Aarogya Anka

आयुर्वेद दुनिया का प्राचीनतम चिकित्सा प्रणाली है Ιऐसा माना जाता है की बाद मे विकसित हुई अन्य चिकित्सा पद्धतियों मे इसी से प्रेरणा ली गई है Ιकिसी भी बीमारी को जड़ से खत्म करने के खासियत के कारण आज अधिकांश लोग आयुर्वेद के तरफ जा रहे हैΙइस लेख मे हम आयुर्वेद चिकित्सा से जुड़ी हर एक रोग और उसके इलाज के बारे मे बताएंगे Ιआयुर्वेद चिकित्सा के साथ सभी प्रकार के जड़ी -बूटी के बारे मे तथा आयुर्वेद के 8 प्रकारों से हर तरह के रोगों के इलाज के बारे मे बताया गया हैΙ सभी पोस्टों को पढे ओर जानकारी अवश्य ले ताकि आप भी अपना जीवन आरोग्य के साथ healthy बना सके| thanks . 

कान की वैज्ञानिक देखभाल:medical Ear care:

*Ear care*

कहते हैं बड़े कान(ear) पुरुषोंके लिये भाग्यशाली होते हैं और छोटे कान (ear)स्त्रियोंकी सुन्दरतामें चार चाँद लगा देते हैं। पशुओंकी खोपड़ीके बाहरी बाजूके स्रायु ऐच्छिक होनेके कारण उनके कानोंमें एक विशेषता यह होती है कि पशु अपने कान जहाँसे आवाज आती है, उस दिशामें मोड़ लेते हैं, परंतु मनुष्यके खायु अनैच्छिक होनेके कारण बाहरी कानका उपयोग आवाजकी लहरोंको एकत्र कर उन्हें कर्णनलिका (आडीटरी) की ओर भेजनेमें ही होता है।

हमारी पाँच ज्ञानेन्द्रियोंमेंसे कान भी एक कोमल इन्द्रिय है, इसलिये इसकी विशेष सावधानीसे रक्षा करनी चाहिये। कानसे खिलवाड़ नहीं करना चाहिये अन्यथा यह छेड़-छाड़ जीवनभरके लिये बहरा बना सकती है। जिसे हम कान कहते हैं वह तो केवल सुननेवाले यन्त्रका बाहरी भाग है। इसमें कई पर्त और घुमाव होते हैं। बाहरी कानसे एक नली अंदर (मध्य कानमें) जाती है। हो सकता है इसी मार्गसे दिनभरमें अनेक प्रकारकी गंदगी और हानिकारक कीटाणु जमा हो जायें। 

यदि यह गंदगी (जिसे कानका मैल भी कहते हैं) निरन्तर कुछ दिनोंतक जमा होती रहे और साफ न की जाय तो यह कड़ी होकर रोग बन जाती है, जिससे कानमें दर्द, फुंसियाँ, यहाँतक कि बहरापन भी हो सकता है। कानकी नलीके अन्तमें एक झिल्ली होती है जिसे कानका पर्दा कहते हैं। कनपटीपर जोरसे तमाचा मारनेसे पर्देपर आघात पहुँचता है, क्योंकि यह झिल्ली बहुत ही कोमल होती है, अतः कानका मैल निकालनेके लिये कानमें पिन, पेंसिल या कोई नुकीली वस्तु कभी भी नहीं डालनी चाहिये। 

बल्कि, कानमें कुछ दिनोंतक सरसों, तिल्ली, नारियल या जैतून किसी भी उपलब्ध तेलकी मामूली गर्म एक-एक बूँद डालनेसे कानका कड़ा मैल मुलायम पड़कर ऊपर आ जायगा। अब इसे स्वच्छ रूईको फुरेरीसे बड़ी सरलतासे निकाला जा सकता है। यदि रोगीके कान तथा नलीमें सूजन हो तो उसे भीगनेसे बचाना चाहिये; जैसे पानीमें तैरते समय वैसलीन या तेलसे भिगोई हुई रूई कानोंमें खॉस लेनी चाहिये। हमेशा ही स्नानके बाद कानोंको अच्छी तरह पोंछ कर सुखा लेना चाहिये।

ear care
Ear care (कान का बैज्ञानिक देखभाल)

जुकाम से सावधान रहिए-

साधारण जुकाममें गला खराब हो जानेपर नमकीन पानीके गरारे दिनमें कई बार करने चाहिये, ताकि यह रोग आगे नाक-कानतक न फैलने पाये। अक्सर जुकाम बिगड़कर हमारे कोमल कानोंको भी पीड़ित कर देता है, क्योंकि कानके अंदरका हिस्सा गलेके बाहरके हिस्सेके साथ जुड़ा हुआ है। सामान्यतः निगलनेकी क्रिया करते समय प्रत्येक बार वायुका आना-जाना बना रहता है, जिससे कर्णपटके दोनों ओर समान दवाव बना रहकर स्वरकी ध्वनि कम्पनके लिये सुग्रहीता बनी रहती है और जब जुकामके कारण हमारा गला भी पीड़ित हो तो दाब-क्रिया विधिमें गड़बड़ होनेसे कानमें दर्द हो

