हृदय रोग आज तेजी से फैलता जा रहा है| खान-पान की ठीक न होन, भौतिकवादी की होड मे तरह-तरह के मांसाहारी एवं गरिष्ठ खाद्य पदार्थों के प्रति आकर्षण, शारीरिक मेहनत का बहुत कम हो जाना, मानसिक तनाव होन आदि हृदय रोग की वृद्धि के कारण है|
हृदय की शिराए जब अवरुद्ध हो जाती है तो हृदयघात की संभावना बन जाती है| अधिक चिकनाई युक्त, वसायुक्त भोजन खून मे थक्के जामाता है तथा उसी का कुपरिणाम शिराएं अवरुद्ध होने के रूप मे सामने आता है|
आधुनिक विज्ञान ने हृदय रोग के निदान के लिए बाइपास सर्जरी, पेसमेकर-जैसी अनेक अत्यंत खर्चे वाली सुविधाये बनाई है , किट्टु इनका उपयोग सधारण रोगी नहीं कर सकता और यह व तथ्य सामने आए की आपरेशन करानेवाले को जीवनभर अनेक अन्य बीमारिओ का सामना भी करना पड़ता है|
घीया(लौकी) हृदय रोग मे रामबाण औषधि सिद्ध हुआ है| अनेक हृदय रोगियों ने इसका उपयोग किया और रोग से छुटकारा पाया है| हृदय रोगियों के लिए इसस अनुभूत प्रयोग की विधि इस प्रकार है-
1. विधि–
लौकी को छिलके सहित धो कर घिस ले ( कद्दूकस) कर ले| घिसी हुई लौकी को सिलवटे पर पीस ले| ग्राइन्डर मे भी डालकर उसका रस निकाल जा सकता है|
लौकी को पिस्ते समय पोदीना के 5-6 पत्ते तथा तुलसी के 8 पत्ते उसमे डाल दे| फिर पिसे हुए लौकी को कपड़े से छान कर उसका रस निकाल ले|उस रस की मात्रा 125-150 gm होनी चाहिए|इसमे इतना ही स्वच्छ जल मिलाए| अब यह 250-300 gm रस हो जाएगा|इस रस मे 4 काली मिर्च का चूर्ण तथा 1 gm सेंधा नमक मिला दे|अब इस रस को भोजन करने के आधा या पौन के पहले सुबह दोपहर एवं रात्री मे 3 बार ले|
शुरू से 3-4 दिनतक रस की मात्रा कम भी ली जा सकती है| रस हर बार ताजा लेना चाहिए| शुरू मे यदि पेट मे कुछ गड़बड़ाहट महसूस हो तो परेशान न हो| लौकी का यह रस पेट मे पल रहे विकारों को भी दूर कर देता है| 3 बार औषधि लेने मे कठिनाई हो तो आधा-आधा किलोग्राम लौकी ऐसे लिया जा सकता है|
लौकी पहले 5 दिनतक लगातार लेना होगा, फिर 25 दिन का अंतराल देकर, 5 दिन तक लगातार ले| इसे कम-से-कम 3 महीने तक लेना होगा| उपचार के दौरान कोई भी खट्टी वस्तु न ले|न तो खट्टे फल, न टमाटर, न नींबू| इसके साथ एक गोली एकोसप्रीन की 250ml सुबह-शाम को तथा एम्पोलिनकी गोली ले|
विशेष- हृदय रोगियों को मांस, मदिरा, धूम्रपान आदि का पूरी तरह त्याग करना आवश्यक है| 4-5 km टहलना भी जरूरी है|
1. एक और रामबाण नुस्खा-
यदि हृदय गड़बड़ करने लगे तो एक अन्य उपचार यह है-
