Aarogya Anka

स्वस्थ जीवन आरोग्य अंक /आयुर्वेद के साथ

आयुर्वेद दुनिया का प्राचीनतम चिकित्सा प्रणाली है Ιऐसा माना जाता है की बाद मे विकसित हुई अन्य चिकित्सा पद्धतियों मे इसी से प्रेरणा ली गई है Ιकिसी भी बीमारी को जड़ से खत्म करने के खासियत के कारण आज अधिकांश लोग आयुर्वेद के तरफ जा रहे हैΙइस लेख मे हम आयुर्वेद चिकित्सा से जुड़ी हर एक रोग और उसके इलाज के बारे मे बताएंगे Ιआयुर्वेद चिकित्सा के साथ सभी प्रकार के जड़ी -बूटी के बारे मे तथा आयुर्वेद के 8 प्रकारों से हर तरह के रोगों के इलाज के बारे मे बताया गया हैΙ सभी पोस्टों को पढे ओर जानकारी अवश्य ले ताकि आप भी अपना जीवन आरोग्य के साथ healthy बना सके| thanks . 

Delivery के बाद माँ और शिशु का देखभाल कैसे करे?

1. Delivery के बाद स्वास्थ्यरक्षक नुसके-

delivery

सामान्यतः देखा जाता है की महिलाये delivery के बाद पूरा ध्यान शिशु के तरफ लगा देती है|अपनी शारीरिक देखभाल की तरफ उनका ध्यान नहीं रहता, जिससे वे कमजोर एवं सिथिल हो जाती है|इस समय माँ को उचित खान-पान तथा घरेलू उपचार से स्वास्थ एवं सुंदर बनाया जा सकता है|

प्रसव के समय गर्भवती स्त्री को गरम दूध मे 6-7 छुहारा तथा केसर डालकर पिलाए|इससे प्रसव आसानी से कम कष्ट मे होगा , इसके बाद 3 gm  हिराबोल का चूर्ण और 10 gm गुण का मिश्रण बनाए|इसकी समान वजन की 6 गोली बना ले|delivery के पश्चतात 2 गोली प्रतिदिन 3 दिन तक सेवन कराए|इससे गर्भाशय की शुद्धि होती है|

2. पीने का पानी-

delivery के बाद माँ को 40 दिनों तक ठंडे पानी का सेवन नहीं करना चाहिए|ठंडे पानी का किसी भी चीज मे उपयोग नहीं करना चाहिए|delivery के बाद पहले हफ्ते से निम्न विधि से पानी का सेवन करना चाहिए- 

पानी 5 लीटर, 5-6 गांठ सोंठ, 5-7 लौंग तथा 50 gm  अजवाइन डालकर उबाल ले|ठंडा होने पर छान कर किसी बर्तन मे रख दे| पहले 8 दिन इसी पानी का सेवन करना चाहिए| इसके बाद 1 month  सिर्फ गरम पानी ठंडा करके पिए| इसके बाद ताजा पानी शुरू कर दे|

यदि हो सके तो माँ को 10 दिन तक अन्न का सेवन नहीं करना चाहिए|हरीरा और गर्म दूध देना चाहिए|मेवे का हलवा भी दे सकते है|11 वे दिन से अन्न का सेवन शुरू करे|

3. हरीरा बनाने के लिए सामग्री-

200 gm अजवाइन,100 gm  सोंठ, 10 gm  पीपल, 10 gm  पिपला मूल, 100 gm  बादाम, 200 gm छुहारा,200 gm गोंद तथा आवश्यकता अनुसार घी और गुङ ले|

4. हरीरा बनाने की विधि-

अजवाइन,सोंठ, पीपल तथा पिपलमूल को कूटकर अलग रख ले|बादाम, छुहारा तथा मेवा काटकर रख ले|सभी सामग्री को 10 भागों मे करके पुड़िया बना ले|1 पुड़िया रोग उपयोग मे लाए|

