~Arthritis(संधिवात)~
यद्यपि संधिवात(arthritis) एक सामान्य व्याधि समझी जाती है, परंतु इस व्याधिसे पीडित व्यक्ति ही जान सकता है कि यह व्याधि कितनी कष्टदायक है। इसके ‘निदान’ आदिके विषयमें संक्षिप्त विचार किया जाता है-

Arthritis(संधिवात)के निदान-
आयुर्वेदने संधिवात/ आर्थ्राइटिस को वातव्याधिमें परिगणित किया है। संधिवातमें वायुका प्रकोप विशेषरूपसे होता है। प्रायः आहार-विहारके अनुचित सेवनसे यह रोग होता है। ठंडे, बासी पदार्थका अधिक सेवन, घी-तेल आदि स्निग्ध खाद्य पदार्थोंका अल्प-सेवन, रूक्ष और लघु आहारका अधिक प्रयोग, लगातार लंघन (उपवास) करना, पञ्चकर्मका अनुचित प्रयोग, अधिक रात्रि-जागरण, अति मैथुन, अधिक कूदना तथा तैरना, चलना, व्यायाम आदि चेष्टाएँ उचितरूपसे न करना, चोट लगना इत्यादि संधिवातके कारण बनते हैं। साथ ही मल-मूत्रादि तथा अधारणीय वेगोंका धारण करना, दिवास्वप्न, चिन्ता, शोक, रस-रक्त आदि धातुका क्षय होना आदि संधिवात रोगके मुख्य कारण हैं। इस रोगका सम्बन्ध उपदंश और सुजाक आदिसे भी है।
संधिवात(arthritis) की संप्राप्ति-
(1) आयुर्वेदमें बताया गया है कि अनुचित आहार-विहार आदि उपर्युक्त कारणोंसे वायु प्रकुपित होकर शरीरकी सभी संधियोंमें पहुँच कर वहाँके श्लेषक कफकी मात्राको घटा देती है, जिससे संधिवात-व्याधिके लक्षण मिलते हैं।
(2) आधुनिक विज्ञान (Modern Science) में संधिवातको विकृति-सम्प्राप्ति (Pathogenesis) प्रकार है-
इस संधियोंमें सायजोवियम नामक स्तरकला होती है, जो एक द्रवका स्राव करती है। यह स्राव संधियोंका स्नेहन करती है। किसी आघात, संक्रमण, प्रतिक्रिया आदिसे उत्तेजित होकर प्रतिक्रियामें सायजोवियम द्रव्य अतिरिक्त द्रवका उत्पादन करता है जो कि शोथकी ओर अग्रसर होता है। कभी-कभी विषाणु या जीवाणु भी संधियोंको प्रभावित करते हैं।
संधिवात(arthritis) के लक्षण-
संधिवातसे पीडित आतुर शरीरको संधियोंको स्पर्श करनेसे और आकुंचन तथा प्रसारण करानेसे वायुकी आवाज आती है। इसमें संधिशोथका लक्षण पाया जाता है। इस संधिशूलमें चलनेमें कठिनाई तथा अल्पकर्मण्यता, आकुंचन और प्रसारण-कर्मके करनेमें वेदना आदि होनेके लक्षण मिल सकते हैं।
संधिवातके रोगीको सर्वप्रथम जुलाब देकर उसकी कोष्ठ शुद्धि कर देनी चाहिये।
जुलाबके घटक द्रव्य-
15 ग्राम सोंठ तथा जौकुटी बारह घंटे मिट्टीके कुंडेमें 250 ग्राम पानीमें भिगायी हुई बराबर दूधके साथ (समभाग) मिलाकर उबाले। इसमें गुलाबके फूल 3-4 और सनायकी 5-10 पत्ती उबालकर शेष दूधमात्र रहनेसे कपड़ेसे छानकर रख ले तथा 30 से 40 ग्राम एरंडका तेल और शक्कर मिलाकर गुनगुना पिला दे।
इस जुलाबसे कोष्ठकी शुद्धि एवं आँवकी शुद्धि हो जाती है। इसके उपरान्त भी विबन्ध रहे तो निम्नलिखित घटक दे-