1 चम्मच पान का रस , 1 चम्मच लहसुन का रस , 1 चम्मच अदरक का रस, 1 चम्मच शहद- इन चारों रसों को एक साथ मिला ले और पी जाए| इसमे पानी मिलाने की आवश्यकता नहीं है| इसे दिन मे एक बार सुबह और एक बार शाम को पिए|तनाव तथा चिंता से मुक्त होकर इसका प्रयोग करे| हृदय मे कोई कठिनाई हो तो जो दवा लेते है उसे लेले| यह नुस्खा 21 दिन का है| आगे चलकर इस दवा को यदि रोज सबेरे एक समय लेता रहे तो हृदय रोग कभी नहीं होगा|
2. एक रामबाण लेप-
मै यह हृदय रोग की एक और रामबाण औषधि बताती हु|
एक तोला काली सबूत उड़द रात को गर्म पानी मे भिगो दे| सुबह पानी से उड़द के दाने निकल ले तथा उड़द को छिलके सहित सिलबट्टे पर पीस ले|उड़द की एक इस पट्टी को एक तोला शुद्ध गुग्गुल के चूर्ण मे मिला ले| इस योग को खलबट्टे मे डालकर एक तोला अरंडी का तेल और गाय के दूध से बना 1 तोला मक्खन डालकर ढंग से मिला ले| काफी देर तक इसे खलबट्टे मे रगड़ते रहे| स्नान करने के बाद शरीर को पोंछ कर इस लेप को छाती से पेट के पास तक मल ले|4 hr के लिए लेट जाय| उठ बैठ भी सकते है|
जब लेप सुख जाय तो स्नान करले| यह प्रयोग रोज सुबह 5 दिन तक करना चाहिए| 1 month के अंतराल के बाद फिर 5 दिन करे|हृदय रोग से पूरी तरह मुक्ति मिल जाएगी|
रोगनिवारक महौषधि- विष्णुप्रिया तुलसी
तुलसी
भक्तों एवं उपासकोंके लिये जितने आराध्य एवं श्रद्धेय भगवान् विष्णु हैं उतनी ही भगवती तुलसी भी श्रद्धेया, पूज्या एवं वन्दनीया हैं। वे भी श्रीदेवीके समान भगवान्की अनादिकालसे नित्य-सहचरी रही हैं। वे भगवान्के नित्यधाम – गोलोकमें उनके साथ देवीरूपमें स्थित रहती हैं।
इनके कई नाम हैं, किंतु वृन्दा इनका दूसरा प्रमुख नाम रहा है और जब इन्होंने गोपीभावसे शरीरका परित्याग कर दिया तो ये पुण्य एवं पवित्र तुलसीवृक्षके रूपमें परिवर्तित हो गयीं। वैकुण्ठमें श्रीहरि तुलसीके आभूषण धारण करते हैं और उसकी सुगन्धका आदर करते हैं।
भगवान् विष्णुद्वारा विशेषरूपसे अङ्गीकृत विष्णुप्रिया तुलसी धार्मिक एवं आध्यात्मिक दृष्टिसे महत्त्वकी और आदरणीय तो हैं ही, साथ-ही-साथ औषधिके रूपमें भी वह उतनी ही महत्त्वकी आदरणीय और प्रभावशाली हैं। तुलसीका रस उत्तम है, इसलिये ये
‘सुरसा’ तथा गाँव-गाँवमें सरलतासे प्राप्त होनेके कारण ‘ग्राम्या’ और ‘सुलभा’ कही जाती हैं। इसमें बहुत मञ्जरियाँ होती हैं, अतः इस ‘बहुमञ्जरी’ के दर्शनसे राक्षस-जैसी व्याधियाँ या राक्षस-जैसे भयंकर पाप भी दूर हो जाते हैं, इसलिये यह ‘अपेतराक्षसी’ और पेटके दर्द, गठिया आदिका दर्द नाश करनेके कारण ‘शूलघ्नी’ नामसे अभिहित है।
तुलसी तीखी, कड़वी, थोड़ी-सी कसैली, सुगन्धित और रुचि बढ़ानेवाली है। आयुर्वेदमें इसे वात-कफ-नाशिनी, विषघ्नी तथा रक्त-विकार, कोढ़, चर्मरोग, मूत्रकृच्छ्रादि व्याधियोंसे छुटकारा दिलानेवाली माना गया है। विविध शारीरिक एवं मानसिक रोगोंके उपचारमें तुलसीका अद्भुत चमत्कार देखा जाता है। यहाँ विविध रोगोंके उपचारमें तुलसीके प्रयोगका अपष्ठने अनुभवके आधारपर संक्षेपमें वर्णन किया जा रहा है।