सबसे पहले कड़ाई मे घी डालकर 20 gm गोंद तले, इसके बाद पहली चारों चीजों की एक-एक पुड़िया डालकर भुने, उसमे अंदाज से गुड डालकर चलाए|अब 2 कप पानी डाले|थोड़ा गढ़ा होने पर पीसी गोंद और मेवा डालकर आंच से नीचे उतारे|हरीरा गर्म दूध के साथ सेवन करे|

5. भोजन-

भोजन मे हरी सब्जी ,मूंग की दाल और चपाती देना चाहिए|5 गांठ सोंठ तथा 20 लौंग पीसकर सीसी मे रख ले, भोजन करते समय दाल सब्जी मे यह चूर्ण डाल दे| सुबह-शाम लड्डू खिलाकर गरम दूध पिलाना चाहिए|हरीरा या लड्डू खाने के 1 घंटे तक पानी का सेवन नहीं करना चाहिए|खाना खाने के बाद भुनी हिंग का सेवन करना चाहिए|

6. लड्डू बनाने की विधि-

सामग्री-

सोंठ 100 gm , पिपलमूल 20 gm , पीपल 20 gm , जावित्री 5 gm , जायफल 1, सफेद मूसली 50 gm , असगंधा 20 gm , मिश्री 20 गम, गोखरू 20 gm , सतावर 20 gm , विदारी कंद 20 gm , काली मूसली 20 gm , सम्हालु  के बीज 20 gm ,सुपारी के फूल 20 gm , चिकनी सुपारी 50 gm ,केसर 5 gm |

आवश्यक मेवा- 

बादाम 250gm ,छुहारा 500 gm , नरियालगोला 500 gm ,, गुड 2 kg ,घी 150 gm | 

विधि-

पहले घी मे गोंद तले|फिर सब दवाइयों का चूर्ण बनाकर घी मे भुने|फिर सभी मेवा बारीक काटकर भुने|अब गुड कूटकर घी, मेवा , दवाइयाँ मिलाकर दवाइयाँ बना ले|

7. पान-

पान इस प्रकार बनाए-

एक पान मे थोड़ा सूखा कत्था ,हल्का चुना लगाए|जायफल 2-3 टुकड़े, सुपारी 2-3 टुकड़े, थोड़ी सी जयपत्री एवं एक लौंग रखे|यह पान प्रसूता( डेलीवेरी हुई महिला)को खिलाए|

8. दशमुल काढ़ा-

दशमूल काढ़ा को सुबह-शाम दो बार सेवन करे|यह बहुत लाभकारी है|

9. मालिश-

प्रसूता के लिए 40 दिन तक मालिश आवश्यक है|मालिश सरसों का तेल या painkill oil से करे|

10. मंजन-

delivery के बाद प्रसूता को 1 चम्मच सरसों तेल और एक चम्मच सेंधा नमक मिलाकर मंजन करना करना चाहिए| इससे मसूड़े स्वस्थ और मजबूत होते है|

11. पेट बड़ा न हो-

delivery के बाद अधिकांश स्त्रियों का पेट बड़ा हो जाता है|इससे बचने के लिए delivery के बाद 1 month तक पेट पर कपड़ा या market मे belt मिलता है वो बांधना चाहिए|

12. व्यायाम-

delivery के 40 दिन बाद हल्का तथा थोड़ा व्यायाम करे|धीरे-धीरे व्यायाम का समय बढ़ाया जा सकता है|

delivery के बाद यदि वजन बढ़ रहा है तो भूखे न रहे, संतुलित एवं पोस्टिक भोजन ले| 

13. शिशु का देखभाल-

शिशु मानव जाती का साररूपी धन है|इसके लालन पालन मे बहुत सतर्क की जरूरत है|आज के बच्चे कल के कर्णधार है|इन्ही पर देश समाज की उन्नति निर्भर है|