जाना स्वाभाविक है। यदि आपको जुकाम हो तो बहुत जोरसे नाक कभी न छिनकें। ऐसा करनेसे रोगके कीटाणु मध्य कानतक पहुँच सकते हैं। मध्य कानमें दो नालियाँ जाती हैं-एक पीछेकी तरफ और दूसरी नाक तथा गलेकी ओर। जुकाम होनेपर इसके कीटाणु नाक और गलेसे इस दूसरी नलीमें पहुँच जाते हैं, जिससे वहाँ सूजन होनेपर पीड़ा होने लगती है एवं लापरवाही करनेपर यह फोड़ा बन जाता है, जिसको पीड़ाके कारण रातको ठीकसे नींद भी नहीं आ पाती और रोगी बेचैन पड़ा रहता है। 

कानमें प्रदाह होने, उसके बढ़ जाने और पूति दूषित (सेप्टिक) हो जानेसे कानका मार्ग बंद हो सकता है, जिससे उसमेंसे होकर वायुका आगमन बंद हो जाता है, जबकि इस प्रकारकी वायुका आगमन कर्णपटके दोनों ओर बाह्य कर्ण तथा मध्य कर्णमें समान दाब बनाये रखनेके लिये आवश्यक होता है। इससे बहरापन आ जाता है। मध्य कर्णमें पूति दूषित उत्पन्न होनेसे जब उसे निकलनेका मार्ग नहीं मिलता है तो उसके दबावसे कोमल झिल्ली फट जाती है और इस प्रकार कानसे जीर्ण स्त्राव उत्पन्न हो जाता है।

 मध्य कानमें मवादका बनना और इकट्ठा होना यदि शीघ्र न रोका जाय तो वह कानके पीछेकी हड्डीतक पहुँचकर एक फोड़ेका रूप ले लेता है। इसमें यदि असावधानी की गयी अथवा गलत-सलत उपचार किया गया तो इससे मस्तिष्कमें मवाद बनना प्रारम्भ हो जाता है। हो सकता है सिरका भारीपन और चकराना कानकी भीतरी खराबीसे हो, क्योंकि बारह नाड़ी-तन्तुओंकी जोड़ियाँ मस्तिष्कर्मेसे निकलती हैं, उनमेंसे आठवाँ कानका संवेदवाहक नाड़ी-तन्तु है।

 मलेरिया बुखारमें लगातार कुनैन जैसी ओषधि लेनेसे भी चक्कर आना, कम सुनायी पड़ना आदि रोग घर कर जाते हैं। इसी तरह इनफ्लुएंजा और खसरा-जैसे छूतके रोगोंके साथ-साथ कानमें भी सूजन-जलन हो जाती है, जिससे कानमें असहनीय पीड़ा होने लगती है। बच्चोंके दाँतमें कष्ट होने या नया दाँत निकलते समय भी कानमें दर्द हो जाता है, बिना परीक्षा किये यह पता लगाना कठिन है कि कानकी पीड़ा सूजन और जलनकी अधिकताके कारण है या दाँतमें कष्ट होनेके कारण।

बच्चेके कानमें पीड़ा होनेपर किसी योग्य चिकित्सकका परामर्श लेना चाहिये। बच्चों अथवा बड़ोंके कान-सम्बन्धी दोषोंको उत्पन्न न होने देना ही समस्याका सम्यक् समाधान है, क्योंकि एक बार कर्णप्रणालीके क्षतिग्रस्त होनेसे उसे फिरसे कार्यक्षम बना सकना अत्यन्त कठिन सिद्ध होता है। अतः सरल घरेलू एवं प्राकृतिक उपचारका सहारा लेकर स्वस्थ रहना चाहिये।

(क) सरल प्राकृतिक चिकित्सा-

(1) मुँहको पूरा खोलने और बंद करनेकी प्रक्रियाको नित्य 15-20  बार प्रातः सायं दोहरायें। इससे कानोंकी मांसपेशियोंमें लचीलापन आयेगा और कान स्वस्थ रहेंगे।

(2) भोजन करते समय चबा-चबाकर खायें। जिससे मुखकी मांसपेशियोंके साथ-साथ कानकी नसोंका भी व्यायाम हो जाय।

(3) गर्दनको दायें-बायें, आगे-पीछे तथा घड़ीके पेंडुलमकी तरह और चक्राकार घुमानेसे कानों एवं नेत्रोंकी नसोंमें लचीलापन आता है और यह क्रिया उनमें स्वस्थ रखनेकी क्षमता बनाये रखती है। यह व्यायाम नित्य दस मिनट मेरुदण्डको सीधा रखकर अवश्य करना चाहिये।

(4) कानके दर्दमें गर्म पानीकी थैलीको सूखे तौलियेमें लपेटकर तकियेकी तरह रखकर जिस कानमें दर्द, सूजन हो उसी कानको उसपर रखकर १५-२० मिनटतक लेटे रहें। यदि दोनों कानोंमें पीड़ा हो तो बारी-बारीसे इसी प्रकार दोनों ओर करना चाहिये। उस समय कानमें रूई खोंस लें।

