1. Delivery के बाद स्वास्थ्यरक्षक नुसके-
सामान्यतः देखा जाता है की महिलाये delivery के बाद पूरा ध्यान शिशु के तरफ लगा देती है|अपनी शारीरिक देखभाल की तरफ उनका ध्यान नहीं रहता, जिससे वे कमजोर एवं सिथिल हो जाती है|इस समय माँ को उचित खान-पान तथा घरेलू उपचार से स्वास्थ एवं सुंदर बनाया जा सकता है|
प्रसव के समय गर्भवती स्त्री को गरम दूध मे 6-7 छुहारा तथा केसर डालकर पिलाए|इससे प्रसव आसानी से कम कष्ट मे होगा , इसके बाद 3 gm हिराबोल का चूर्ण और 10 gm गुण का मिश्रण बनाए|इसकी समान वजन की 6 गोली बना ले|delivery के पश्चतात 2 गोली प्रतिदिन 3 दिन तक सेवन कराए|इससे गर्भाशय की शुद्धि होती है|
2. पीने का पानी-
delivery के बाद माँ को 40 दिनों तक ठंडे पानी का सेवन नहीं करना चाहिए|ठंडे पानी का किसी भी चीज मे उपयोग नहीं करना चाहिए|delivery के बाद पहले हफ्ते से निम्न विधि से पानी का सेवन करना चाहिए-
पानी 5 लीटर, 5-6 गांठ सोंठ, 5-7 लौंग तथा 50 gm अजवाइन डालकर उबाल ले|ठंडा होने पर छान कर किसी बर्तन मे रख दे| पहले 8 दिन इसी पानी का सेवन करना चाहिए| इसके बाद 1 month सिर्फ गरम पानी ठंडा करके पिए| इसके बाद ताजा पानी शुरू कर दे|
यदि हो सके तो माँ को 10 दिन तक अन्न का सेवन नहीं करना चाहिए|हरीरा और गर्म दूध देना चाहिए|मेवे का हलवा भी दे सकते है|11 वे दिन से अन्न का सेवन शुरू करे|
3. हरीरा बनाने के लिए सामग्री-
200 gm अजवाइन,100 gm सोंठ, 10 gm पीपल, 10 gm पिपला मूल, 100 gm बादाम, 200 gm छुहारा,200 gm गोंद तथा आवश्यकता अनुसार घी और गुङ ले|
4. हरीरा बनाने की विधि-
अजवाइन,सोंठ, पीपल तथा पिपलमूल को कूटकर अलग रख ले|बादाम, छुहारा तथा मेवा काटकर रख ले|सभी सामग्री को 10 भागों मे करके पुड़िया बना ले|1 पुड़िया रोग उपयोग मे लाए|
सबसे पहले कड़ाई मे घी डालकर 20 gm गोंद तले, इसके बाद पहली चारों चीजों की एक-एक पुड़िया डालकर भुने, उसमे अंदाज से गुड डालकर चलाए|अब 2 कप पानी डाले|थोड़ा गढ़ा होने पर पीसी गोंद और मेवा डालकर आंच से नीचे उतारे|हरीरा गर्म दूध के साथ सेवन करे|
5. भोजन-
भोजन मे हरी सब्जी ,मूंग की दाल और चपाती देना चाहिए|5 गांठ सोंठ तथा 20 लौंग पीसकर सीसी मे रख ले, भोजन करते समय दाल सब्जी मे यह चूर्ण डाल दे| सुबह-शाम लड्डू खिलाकर गरम दूध पिलाना चाहिए|हरीरा या लड्डू खाने के 1 घंटे तक पानी का सेवन नहीं करना चाहिए|खाना खाने के बाद भुनी हिंग का सेवन करना चाहिए|
6. लड्डू बनाने की विधि-
सामग्री-
सोंठ 100 gm , पिपलमूल 20 gm , पीपल 20 gm , जावित्री 5 gm , जायफल 1, सफेद मूसली 50 gm , असगंधा 20 gm , मिश्री 20 गम, गोखरू 20 gm , सतावर 20 gm , विदारी कंद 20 gm , काली मूसली 20 gm , सम्हालु के बीज 20 gm ,सुपारी के फूल 20 gm , चिकनी सुपारी 50 gm ,केसर 5 gm |
आवश्यक मेवा-
बादाम 250gm ,छुहारा 500 gm , नरियालगोला 500 gm ,, गुड 2 kg ,घी 150 gm |
विधि-
पहले घी मे गोंद तले|फिर सब दवाइयों का चूर्ण बनाकर घी मे भुने|फिर सभी मेवा बारीक काटकर भुने|अब गुड कूटकर घी, मेवा , दवाइयाँ मिलाकर दवाइयाँ बना ले|