जब बच्चा माँ के गर्भ मे रहता है तब उसके शरीर का पालन-पोषण माँ के आहार से होता है|इसलिए जो गर्भवती स्त्री पोस्टिक आहार लेती है, वह स्वास्थ, सुडौल और निरोग शिशु को जन्म देती है|जन्म मे बाद भी बच्चा स्वास्थ, निरोग बना रहे और उसका समुचित विकास हो सके- इसके लिए माता को delivery के बाद कम-से-कम 6 month तक अपने खान-पान और आहार का विशेष ध्यान रखनी चाहिए|पोस्टिक आहार एवं दूध का सेवन करनी चाहिए|तथा शिशु को भी पोषक आहार देने की पूरा ध्यान रखना चाहिए|

14. शिशु स्वास्थ्य का संरक्षक- स्तनपान-

दूध शिशु का आहार माँ के दूध से शुरू होता है|प्रकृति द्वारा माँ को दिया गया अमूल्य उपहार दूध है, जिसे माँ अपने शिशु को देती है|माँ के दूध मे शिशु के लिए आवश्यक पोषकतत्व उपलब्द रहते है|यह दूध हल्का एवं सुपाच्य होता है|माँ के दूध से बढ़कर संसार मे बच्चे के लिए अन्य कोई खाद्य पदार्थ नहीं है|

15. शिशु को कितनी बार और कितना दूध पिलाना चाहिए-

बच्चे की उम्र दिन मे
कितनी देर बाद दूध पिलाए
रात मे
कितनी बार दूध पिलाए
24 घंटे मे
कुल कितनी बार दूध पिलाना चाहिए
1 बार मे
कितना दूध पिलाना चाहिए
पहले 4 दिन मे प्रति 2 घंटे पर 2 बार 6-10 बार 1-2 औसत तक
5,6 और 7 वे दिन प्रति 2 घंटे पर 2 बार 10 बार 1-2 औसत
दूसरे सप्ताह मे प्रति 2 घंटे पर 2 बार 8 बार 2 से 2 1/2 औसत
तीसते सप्ताह मे प्रति 2 घंटे पर 2 बार 8 बार 2 1/2 से 3 औसत तक
चौथे और 8 वे सप्ताह मे प्रति 2 1/2 घंटे पर 1 बार 7 बार 3-4 औसत तक
तीसरे महीने मे प्रति 2 1/2 घंटे पर 1 बार 7 बार 4 से 5 औसत
चौथे महीने मे प्रति 3 घंटे पर 1 बार 6 बार 5 से 5 1/2 औसत
पाँचवे महीने मे प्रति 3 घंटे पर 1 बार 6 बार 5 1/2 से 6 औसत
छः से 10 महीने मे प्रति 3 घंटे पर 1 बार 5 बार 6-8 औसत 
         

16. बच्चों को कब और कैसे दूध छुड़ाना चाहिए-

10 या 12 महीने के बाद बच्चों को  दूध पिलाना धीरे-धीरे बंद कर देना चाहिए|माँ का दूध बंद कर देने के बाद भी बच्चे का मुख्य आहार दूध ही होना चाहिए|5 महीने पूरे होने के बाद ही शिशु को माँ के दूध के साथ-साथ ही अन्य खाद्य पदार्थ उचित मात्रा मे युक्ति से साथ खिलना-पिलाना शुरू कर देना चाहिए|दूध-भात, दूध मे पकाई हुई सूजी भी दी जा सकती है|माँ का दूध बंद होने पर कम-से-कम तीन पाव तक दूध हर रोज पिलाना चाहिए|इसके अलावा पानी और फलों का रस भी पिलाना जरूरी है|

