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स्वस्थ जीवन आरोग्य अंक /आयुर्वेद के साथ

आयुर्वेद दुनिया का प्राचीनतम चिकित्सा प्रणाली है Ιऐसा माना जाता है की बाद मे विकसित हुई अन्य चिकित्सा पद्धतियों मे इसी से प्रेरणा ली गई है Ιकिसी भी बीमारी को जड़ से खत्म करने के खासियत के कारण आज अधिकांश लोग आयुर्वेद के तरफ जा रहे हैΙइस लेख मे हम आयुर्वेद चिकित्सा से जुड़ी हर एक रोग और उसके इलाज के बारे मे बताएंगे Ιआयुर्वेद चिकित्सा के साथ सभी प्रकार के जड़ी -बूटी के बारे मे तथा आयुर्वेद के 8 प्रकारों से हर तरह के रोगों के इलाज के बारे मे बताया गया हैΙ सभी पोस्टों को पढे ओर जानकारी अवश्य ले ताकि आप भी अपना जीवन आरोग्य के साथ healthy बना सके| thanks . 

सांप काट ले तो क्या करे? उपचार, पहचान,लक्षण जाने|/What to do if a Snake bites –

सांप
सांप

विष के अनुसार सांप 2 प्रकार के होते है|

  1. विषहीन और
  2. विषैले|

अधिकांश सांप विषहीन होते है|विषहीन सांप के काटने से हल्का स नशा होता है और चक्कर आने लगता है|कुछ लोग सांप के काटने पर दडर और घबराहट के कारण मर जाते है|विषैले सांप मे नाग, गेहुअन और करैत बड़े खतरनाक होते है|गुस्सा आने पर ये फन फैलाकर खड़े हो जाते है|इसके ऊपरी जबड़ों मे जहर के दो पैने दात होते है, जिनके बीच की दूरी आधे इंच से लेकर एक इंच की होती है|इस दांतों की जड़ मे विषग्रन्थिया होती है|

सांप जब ज्यादा क्रोधित होता तब उसका विष पूरे शरीर से खिचकर उसके दांतों मे आ जाता है|तथा काटने पर यही विष शरीर मे प्रवेश कर जाता है|male सांप के काटने पर रोगी ऊपर की ओर देखता है|female सांप के काटने पर रोगी नीचे की ओर देखता है|कई बार सांप के काटने के भ्रम मात्र से घबराहट के कारण भी इंसान मर जाता है| 

विषहीन सांप के काटने पर (U) के आकार का चिन्ह बनते है|और जहरीले सांप के काटने पर (.   . ) के आकार का चिन्ह बनता है|सांप जितना विषैला होगा लक्षण भी उतना ही तेज और जल्दी उत्पन्न होते है| विष का शरीर पे लक्षण 1 घंटे के अंदर शुरू हो जाता है|ठीक उपचार न होने पर 12 घंटे के अंदर मृत्यु हो जाती है|

लक्षण(snake bites Symtoms)-

  1. सांप के दंशित स्थान पर दांत गड़ने के हल्के निशान होते है| कभी-काभी सूजन के कारण निशान मालूम नहीं पड़ते|
  2. रोगी कर्मशः मंद, अतिमंद ,उदासीन और निंद्रालु होने लगता है|ऊपर की पलक नीचे गिरती जाती है|सिर उठाना तथा पैर पर खड़ा होना मुश्किल हो जाता है|
  3. जी मचलना, मल-मूत्र अपने -आप हो जाना, पैर मे झनझनाहट , पुतलिया फैल जाना, दृष्टिभ्रम , श्वसनतंत्र का पक्षा घात सांप के जहर से होता है|
  4. नाड़ियो पर दुषप्रभाव से बेहोशी आने लगती है|मांसपेशिया ऐंठने लगती है, चेहरे, गले, और श्वास आक्षेप से दम घुटने लगता है|जबड़ा और जीभ सिथिल हो जाता है|   
  5. वाईपर- जाति के सांप के काटने से खून मे थक्का जमने की शक्ति खत्म हो जाती है|खून के कर्णो के टूटने से हीमोग्लोबिन प्लाज्मा मे आ जाता है जो विष के उग्र प्रभाव से मुंह, नाक , कान अथवा मूत्र से निकलने लगता है|मस्तिष्क और आंत मे रक्तसत्राव से मृत्यु हो जाती है|