7. पान-
पान इस प्रकार बनाए-
एक पान मे थोड़ा सूखा कत्था ,हल्का चुना लगाए|जायफल 2-3 टुकड़े, सुपारी 2-3 टुकड़े, थोड़ी सी जयपत्री एवं एक लौंग रखे|यह पान प्रसूता( डेलीवेरी हुई महिला)को खिलाए|
8. दशमुल काढ़ा-
दशमूल काढ़ा को सुबह-शाम दो बार सेवन करे|यह बहुत लाभकारी है|
9. मालिश-
प्रसूता के लिए 40 दिन तक मालिश आवश्यक है|मालिश सरसों का तेल या painkill oil से करे|
10. मंजन-
delivery के बाद प्रसूता को 1 चम्मच सरसों तेल और एक चम्मच सेंधा नमक मिलाकर मंजन करना करना चाहिए| इससे मसूड़े स्वस्थ और मजबूत होते है|
11. पेट बड़ा न हो-
delivery के बाद अधिकांश स्त्रियों का पेट बड़ा हो जाता है|इससे बचने के लिए delivery के बाद 1 month तक पेट पर कपड़ा या market मे belt मिलता है वो बांधना चाहिए|
12. व्यायाम-
delivery के 40 दिन बाद हल्का तथा थोड़ा व्यायाम करे|धीरे-धीरे व्यायाम का समय बढ़ाया जा सकता है|
delivery के बाद यदि वजन बढ़ रहा है तो भूखे न रहे, संतुलित एवं पोस्टिक भोजन ले|
13. शिशु का देखभाल-
शिशु मानव जाती का साररूपी धन है|इसके लालन पालन मे बहुत सतर्क की जरूरत है|आज के बच्चे कल के कर्णधार है|इन्ही पर देश समाज की उन्नति निर्भर है|
जब बच्चा माँ के गर्भ मे रहता है तब उसके शरीर का पालन-पोषण माँ के आहार से होता है|इसलिए जो गर्भवती स्त्री पोस्टिक आहार लेती है, वह स्वास्थ, सुडौल और निरोग शिशु को जन्म देती है|जन्म मे बाद भी बच्चा स्वास्थ, निरोग बना रहे और उसका समुचित विकास हो सके- इसके लिए माता को delivery के बाद कम-से-कम 6 month तक अपने खान-पान और आहार का विशेष ध्यान रखनी चाहिए|पोस्टिक आहार एवं दूध का सेवन करनी चाहिए|तथा शिशु को भी पोषक आहार देने की पूरा ध्यान रखना चाहिए|
14. शिशु स्वास्थ्य का संरक्षक- स्तनपान-
दूध शिशु का आहार माँ के दूध से शुरू होता है|प्रकृति द्वारा माँ को दिया गया अमूल्य उपहार दूध है, जिसे माँ अपने शिशु को देती है|माँ के दूध मे शिशु के लिए आवश्यक पोषकतत्व उपलब्द रहते है|यह दूध हल्का एवं सुपाच्य होता है|माँ के दूध से बढ़कर संसार मे बच्चे के लिए अन्य कोई खाद्य पदार्थ नहीं है|
15. शिशु को कितनी बार और कितना दूध पिलाना चाहिए-
बच्चे की उम्र | दिन मे कितनी देर बाद दूध पिलाए |
रात मे कितनी बार दूध पिलाए |
24 घंटे मे कुल कितनी बार दूध पिलाना चाहिए |
1 बार मे कितना दूध पिलाना चाहिए |
पहले 4 दिन मे | प्रति 2 घंटे पर | 2 बार | 6-10 बार | 1-2 औसत तक |
5,6 और 7 वे दिन | प्रति 2 घंटे पर | 2 बार | 10 बार | 1-2 औसत |
दूसरे सप्ताह मे | प्रति 2 घंटे पर | 2 बार | 8 बार | 2 से 2 1/2 औसत |
तीसते सप्ताह मे | प्रति 2 घंटे पर | 2 बार | 8 बार | 2 1/2 से 3 औसत तक |
चौथे और 8 वे सप्ताह मे | प्रति 2 1/2 घंटे पर | 1 बार | 7 बार | 3-4 औसत तक |
तीसरे महीने मे | प्रति 2 1/2 घंटे पर | 1 बार | 7 बार | 4 से 5 औसत |
चौथे महीने मे | प्रति 3 घंटे पर | 1 बार | 6 बार | 5 से 5 1/2 औसत |