हरड़ तत्त्वक 20 ग्राम, सनाय पत्ती 20 ग्राम, रेवंद चीनी 5 ग्राम, सोंठ 10 ग्राम, काली मिर्च 5 ग्राम, सौवर्चल 5 ग्राम और सेंधा नमक 10 ग्राम। इन सबको कूट-पीसकर चूर्ण बना ले। रात्रिमें सोते समय 3 से 5 ग्राम उष्णोदक (गरम पानी) से ले। रोगीको क़ब्ज कतई न रहने दे।
उपदंश एवं फ़िरंगजनित संधिवात के रोगियों के लिए
व्याधिहरण-
1 रत्ती, अश्वगन्धा नागोरी -1 ग्राम, चोप चिन्यादि चूर्ण 13 ग्राम, शुद्ध कुचला रत्ती। ऐसी एक मात्रा प्रातः-सायं (दो मात्राएँ) शहदके साथ चटाये एवं ऊपरसे 250 ग्राम गरम दूधमें 15 ग्राम ब्राह्मी-घृत मिलाकर पिलाये।
भोजन करनेके बाद दोनों समय महारास्त्रादि काढ़ा 15 मि०ली०, दशमूल-15 मि०ली० एवं बालारिष्ट 15 मि०ली० और कटेली-पञ्चाङ्ग-अर्क 15 मि०ली०/60 मि०ली० पानीके साथ और 1 ग्राम त्रियोदशांश गुग्गुल मिलाकर पिलाये।
संधियोंपर सूजन तथा ललाई अधिक रहनेपर निम्न लेप करे-
शतपुष्पादि लेप – सुवादाना, देवदारु, अर्कदुग्ध, कूठ, हींग और सेंधा नमक समभाग लेकर चूर्ण बनाकर जलमें घोलकर लेप करनेसे संधिवातजन्य शोथ तीन दिनमें घटकर लाभ मिलने लगता है।
अथवा
काली मिट्टी (कुम्हारके घड़ा बनानेकी चिकनी मिट्टी)- 200 ग्राम, पुराना गुड़-50 ग्राम, मेथीदाना-50 ग्राम, आम्बा हल्दी-50 ग्राम अच्छी तरहसे भिगोकर, पीसकर, मसलकर, हल्के हाथ धीरे-धीरे लेप करे। थोड़ा लेप सूखनेपर गर्म और ठंडी पट्टीका सेंक करे। बृहत् सैन्धवादि तेलकी मालिश करे।
द्वितीय योग-
(1) शुद्ध कुचला 2 तोला (20 ग्राम),
(2) जायफल 3 तोला (30 ग्राम),
(3) काली मिर्च 3 तोला (30 ग्राम), आँवला-1 तोला, हरड़ 1 तोला, बहेड़ा 1 तोला
-इन सबको अच्छी तरहसे बारीक कूट-पीसकर घृतकुमारीके रसमें 3 दिनतक घोंटकर 1-1 रत्तीकी गोली बना ले। सुबह-शाम 1-3 गोलीतक सुषम (शीत-गरम) जलसे दे।
चोपचीनी पाक-1-2 तोला प्रातः सायं दूधके साथ सेवन करना चाहिये।
भोजन करनेके बाद महारास्त्रादि 10 ग्राम, बलारिष्ट 10 एवं दशमूल-काढ़ा 10 ग्राम-तीनों 30 ग्राम और 30 ग्राम उष्ण (गरम) जल मिलाकर कटेली-अर्क (पञ्चाङ्ग) 20 ग्राम मिलाकर एक-एक ग्राम त्रियोदशा प्रयोगके साथ दे।
शतपुष्पादि–
शतपुष्पलादी लेप (बृहद्-निघण्टुरत्नाकर) – सुवादाना, देवदारु, अर्कदुग्ध, कूठ, हींग और सेंधा नमक समभाग लेकर चूर्ण बनाकर जलमें घोंटकर लेप करनेसे संधिवातजन्य शोथ तीन दिनमें घटकर लाभमिलने लगता है और साथमें बृहत् सैन्धवादि तेलको अच्छी तरहसे मालिश करे। यह प्रयोग अति सरल एवं सुलभ है।
सन्धिवातारिगुटिका–
संधिवातारिगुटिका – हीरा बोल, शुद्ध हिंगुल और शुद्ध गुग्गुल तथा इसमें अश्वगन्ध-सत्त्व और महारास्त्रादि-सत् समभाग लेकर दूधमें घोटकर 50 मिग्रा० की गोली बनाकर 2-2 गोली दिनमें तीन बार गर्म जलके साथ सेवन करनेसे संधिवातमें लाभ होता है।