17. कीन-कीन दशाओ मे माँ को दूध नहीं पिलाना चाहिए-

  1. जिन स्त्रीओ को क्षय , कुष्ट, कैंसर आदि भयंकर रोग हो उन्हे अपने बच्चों को दूध नहीं पिलाना चाहिए|
  2. गर्भवती स्त्रीओ द्वारा दूध पिलाना, स्त्री के स्वस्थ्य और गर्भाशय बालक के स्वास्थ की दृष्टि से मना है|
  3. यदि स्तन मे किसी खास कारण से दर्द हो या उसमे खास तरह का नजूकपन मालूम हो तब भी दूध पिलाना मन है|

18. 9 से 12 महीनों के बाद बच्चों को दिया जाने वाला भोजन और उसके तरीका-

जब बच्चा 9-10 महीने का हो जाए तब तो उसको 1 या 2 बार सूजी , चावल या दाल की बनी पतली चीज़े , दूध मे भिगोई हुई रोटी, पके केले तथा खिचड़ी आदि दिया जा सकता है|इन सबके सतह उसे दूध पी देना जरूरी है| समय-समय पर थोड़ा-थोड़ा पानी देना चाहिए|सब्जियों का सूप भी बहुत लाभकारी होता है|

19. बच्चे के लिए नींद की आवश्यकता-

स्वास्थ बच्चे के लिए नींद की आवश्यकता उसकी उम्र, पर्यावरण एवं वैयक्तिक भिन्नता के संदर्भ मे नीचे दिए गए सारणी के अनुसार होती है-

1 महीना       – 100%        – 22 घंटे 

2 महीना        -100%        – 21.5 घंटे 

3 महीना         – 100%        – 21 घंटे 

4 महीना         – 100%          – 20 घंटे 

पाँच-छः महीना  -100%        – 19 घंटे 

7-12 महीना    – 100%         – 18 घंटे 

1- 2 वर्ष           – 100%         – 16 घंटे 

यदि बच्चे का स्वास्थ 100% से कम हो तो उसकी नींद मे कमी आएगी| इसके लिए निश्चित प्रमाण नहीं है|

20. शिशु के शयन-संबंधी महत्वपूर्ण बाते-

  1. शिशु का सोने का स्थान शांत, स्वच्छ और वायुप्रवेशक हो|
  2. उसे अपने ही पलंग पर सुलाना चाहिए|
  3. बच्चों का बिछौना नरम सुखदायक होन चाहिए|शिशु की आँखों पर प्रकाश की किरणे नहीं पड़नी चाहिए|
  4. शिशुओ को कोई वस्तु मुह मे रखकर नहीं सोने देना चाहिए|
  5. शिशु को मुह ढककर नहीं सुलाना चाहिए|एकदम औधा या एकदम सीधा नहीं सुलाना चाहिए|
  6. सोते हुए बालकों को साहसा नहीं जगाना चाहिए|

21. शिशु विकास के लक्षण-

  1. तीन मास की आयु मे बच्चा अपनी गर्दन को सीधा रखने की क्रिया सीखता है|
  2. 6 महीने के उम्र मे या उससे एकाध महीने आगे पीछे वह बैठना सीखता है|
  3. 9 महीने की उम्र मे खड़ा होन सीखता है, तथा पैरों के बल घिसटने लगता है|
  4. 10- 12 माह की उम्र मे वह सहारा लेकर चलना सीखता है|
  5. 1 वर्ष या इससे 1-2 महीने अधिक की अवस्था मे वह स्वतंत्र रूप से चलना सीखता है|तथा छोटे-छोटे शब्द जैसे-  मा, पा, टा , दा का उच्चारण कर सकता है|
  6. स्वया वर्ष का बालक सरलता से दौड़ सकता है और छोटे-छोटे सरल शब्दों का उच्चारण कर सकता है|
  7. 2 वर्ष की अवस्था मे उसे कुछ बोलना आना ही चाहिए|
  8. 3 वर्ष मे बालक पूर्ण बोलना, जो की मनुष्य का सर्वश्रेष्ठ गुण है, सिख लेता है|
  9. 5 वर्ष के बाद, बच्चे विद्या आरंभ करने योग्य हो जाते है|ये 5 वर्ष ही शिशु जीवन काल कहलाते है|