पाँचवे महीने मे | प्रति 3 घंटे पर | 1 बार | 6 बार | 5 1/2 से 6 औसत |
छः से 10 महीने मे | प्रति 3 घंटे पर | 1 बार | 5 बार | 6-8 औसत |
16. बच्चों को कब और कैसे दूध छुड़ाना चाहिए-
10 या 12 महीने के बाद बच्चों को दूध पिलाना धीरे-धीरे बंद कर देना चाहिए|माँ का दूध बंद कर देने के बाद भी बच्चे का मुख्य आहार दूध ही होना चाहिए|5 महीने पूरे होने के बाद ही शिशु को माँ के दूध के साथ-साथ ही अन्य खाद्य पदार्थ उचित मात्रा मे युक्ति से साथ खिलना-पिलाना शुरू कर देना चाहिए|दूध-भात, दूध मे पकाई हुई सूजी भी दी जा सकती है|माँ का दूध बंद होने पर कम-से-कम तीन पाव तक दूध हर रोज पिलाना चाहिए|इसके अलावा पानी और फलों का रस भी पिलाना जरूरी है|
17. कीन-कीन दशाओ मे माँ को दूध नहीं पिलाना चाहिए-
- जिन स्त्रीओ को क्षय , कुष्ट, कैंसर आदि भयंकर रोग हो उन्हे अपने बच्चों को दूध नहीं पिलाना चाहिए|
- गर्भवती स्त्रीओ द्वारा दूध पिलाना, स्त्री के स्वस्थ्य और गर्भाशय बालक के स्वास्थ की दृष्टि से मना है|
- यदि स्तन मे किसी खास कारण से दर्द हो या उसमे खास तरह का नजूकपन मालूम हो तब भी दूध पिलाना मन है|
18. 9 से 12 महीनों के बाद बच्चों को दिया जाने वाला भोजन और उसके तरीका-
जब बच्चा 9-10 महीने का हो जाए तब तो उसको 1 या 2 बार सूजी , चावल या दाल की बनी पतली चीज़े , दूध मे भिगोई हुई रोटी, पके केले तथा खिचड़ी आदि दिया जा सकता है|इन सबके सतह उसे दूध पी देना जरूरी है| समय-समय पर थोड़ा-थोड़ा पानी देना चाहिए|सब्जियों का सूप भी बहुत लाभकारी होता है|
19. बच्चे के लिए नींद की आवश्यकता-
स्वास्थ बच्चे के लिए नींद की आवश्यकता उसकी उम्र, पर्यावरण एवं वैयक्तिक भिन्नता के संदर्भ मे नीचे दिए गए सारणी के अनुसार होती है-
1 महीना – 100% – 22 घंटे
2 महीना -100% – 21.5 घंटे
3 महीना – 100% – 21 घंटे
4 महीना – 100% – 20 घंटे
पाँच-छः महीना -100% – 19 घंटे
7-12 महीना – 100% – 18 घंटे
1- 2 वर्ष – 100% – 16 घंटे
यदि बच्चे का स्वास्थ 100% से कम हो तो उसकी नींद मे कमी आएगी| इसके लिए निश्चित प्रमाण नहीं है|
20. शिशु के शयन-संबंधी महत्वपूर्ण बाते-
- शिशु का सोने का स्थान शांत, स्वच्छ और वायुप्रवेशक हो|
- उसे अपने ही पलंग पर सुलाना चाहिए|
- बच्चों का बिछौना नरम सुखदायक होन चाहिए|शिशु की आँखों पर प्रकाश की किरणे नहीं पड़नी चाहिए|
- शिशुओ को कोई वस्तु मुह मे रखकर नहीं सोने देना चाहिए|
- शिशु को मुह ढककर नहीं सुलाना चाहिए|एकदम औधा या एकदम सीधा नहीं सुलाना चाहिए|
- सोते हुए बालकों को साहसा नहीं जगाना चाहिए|
21. शिशु विकास के लक्षण-
- तीन मास की आयु मे बच्चा अपनी गर्दन को सीधा रखने की क्रिया सीखता है|
- 6 महीने के उम्र मे या उससे एकाध महीने आगे पीछे वह बैठना सीखता है|
- 9 महीने की उम्र मे खड़ा होन सीखता है, तथा पैरों के बल घिसटने लगता है|
- 10- 12 माह की उम्र मे वह सहारा लेकर चलना सीखता है|
- 1 वर्ष या इससे 1-2 महीने अधिक की अवस्था मे वह स्वतंत्र रूप से चलना सीखता है|तथा छोटे-छोटे शब्द जैसे- मा, पा, टा , दा का उच्चारण कर सकता है|
