विष के अनुसार सांप 2 प्रकार के होते है|
- विषहीन और
- विषैले|
अधिकांश सांप विषहीन होते है|विषहीन सांप के काटने से हल्का स नशा होता है और चक्कर आने लगता है|कुछ लोग सांप के काटने पर दडर और घबराहट के कारण मर जाते है|विषैले सांप मे नाग, गेहुअन और करैत बड़े खतरनाक होते है|गुस्सा आने पर ये फन फैलाकर खड़े हो जाते है|इसके ऊपरी जबड़ों मे जहर के दो पैने दात होते है, जिनके बीच की दूरी आधे इंच से लेकर एक इंच की होती है|इस दांतों की जड़ मे विषग्रन्थिया होती है|
सांप जब ज्यादा क्रोधित होता तब उसका विष पूरे शरीर से खिचकर उसके दांतों मे आ जाता है|तथा काटने पर यही विष शरीर मे प्रवेश कर जाता है|male सांप के काटने पर रोगी ऊपर की ओर देखता है|female सांप के काटने पर रोगी नीचे की ओर देखता है|कई बार सांप के काटने के भ्रम मात्र से घबराहट के कारण भी इंसान मर जाता है|
विषहीन सांप के काटने पर (U) के आकार का चिन्ह बनते है|और जहरीले सांप के काटने पर (. . ) के आकार का चिन्ह बनता है|सांप जितना विषैला होगा लक्षण भी उतना ही तेज और जल्दी उत्पन्न होते है| विष का शरीर पे लक्षण 1 घंटे के अंदर शुरू हो जाता है|ठीक उपचार न होने पर 12 घंटे के अंदर मृत्यु हो जाती है|
लक्षण(snake bites Symtoms)-
- सांप के दंशित स्थान पर दांत गड़ने के हल्के निशान होते है| कभी-काभी सूजन के कारण निशान मालूम नहीं पड़ते|
- रोगी कर्मशः मंद, अतिमंद ,उदासीन और निंद्रालु होने लगता है|ऊपर की पलक नीचे गिरती जाती है|सिर उठाना तथा पैर पर खड़ा होना मुश्किल हो जाता है|
- जी मचलना, मल-मूत्र अपने -आप हो जाना, पैर मे झनझनाहट , पुतलिया फैल जाना, दृष्टिभ्रम , श्वसनतंत्र का पक्षा घात सांप के जहर से होता है|
- नाड़ियो पर दुषप्रभाव से बेहोशी आने लगती है|मांसपेशिया ऐंठने लगती है, चेहरे, गले, और श्वास आक्षेप से दम घुटने लगता है|जबड़ा और जीभ सिथिल हो जाता है|
- वाईपर- जाति के सांप के काटने से खून मे थक्का जमने की शक्ति खत्म हो जाती है|खून के कर्णो के टूटने से हीमोग्लोबिन प्लाज्मा मे आ जाता है जो विष के उग्र प्रभाव से मुंह, नाक , कान अथवा मूत्र से निकलने लगता है|मस्तिष्क और आंत मे रक्तसत्राव से मृत्यु हो जाती है|
नींद आने पर किसी भी प्रकार से रोगी को सोने नहीं देना चाहिए|विष की उग्रता के अनुसार सांप के दंश मे पूर्वोंतक लक्षणों मे कमी-बेशी होती है|सांप के दंश प्राणघातक होता है|अतः प्राथमिक उपचार के बाद ही जल्दी -से- जल्दी डॉक्टर से इलाज करानी चाहिए|
उपचार(Treatment)-
- दंशित स्थान के ऊपर की ओर 2 इंच की दूरी के 3 स्थान पर रबड़ या सूत की पतली रस्सी से इतनी मजबूती से बांध दे की निचला हिस्सा रक्तहीन सा दिखने लगे|
- तेज चाकू या ब्लेड से दंशित स्थान को cross (Χ) के रूप मे चीर कर अधिक से अधिक खून दबदबा कर निकाल दे|ब्रेस्ट पंप या मुह से चूसकर विषैले खून बाहर निकाल देने चाहिए|मुह मे कोई घाव हो या मसूड़े स्वास्थ न हो तो दंश स्थल को कदापि न चूसे|पास की शिराओ को काटकर भी खून निकाला जा सकता है|चिरा लगाने से पहले स्थान को अच्छी तरह धो दे, ताकि त्वचा पर पड़ा विष हट जाए|
- घाव को पोटैसियम परमैगनेट के घोल से या गर्म पानी से अछि तरह धोए| घाव मे पोटैसियम परमैगनेट भर दे|रोगी को जितनी हो सके उतनी नीम की पत्ती चबाने को दे|विष के प्रभाव से पत्ती कड़वी नहीं मालूम पड़ेगी|
- दंशित अंग को हिलाना -डुलाना नहीं चाहिए| हिलने- डुलने से विष तेजी से फैलता है|रोगी को डॉक्टर आदि के बाद ले जाना हो तो चलाकर नहीं , बल्कि स्ट्रेचर या चारपाई पर लिटा कर आहिस्ते से ले जाना चाहिए|
- इतना करने के बाद तत्काल सांप के काटने का एन्टीवेनम इन्जेक्शन लगाने के लिए अनुभवी डॉक्टर की मदत ले| यह इन्जेक्शन लगने से सांप का जहर निष्क्रिय हो जाता है|विषहीन सांप के दंश मे ये इन्जेक्शन देने से हानी हो सकती है|
- सांप दंश की अनुभूत इलाज ‘पीपल’ का प्रयोग इस प्रकार करे-
- दंशित व्यक्ति को लिटाकर उसके हाथ -पैर ,कमर, सिर और कंधे को क्रमशः पाँच व्यक्ति मजबूती से पकड़ ले, ताकि वह हिल-डुल न पाए|
- पीपल के पेड़ से एक डाल तोड़ ले| उसमे से पत्ते तोड़कर अलग कर ले|दोनों हाथों मे एक-एक पत्ता लेकर उसकी डंडी सावधानीपूर्वक रोगी के कानों मे डाले|
- ज्यों ही पत्ते की डंडी कान के पर्दे को स्पर्श करेगी, रोगी चिल्लाने लगेगा और उठने भागने का प्रयास करेगा|अतः उसे कसकर पकड़ रखे, हिलने-डुलने न पाए|उसके चिल्लाने पर ध्यान न दे|
- कान मे डंडी लगाते समय सावधानी रखे; पत्ते को मजबूती से पकड़े रखे नहीं तो कान का पर्दा फट सकता है|जब तक रोगी चिल्लाना बंद न कर दे तबतक पत्ता कान मे लगाते रहना चाहिए|
- थोड़ी-थोड़ी देर बाद पत्ते बदलते रहना चाहिए|पत्तों द्वारा सम्पूर्ण विष खींच जाने पर रोगी अपने आप चिल्लाना बंद कर देगा|इन पत्तों को इधर- उधर न फेक कर जमीन मे गाड़ देना चाहिए|