नींद आने पर किसी भी प्रकार से रोगी को सोने नहीं देना चाहिए|विष की उग्रता के अनुसार सांप के दंश मे पूर्वोंतक लक्षणों मे कमी-बेशी होती है|सांप के दंश प्राणघातक होता है|अतः प्राथमिक उपचार के बाद ही जल्दी -से- जल्दी डॉक्टर से इलाज करानी चाहिए|  

उपचार(Treatment)-

  1. दंशित स्थान के ऊपर की ओर 2 इंच की दूरी के 3 स्थान पर रबड़ या सूत की पतली रस्सी से इतनी मजबूती से बांध दे की निचला हिस्सा रक्तहीन सा दिखने लगे|
  2. तेज चाकू या ब्लेड से दंशित स्थान को cross (Χ) के रूप मे चीर कर अधिक से अधिक खून दबदबा कर निकाल दे|ब्रेस्ट पंप या मुह से चूसकर विषैले खून बाहर निकाल देने चाहिए|मुह मे कोई घाव हो या मसूड़े स्वास्थ न हो तो दंश स्थल को कदापि न चूसे|पास की शिराओ को काटकर भी खून निकाला जा सकता है|चिरा लगाने से पहले स्थान को अच्छी तरह धो दे, ताकि त्वचा पर पड़ा विष हट जाए|
  3. घाव को पोटैसियम परमैगनेट के घोल से या गर्म पानी से अछि तरह धोए| घाव मे पोटैसियम परमैगनेट भर दे|रोगी को जितनी हो सके उतनी नीम की पत्ती चबाने को दे|विष के प्रभाव से पत्ती कड़वी नहीं मालूम पड़ेगी|
  4. दंशित अंग को हिलाना -डुलाना नहीं चाहिए| हिलने- डुलने से विष तेजी से फैलता है|रोगी को डॉक्टर आदि के बाद ले जाना हो तो चलाकर नहीं , बल्कि स्ट्रेचर या चारपाई पर लिटा कर आहिस्ते से ले जाना चाहिए|
  5. इतना करने के बाद तत्काल सांप के काटने का एन्टीवेनम इन्जेक्शन लगाने के लिए अनुभवी डॉक्टर की मदत ले| यह इन्जेक्शन लगने से सांप का जहर निष्क्रिय हो जाता है|विषहीन सांप के दंश मे ये इन्जेक्शन देने से हानी हो सकती है|
  6. सांप दंश की अनुभूत इलाज ‘पीपल’ का प्रयोग इस प्रकार करे-
  • दंशित व्यक्ति को लिटाकर उसके हाथ -पैर ,कमर, सिर और कंधे को क्रमशः पाँच व्यक्ति मजबूती से पकड़ ले, ताकि वह हिल-डुल न पाए|
  • पीपल के पेड़ से एक डाल तोड़ ले| उसमे से पत्ते तोड़कर अलग कर ले|दोनों हाथों मे एक-एक पत्ता लेकर उसकी डंडी सावधानीपूर्वक रोगी के कानों मे डाले|
  • ज्यों ही पत्ते की डंडी कान के पर्दे को स्पर्श करेगी, रोगी चिल्लाने लगेगा और उठने भागने का प्रयास करेगा|अतः उसे कसकर पकड़ रखे, हिलने-डुलने न पाए|उसके चिल्लाने पर ध्यान न दे|
  • कान मे डंडी लगाते समय सावधानी रखे; पत्ते को मजबूती से पकड़े रखे नहीं तो कान का पर्दा फट सकता है|जब तक रोगी चिल्लाना बंद न कर दे तबतक पत्ता कान मे लगाते रहना चाहिए|
  • थोड़ी-थोड़ी देर बाद पत्ते बदलते रहना चाहिए|पत्तों द्वारा सम्पूर्ण विष खींच जाने पर रोगी अपने आप चिल्लाना बंद कर देगा|इन पत्तों को इधर- उधर न फेक कर जमीन मे गाड़ देना चाहिए| 
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