- स्वया वर्ष का बालक सरलता से दौड़ सकता है और छोटे-छोटे सरल शब्दों का उच्चारण कर सकता है|
- 2 वर्ष की अवस्था मे उसे कुछ बोलना आना ही चाहिए|
- 3 वर्ष मे बालक पूर्ण बोलना, जो की मनुष्य का सर्वश्रेष्ठ गुण है, सिख लेता है|
- 5 वर्ष के बाद, बच्चे विद्या आरंभ करने योग्य हो जाते है|ये 5 वर्ष ही शिशु जीवन काल कहलाते है|
22. दांत निकलने के समय-
बच्चों मे करीब 8 माह से लेकर 14 माह तक दाँत निकलना अच्छा माना जाता है|अधिकांशतः नीचे के दाँत ऊपर के दाँत के पहले निकलते है|दूध के दाँत ढाई वर्ष तक निकलते है|
- 1 वर्ष के बच्चे- लगभग 6 दाँत |
- डेड वर्ष के बच्चे- लगभग 12 दाँत |
- 2 वर्ष के बच्चे- लगभग 18 दाँत |
- ढाई वर्ष के बच्चे – लगभग 20 दाँत |
4-6 वर्ष मे बच्चों के दूध के दाँत धीरे-धीरे टूटने लगते है, और नए दाँत आने लगते है|6 वर्ष मे प्रायः 28 दाँत होते है|युवा अवस्था मे 32 दाँत होते है| बताया गया है दांतों की संख्या 32 लेकिन इसकी संख्या सर्वस 32 निश्चित नहीं है|
23. बच्चों के रोग प्रतिकारक टीके कब और कैसे दे?-
बच्चों का रोग- प्रतिरोगात्मक टीके सही समय पर डाक्टर की सलाह लेकर लगवाने चाहिए|यहो बच्चा ज्वर,दस्त,उलटी,एलर्जी,सर्दी आदि से पीड़ित है तो टीके न लगवाए| टीके लगवाकर कर बच्चों को कई जानलेवा बीमारियों से बचाया जा सकता है|
24. who (World Health Organization) के द्वारा रोग-प्रतिकारकता के लिए सूचित समय पत्रक-
- जन्म के समय- बी सी जी और पोलियो- विरोधी टीके का पहला डोज बच्चे को दे|
- बच्चे के डेड माह की उम्र मे- त्रिगुणी टीके का पहला डोज और पोलियो विरोधी टीके का दूसरा डोज दे|
- बच्चे की ढाई माह की उम्र मे – त्रिगुणी टीके का दूसरा डोज और पोलियो विरोधी का तीसरा डोज दे|
- बच्चे की साढ़े 3 माह की उम्र मे – त्रिगुणी टीके का तीसरा डोज तथा पोलियो विरोधी का चौथा डोज दे|
द्विगुणी टीके- बच्चों के त्रिगुणी टीके डोज पूरे होने के बाद डेड,तीन ,पाँच और चौदह वर्ष की उम्र मे दिए जानेवाले बूस्टर डोज मेसे 5 और 14 वर्ष मे त्रिगुणी के स्थान पर द्विगुणी टीके लगाए जाते है|
बाल-लकवा के टीके- टीम महीने के उम्र के बच्चे को 4-6 सप्ताह के अंतर पर 3-5 डोज पिलाने चाहिए|
खसरा के टीके- 9 महीने से 2 वर्ष की उम्र के बीच यह टीका लगाया जाता है|यह टीका एक ही बार लगता है|
टाइफाइड टीका- जन्म के बाद 5 वर्ष तक के बच्चों को टायफाइड के टीके लगवाए जा सकते है|
संक्रामक पीलिया के टीके- पीलिया एक संक्रामक रोग है| यह बीमारी फैल रही हो तो इसके संक्रमण से बचने के लिए ‘ हेपेटाईटीस बी ‘ नामक टीके दिए जाते है|1-1 महीने के अंतर पर ऐसे तीन इन्जेक्शन लेने चाहिए|
टीके सही समय पर बच्चों को लगवाना अति आवश्यक है|
“Thank you very much for reading our blog. We will try to provide you with more useful information and hope that you can learn something new and live a healthy life.”
stay healthy and stay safe.