(5) मध्य कानसे पीप आनेकी अवस्था (Both infection and inflammation) में गर्म और ठंडे

पानीकी अलग-अलग थैली कानके पृष्ठ-भाग (जबड़ेकी रेखाके पीछे) के पास रखकर बारी-बारीसे गर्म और ठंडा सेंक दे सकते हैं।

(ख) कुछ घरेलू उपचार-

चिकित्सकोंके अनुसार निम्नलिखित उपचार भी लाभदायक रहे हैं-

(1) बच्चे (शिशु) के कानमें दर्द हो तो माताका दूध कानमें टपकानेसे लाभ होता है।

(२) दूधकी भापसे कानको सेंकनेसे कानकी सूजन और दर्दमें आराम मिलता है।

(3) नीमके पत्तोंको पानीमें औटाकर उनका बफारा कानमें देनेसे कानका घाव और दर्द दूर होते हैं।

(4) लहसुनका रस २५ मि०ली० और सरसोंका शुद्ध तेल ५ मि०ली० दोनों मिलाकर पका लें। जब तेल मात्र शेष रह जाय तब ठंडा होनेपर छान लें तथा रातको सोते समय एक-एक बूँद कानमें डालें। इससे कानका दर्द, बहरापन आदि दोष दूर होते हैं।

(5) गोमूत्रको छानकर निथार लें और शीशीमें भर लें। नित्य चम्मचमें कुछ बूँदें जरा-सा गर्म कर लें, फिर कानको साफ करके सुहाती सुहाती दो-एक बूँदें दोनों कानोंमें डालते रहें। कानका दर्द अथवा बहरापन निश्चित ठीक होगा।

(6) मदारका पीला पत्ता तोड़कर उसपर देशी घी चुपड़कर पत्तेको आगपर गरमाकर उसका सुहाता-सुहाता गुनगुना रस कानमें टपका दें। अनुभूत प्रयोग है- दर्दमें लाभ होगा। इसपर एक लोकोक्ति भी है-

पीले पात मदारके, घृतका लेप लगाय। 
गरम गरम रस डालिये, कर्ण-दर्द मिट जाय ॥

(ग) यौगिक क्रियाएं-

(1) छोटे-बड़े, स्त्री-पुरुष सभीको ‘नेति-क्रिया’ की विधि समझकर नित्य करनी चाहिये। इससे जुकाम तो भागता ही है, कानका बहना भी बंद हो जाता है और बचपनतकका बहरापन तथा सायें-सायँकी आवाज भी ठीक हो जाती है।

(2) हमारा स्वास्थ्य-कन्ट्रोल-केन्द्र हमारे भीतर ही है, ऐक्युप्रेशरका जानकार सही स्विच दबाकर रोगीका रोग दूर करता है। कानका रोग दूर करनेके लिये दिनमें नित्य 24 मिनट, दोनों हाथोंद्वारा शून्य मुद्रा करनी चाहिये। अन्य उपचारके साथ-साथ भी यदि इसे विश्वासके साथ किया जाय तो यह मुद्रा हितकारी सिद्ध होगी।

विधि-

चित्रमें बताये अनुसार, बीचकी मध्यमा अंगुलीको अँगूठेकी गद्दीपर लगाकर, ऊपरसे इसे अँगूठेसे हलका दबानेसे शून्य-मुद्रा बनती है। इसे दायें और बायें हाथों, दोनोंहीसे कम-से-कम ४५ मिनट नित्य करनेसे कानका बहना, कम सुनना आदि दोष ठीक हो जाते हैं। ठीक होनेपर इसका अभ्यास बंद कर देना चाहिये। यह मुद्रा इच्छानुसार कभी भी कर सकते हैं।

(घ) निषेध-

कानके रोगीको निम्नलिखित आहार-विहारका सेवन हानिकारक है-

(1) ठंडा स्रान, ठंडी हवा, पंखेकी सीधी हवा आदि।

(2) तैराकी और सिरको भिगोकर स्नान।

(3) अधिक जागरण तथा अधिक वाचालता।

(4) कोलाहलपूर्ण वातावरण- यन्त्रोंका शोर-शराबा आदि।

(5) अत्यधिक शीतलता प्रदान करनेवाले बर्फ आदिसे प्रयोगयुक्त पदार्थ, चिकनाईवाले व्यञ्जन, बासी भोजन, अधिक खट्टे एवं मिर्च-मसालोंसे तले हुए खाद्य पदार्थ आदि।

(6) वातानुकूलित वातावरण।

उपसंहार

चपनसे ही प्रतिदिन कानोंमें एक-एक बूँद तेल डालते रहनेसे कान सदा नीरोग रहते हैं। श्रवणशक्तिको सदाके लिये सशक्त बनाये रखनेके हेतु नित्य प्रातः धूप-सेवन करें ताकि कानोंपर भी सूर्यका सुहाता-सुहाता प्राकृतिक सेंक होता रहे। दोषपूर्ण आहार-विहारसे बचें और स्वस्थ बने रहें।

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