविकारोंको दूर करती है।
36. तरबूज-
सिरदर्दमें तरबूजेके बीज और मुचकन्दके फूल पानीमें पीसकर लेप करना चाहिये।
ओठोंके फटनेपर लौकी, तोरई और तरबूजके बीज पीसकर यदि लेप करें तो शीघ्र लाराम होता है। ये थे कुछ वनस्पतियों(plants) के घरेलू उपयोग|