तुलसी से उपचार की पद्धति-
तुलसी के पत्ते-
रोगीको प्रकृति, व्याधि और सबलता निर्वलता तथा ऋतुके अनुसार पचीससे लेकर सौतक पत्ते लिये जायें, जैसे शीतकालमें ज्यादा और ग्रीष्मकालमें कम। विभित्र आयुके बच्चोंके लिये पाँचसे लेकर पचीसतक पत्तोंको बारीक पीसा जाय। पत्तोंका रस भी लिया जा सकता है।
इसकी मात्रा रोगीकी प्रकृतिके अनुसार आधे तोलेसे लेकर एक तोलेतक हो सकती है। मञ्जरी लेनी हो तो एक ग्रामतक साथमें ले सकते हैं। मञ्जरी शक्तिप्रद और मूत्र साफ करनेवाली है। पत्तोंको छायामें सुखाकर उसका चूर्ण बनाया हुआ हो तो वह भी चल सकता है। यह चूर्ण ताजे हरे पत्तोंकी अपेक्षा कम गुणकारी होता है।
साधारणतया तुलसी दो प्रकारकी होती है। एक काले पत्तोंकी जिसे ‘श्यामा’ या ‘कृष्णा’ तुलसी कहते हैं और दूसरी हरे पत्तेकी जिसे ‘श्वेता’ या ‘रामा’ कहते हैं। अंग्रेजीमें श्वेताको White Basil और श्यामाको Purple stalked Basil कहते हैं। इन दोनों प्रकारकी तुलसीके गुण प्रायः समान हैं।
अनुपान-
मीठा दही प्रकृति और सबलता- निर्बलताके अनुसार पचास ग्रामसे लेकर तीन सौ ग्रामतक अनुपानके रूपमें लिया जा सकता है।
कदाचित् किसीको मीठा दही अनुकूल न हो या न मिले तो उपयुक्त मात्रामें शुद्ध मधु या शुद्ध गुड़ भी लिया जा सकता है। दूधके साथ किसी भी हालतमें नहीं लेना चाहिये। छोटे बच्चे दहीमें लेनेके लिये तैयार न हों तो उसमें थोड़ा-सा शुद्ध मधु मिलाकर देना चाहिये।
औषध लेने का समय-
प्रातःकाल दतुवन-मंजन आदि करनेके बाद कुछ भी खाने-पीनेके पहले यह दवा ली जाय, लेकिन असह्य दर्दकी अवस्थामें दिनमें दो या तीन बार भी ली जा सकती है। रोगकी उग्र अवस्थामें जबतक उग्रताका शमन न हो जाय, तबतक प्रति दो घंटेके अन्तरसे दवा ली जानी चाहिये।
असाध्य और कष्टप्रद रोगोंके लिये यह दवा दिनमें दो या तीन बार लेना हितकारी है। तथापि सबसे अधिक लाभ प्रातःकाल खाली पेट दवा लेने से ही होता है|
तुलसी की उपर्युक्त उपचार विधिसे निम्नलिखित व्याधियाँ पूर्णरूपसे ठीक हो गयीं अथवा बहुत कुछ कम होकर कष्टसे छुटकारा भी मिला है-
1. गठिया (आर्थाइटिस), ओस्टियो, आर्थाइटिस और स्त्रायुओंका दर्द।
2. साइनसके कारण वर्षोंसे होनेवाली तीव्र सर्दी-जुकामकी शिकायतवालेका शल्यकर्म (ऑपरेशन) करनेकी तैयारी थी, उसपर तुलसीका उपचार किया गया। पंद्रह दिनमें आराम हो जानेसे शल्यकर्मकी आवश्यकता नहीं रही।