22. दांत निकलने के समय-

बच्चों मे करीब 8 माह से लेकर 14 माह तक दाँत निकलना अच्छा माना जाता है|अधिकांशतः नीचे के दाँत ऊपर के दाँत के पहले निकलते है|दूध के दाँत ढाई वर्ष तक निकलते है|

  • 1 वर्ष के बच्चे- लगभग 6 दाँत |
  • डेड वर्ष के बच्चे- लगभग 12 दाँत |
  • 2 वर्ष के बच्चे- लगभग 18 दाँत | 
  • ढाई वर्ष के बच्चे – लगभग 20 दाँत |

4-6 वर्ष मे बच्चों के दूध के दाँत धीरे-धीरे टूटने लगते है, और नए दाँत आने लगते है|6 वर्ष मे प्रायः 28 दाँत  होते है|युवा अवस्था मे 32 दाँत होते है| बताया गया है दांतों की संख्या 32 लेकिन इसकी संख्या सर्वस 32 निश्चित नहीं है|

23. बच्चों के रोग प्रतिकारक टीके कब और कैसे दे?-

बच्चों का रोग- प्रतिरोगात्मक टीके सही समय पर डाक्टर की सलाह लेकर लगवाने चाहिए|यहो बच्चा ज्वर,दस्त,उलटी,एलर्जी,सर्दी आदि से पीड़ित है तो टीके न लगवाए| टीके लगवाकर कर बच्चों को कई जानलेवा बीमारियों से बचाया जा सकता है|

24. who (World Health Organization) के द्वारा रोग-प्रतिकारकता के लिए सूचित समय पत्रक-

  1. जन्म के समय- बी सी जी  और पोलियो- विरोधी टीके का पहला डोज बच्चे को दे|
  2. बच्चे के डेड माह की उम्र मे- त्रिगुणी टीके का पहला डोज और पोलियो विरोधी टीके का दूसरा डोज दे|
  3. बच्चे की ढाई माह की उम्र मे – त्रिगुणी टीके का दूसरा डोज और पोलियो विरोधी का तीसरा डोज दे|
  4. बच्चे की साढ़े 3 माह की उम्र मे – त्रिगुणी टीके का तीसरा डोज तथा पोलियो विरोधी का चौथा डोज दे|

द्विगुणी टीके- बच्चों के त्रिगुणी टीके डोज पूरे होने के बाद डेड,तीन ,पाँच और चौदह वर्ष की उम्र मे दिए जानेवाले बूस्टर डोज मेसे 5 और 14 वर्ष मे त्रिगुणी के स्थान पर द्विगुणी टीके लगाए जाते है|

बाल-लकवा के टीके- टीम महीने के उम्र के बच्चे को 4-6 सप्ताह के अंतर पर 3-5 डोज पिलाने चाहिए|

खसरा के टीके- 9 महीने से 2 वर्ष की उम्र के बीच यह टीका लगाया जाता है|यह टीका एक ही बार लगता है|

टाइफाइड टीका- जन्म के बाद 5 वर्ष तक के बच्चों को टायफाइड के टीके लगवाए जा सकते है|

संक्रामक पीलिया के टीके- पीलिया एक संक्रामक रोग है| यह बीमारी फैल रही हो तो इसके संक्रमण से बचने के लिए ‘ हेपेटाईटीस बी ‘ नामक टीके दिए जाते है|1-1 महीने के अंतर पर ऐसे तीन इन्जेक्शन लेने चाहिए|

टीके सही समय पर बच्चों को  लगवाना अति आवश्यक है| 

“Thank you very much for reading our blog. We will try to provide you with more useful information and hope that you can learn something new and live a healthy life.”

stay healthy and stay safe.

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