→हमारे भारत देश मे कश्मीर से मणिपुर तक अखरोट के पेड़ बहुत सारे होते है|पेड़ की लंबाई 60- 90 फुट तक होती है| अखरोट क फूल सफेद रंग के छोटे-छोटे गुच्छे के रूप मे लगते है|और इसके पत्ते 4-8 इंच तक लंबे, अंडकार ,नुकीले और तीन दो कंगूरे वाले होते है| इसके पत्ते संकोचक और पोस्टिक होते है तथा धातु परिवर्तक और शरीर की क्रियाओ को ठीक करने वाले माने जाते है|
फल– अखरोट(walnut ) के फल गोल और मैनफल के समान होता है|फल के भीतर बादाम के तरह मींगी निकलती है| अखरोट दो प्रकार का होता है- एक को अखरोट और दूसरे को रेखा फल कहते है| इसके पौधे के लड़की बहुत ही मजबूत , अच्छी और भूरे रंग की होती है|
छिलका एवं काढ़ा– इसका छिलका कृमिनाशक और विरेचक है| इसका काढ़ा गल ग्रंथियों के लिए उपयोगी माना जाता है,और कृमिनाशक है |गठिया के बीमारी मे इसका फल धातु परिवर्तक होता है|उपदंश, विसप्रिका ,खुजली, कंठमाला इत्यादि रोगों मे यह लाभकारी माना जाता है|
गुण -दोष एवं उपयोग- आयुर्वेद के अनुसार अखरोट मधुर, किंचित खट्टा, स्त्रीगध ,शीतल,वीर्यवर्धक,गर्म, रुचिदायक, कफ पितवर्धक ,तथा वात- पित , क्षय,वात,हृदयरोग,रक्तवात,रुधिर दोष को दूर करने वाला है|
1. कंठमाला– अखरोट के पत्तों का काढ़ा पिए और उसी से गांठ को धोने से कंठमाला मीट जाता है|
2.नासूर– इसकी मिली हुई गिरी को मोम और मीठे तेल के साथ गलाकर लेप करने से नासूर नष्ट हो जाता है|
3.नारू -इसकी खली को पानी के साथ पीसकर गर्म करके सूजन पर लेपकर पट्टी बांधकर तपानेसे से सूजन उतार जाता है|14- 20 दिन करने पर नारू गलकर नष्ट हो जाता है|
4. कृमिरोग-इस पेड़ के छालों के काढ़ा पिलाने से आंतों के कीड़े मर जाते है|
5. मुंह का लकवा– इसके तेल का मर्दन करके वादी मिटाने वाली औषधियों के काढ़ा का बफारा लेने से इस रोग मे बाद लाभ होता है|
6. सूजन– पवभर गोमूत्र मे 1 से 4 तोले तक अखरोट का तेल मिलाकर पान करने से शरीर की सूजन उतरती है|
7. विरेचक(दस्त लाना)- अखरोट की गिरी से तेल खिचा जाता है, वह एक औससे दो औस तक देने से मृदु विरेचन होता है|