3. गुर्देकी बीमारी या गुर्देका काम मन्द हो जानेसे जो सूजन हो जाती है या पेशाब बहुत कम हो जाता है, इससे शरीरमें बहुत दर्द रहता है, ये सब व्याधियाँ तुलसीके प्रयोगसे दूर हो जाती हैं, सूजन उतर जाती है और पेशाबकी मात्रा ठीक हो जाती है। इसमें नमकका उपयोग बिलकुल बंद करना या अतिमर्यादित करना आवश्यक है। एक रोगीके गुर्देकी पथरी छः महीनोंके उपचारके बाद चूरा होकर निकल गयी। इसमें दहीके बजाय शुद्ध मधुका उपयोग किया गया था। रोगीको दही अनुकूल नहीं आ रहा था।
4. ल्यूकोडर्मा या सफेद दाग अथवा कोढ़के कुछ मरीज रोग-मुक्त हुए हैं। कुछके दाग कम होते गये और चमड़ी सामान्य होती गयी।
5. ब्लड कोलेस्टेरोल या खूनमें चर्बीका चढ़ना- इस रोगमें कोलेस्टेरोलकी मात्रा बहुत जल्दी कम होकर सामान्य हो जाती है।
6. मन्दाग्नि, बद्धकोष्ठ, गैस-विकार दूर हो जाते हैं। वजन कम हो तो पाचनशक्ति ठीक हो जानेसे बढ़ता है।
7. अम्लता (एसिडिटी) मिट जाती है।
8. पेचिस, कोलाइटिस आदि जल्दीसे ठीक हो जाता है।
9. प्रोस्टैटकी तकलीफमें काफी लाभ होता है। वृद्धावस्थाकी दुर्बलता दूर होती है और शक्ति बढ़ती है।
10. एजर्जिक जुकाम जन्मसे होनेपर भी ठीक हो जाता है।
11. एक आदमी मोटरसे दुर्घटनाग्रस्त हो गया था, जिससे कई सालोंतक वह बायें नाकसे श्वास नहीं ले सकता था अर्थात् बायीं नाक बिलकुल बंद हो गयी थी। वह ठंडे पानीसे नहीं नहा सकता था, पंखा या एयरकंडीशनका प्रयोग नहीं कर सकता था।
इसके कारण सब ऋतुओंमें अस्वस्थ रहता था। तुलसी का चार महीनोंतक सेवन करनेसे उसकी बायीं नाक खुल गयी और श्वास लिया जाने लगा। वह गरमीमें ठंडे पानीसे स्नान करने लगा। पंखा और एयरकंडीशनरका व्यवहार किया गया, उसका कुछ बुरा असर नहीं हुआ। दुर्घटनाके कारण पहले नींद नहीं आती थी, जो आने लगी। वह ठीक हो गया।
12. एक बच्चा जन्मसे मानसिक रूपमें मन्द (Mentally Retarded) था। सोलह सालका हुआ, तब तुलसीका प्रयोग किया गया। दो महीने बाद युवकमें पचीस प्रतिशत सुधार हुआ। अब वह कुछ अंशोंमें बुद्धिमत्तापूर्ण वार्तालाप करने लगा है।
13. तुलसी सर-दर्दके लिये अक्सीर दवा है। इसके प्रयोगसे एक रोगीके पंद्रह सालका पुराना दर्द ठीक हो गया।
14. बच्चोंके कुछ रोगोंमें – विशेषरूपसे जुकाम, नजला, उलटी-टट्टियाँ और कफके लिये – अक्सीर है। दाँत आसानीसे निकलते हैं और तकलीफ नहीं होती।
15. एक युवकको पाँच सालसे नियमितरूपमे हर महीने एकाध सप्ताहके लिये बुखार आता था। तीन महीनेके प्रयोगके बाद बुखार आना बंद हो गया।
16. हृदयरोग और इसके कारण होनेवाली दुर्बलता आदिमें तुलसी के प्रयोगसे आश्चर्यजनक सुधार दिखायी देता है। हृदयरोगके बाद पहाड़ी स्थानोंपर जानेकी मनाही किये हुए मरीज पहाड़ी स्थानोंपर आरामसे रह सकते हैं। उच्च रक्तचाप और निम्न रक्तचापके मरीजका चाप सामान्य हो जाता है और हृदयकी दुर्बलतामें सुधार होता है।
17. साधारण जुकाम और बुखारमें दिनमें दो- दो या तीन-तीन घंटेके बाद सोंठ, काली मिर्च, तुलसी और गुड़का काढ़ा बनाकर चूल्हेसे उतारकर उसमें आधा नीबू निचोड़कर पीना चाहिये। काढ़ा पीनेके बाद गरम कम्बल ओढ़कर सोनेसे शीघ्र आराम होता है। काढ़ेमें दूधका प्रयोग न किया जाय। यह काढ़ा मलेरियाके लिये भी लाभदायक है।
18. शरीरकी झुर्रियाँ ठीक हो जाती हैं। हाथ फटे और बिवाइयाँ फटी हुई कितनी भी पुरानी हों, प्रायः ठीक हो जाती हैं। तुलसी को नीबूके रसमें मिलाकर लगानेसे खाज और दाद ठीक हो जाता है, खुश्की ठीक होती है। कपालके फोड़े-फुंसी भी ठीक होते हैं।
19. घाव जल्दी भर जाता है और टूटी हुई हड्डियाँ जल्दी जुड़ जाती हैं।
20. एनीमिया मिटकर खूनमें रक्तकण जल्दी बढ़ने लगते हैं।
21. कैंसरके रोगमें भी तुलसी के यथाविधि सेवनसे लाभ होता है। इंट्रा ट्रैकियल कैंसरसे पीड़ित एक साठ सालके रोगीपर शल्यकर्म और …
22. एक साठ वर्षीया महिलाके योनि (बेजाइनल)कैंसरकी चिकित्सा रेडियम और कोबाल्ट बम्बद्वारा की जानेपर भी असाध्य प्रमाणित हुई। तुलसीकी दस दिनकी चिकित्सासे रक्तस्राव बहुत कम हो गया और पीड़ा भी सह्य-जैसी हो गयी। पचास दिनोंकी चिकित्साके बाद पीड़ा पूर्णरूपसे चली गयी, रक्तस्त्राव और श्लेष्मा भी बंद हो गया, बहता घाव भी ठीक हो गया।
23. श्वास-रोग (अस्थमा), सित-कोशातिवृद्धि(Leucocytoses) और स्थूलान्त्रकाय (Colitis)- का 48 वर्षका एक रोगी जल्दीसे ठीक हो गया। उसकी आँतें भी दूषित हो गयी थीं।
24. एक सात वर्षीया लड़कीको दवाओंकी प्रतिक्रिया होती थी, जिससे उसको नीले दाग हो जाते थे और रक्तकी कमी हो जाती थी। वह बिलकुल ठीक हो गयी।
25. विटामिन ‘ए’ और ‘बी’ की कमी दूर हो जाती है और स्त्रीको रुद्धार्तव (रक्तस्राव रुद्ध हो जाय) या रक्तस्राव कम हो, वह ठीक हो जाता है।
26. आँख आना या दुखनेमें लाभदायक है।
27. जीर्ण अर्धशिरः पीडा (Chomic Migraine) दूर हो गयी।
28. खसरा-निवारणके लिये यह बहुत अच्छी ओषधि है।
इन उपचारोंमें खास परहेज नहीं है। लेकिन व्याधिके अनुसार आहार-विहारमें नियमितता और पथ्य-परहेज आवश्यक है। मिर्च-जैसी तेज चीज न ली जाय या बहुत कम मात्रामें ली जाय।
किसी योग्य व्यक्तिसे जानकारी प्राप्त करके योगासन, स्थूल-सूक्ष्म व्यायाम, यौगिक षट्कर्म, प्राणायाम आदि इस चिकित्सामें विशेष सहायक होते हैं। प्राकृतिक चिकित्सा और होम्योपैथी भी लाभदायक होती है। तुलसी कृष्णवल्लभा है। युगोंसे उसके प्रति पूज्यभाव, आदर और श्रद्धा रहती आयी है। अतः भगवान्को समर्पण करके उनका स्मरण करते हुए उनके प्रसादरूपमें इसका सेवन किया जाय तो इसका लाभ शीघ्र और अनेक गुना अधिक होता है।