various diseases-
शरीर को स्वास्थ रखने के लिए पथ्य-अपथ्य का पालन आवश्यक है| सैकड़ों दवाये खाकर भी बिना पथ्य सेवन के स्वास्थ्यलाभ नहीं उपलब्ध किया जा सकता| आयुर्वेद ने अस्वस्थता को मनुष्य के गलत खान-पान का ही परिणाम माना है|
गलत खान-पान से हर घर मे कोई-न-कोई प्राणी बीमारी से ग्रस्त होता ही रहता है| यहाँ आप सब की मदत करने हेतु कुछ नुस्के प्रस्तुत किए गए है , कृपया इन्हे पढे और यथासंभव लाभ उठाये-
1. दाद, खाज,खुजली का उपचार-
मुली के बीज पानी मे महीन पीसकर, आगपर खूब गर्म करके दाद,खाज,खुजली के स्थान पर लगाने चाहिए|पहली दिन मे मुली के बीज लगाने से खूब जलन होगी और कष्ट भी होगा, लेकिन ध्यान रहे की दवा जितनी जोरों से लगेगी उतनी ही अधिक लाभ होगा|दूसरे दिन मे भी यही प्रयोग करे|दूसरे दिन लगाने से पहले दिन के अपेक्षा कम कष्ट होगा|इसी प्रकार यह उपचार 3-4 दिन करे, इससे दाद,खाज,खुजली दूर हो जाएगी|
2. नहरुआ का उपचार (Nasal treatment)-
इस रोग को कई नामों से जाना जाता है जैसे- नारू,स्नायुरोग,गिनिवर्गला आदि |नहरुआ एक प्रकार का कृमि(कीड़ा) /various diseases है|इसके बारीक-बारीक अंडे दूषित जल मे रहते है|इस जल को पीने से शरीर मे दोषों की उत्पति हो जाती है|शरीर के जिस भाग मे यह किट skin को छेद कर निकलने का प्रयास करता है, उस स्थान पर सूजन होकर एक श्वेत तन्तु बाहर निकल जाता है|उसी समय यह ज्ञात होता है की यह नहरुआ है|
यह कीड़ा धीरे-धीरे चमड़ी से निकलने की कोशिश करते है |इसे धीरे-धीरे निकालने का ही प्रयास करना चाहिए|इस तन्तु का बीच मे टूट जाने से बहुत पीड़ादायी हो सकता है| अर्थात शरीर के अंदर का तन्तु(various diseases) भाग फिर दूसरे स्थान पर फोड़ उत्पन्न करके निकलने का प्रयास करते है|इससे बड़ा कष्ट होता है|यह बिना टूटे बाहर आ जाता है तो सूजन खत्म होकर रोग भी ठीक हो जाता है| इसके उपचार हेतु निम्न 2 प्रयोग है-
- नहरुआ के फुट निकलने पर एक धतूरे के पत्ते पर थोड़ा गुड़ ,अफीम और रीठा-पानी मे पीसकर लुगदी बनाकर रखे तथा जहा निहरुआ निकला है उस स्थान पर बांध दे | तीन दिन तक बांधा रहने दे| अंदर-ही-अंदर निहरुआ नष्ट हो जाएगा|
- सफेद कलई के चुने( जो पान मे खाया जाता है) के बड़े-बड़े साफ टुकड़े और शुद्ध तिल का तेल( जीतने तेल मे जीतने टुकड़े पिसे जा सके) दोनों को खरल मे डालकर महीन पीस ले, जिससे वह मलहम जैसा बन जाए| दवा जितनी अत्यधिक घोंटी जाएगी, उतनी ही लाभदायक होगी|
दवा लगाने की विधि-
अकरुआ( आकडा) का एक पीला पत्ता लेकर उसपर थोड़ी सी मलहम लगाकर, जहा नहरुआ का मुह हो, वह भी दवा लगा कर उस पत्ते को रखकर ऊपर से आक के 10-12 हरे पत्ते रखकर मजबूती से पट्टी बाँध दे|तीन दिन बाद पट्टी खोल दे|यही पूरी तरह से आराम न हुआ हो तो फिर से ऐसे ही करे और तीसरे दिन खोले | नहरुआ पर पानी न लगने दे| अवश्य लाभ होगा|
3. खूनी बवासीर(रकतर्श) का उपचार-
रसोत एक तोला और कलमी सोरा एक तोला दोनों को पानी मे महीन पीसकर 8-8 आने भर की गोलीय बना ले |एक गोली सुबह तथा एक गोली शाम के समय ठंडे जल के साथ खिला दे|यह दो दिन की दवा है| इससे खून बंद हो जाएगा| यदि आराम न हो तो इसी प्रकार 2 दिन और दवा ले|तेल , खटाई, लाल मिर्च, गुड़ की सेवन न करे|
4. हैजा का उपचार(cholera treatment)-
खस ( सींक या ताजी जड़) तीन माशा, तुलसी के पत्ते(ताजे पत्ते), 10 नग , काली मिर्च 7 नग ( यह एक खुराक है) ये तीन चीज़े लेकर ताजे पानी मे पीसकर कपड़े से छान करके रोगी को इसका पानी पीला दे|स्वाद हेतु थोड़ी शक्कर या नमक भी मिलाया जा सकता है|
5. दमा(श्वासरोग) का उपचार-
खाने का नमक डेढ़ तोला लेकर सोनार की सोना गलाने की कुठाली मे पकवा लिया जाय| पकने पर इसका स्वरूप भष्म जैसा हो जाएगा|उस नमक को बारीक पीस ले|रात्री मे भोजन के उपरांत 2 मुनक्का लेकर उसके बीज निकालकर डेढ़-डेढ़ रती नमक उसमे भर ले और गोली जैसे बना ले|फिर धीरे-धीरे चूसकर दोनों गोलीया खा ले|इसके बाद 4 घंटे तक पानी न पिए|इसी तरह एक एक सप्ताह तक उपचार करते रहने से आवश्यक लाभ होगा|
6. आंवले से महौषधि बनाए-
हरे आंवले का गुदा निकालकर महीन कुटे ,फिर उसके रस को कपड़े से छान कर 10 kg तक एकत्रित करे|इस रस को लोहे की कढ़ाई मे अग्नि पर इतना पकाये की हलुए के समान गढ़ा हो जाए|फिर उसमे 2 kg घी डालकर इतना भुने की लाल हो जाए| उसके बाद अलग से 5 लीटर दूध औटाकर उसमे इच्छानुसार शक्कर व बादाम गिरी (बारीक टुकड़े) डालकर इसको आंवले के रस मे मिलाकर अग्नि पर पुनः रखकर इतना भुने की गढ़ा होकर लड्डू बनाया जा सके|बस यह महौषधि तैयार है|
सर्दियों मे रोज सुबह एक तोला गर्म दूध के साथ और गर्मियों मे ठंडी दूध के साथ इन लड्डुओ का सेवन करे|इसके उपयोग से सफेद बाल काले हो जाते है|कमजोर शरीर पुष्ट होता है|वीर्य संबंधी सभी रोग नष्ट होकर मनुष्य का शरीर बलिष्ठ हो जाता है|
7. आंवला द्वारा (various diseases)स्वास्थ रक्षा-
आंवला प्रमेह, ज्वर, वमन,प्यास(तृषा), रक्तविकर, पितविकर, अरुचि और अजीर्ण आदिपर प्रयोग किया जाता है|
आंवले के गुण संक्षेप प्रस्तुत है-
- रसायन चूर्ण- आंवला, गिलोयसत्व और गोखरू- इन्हे समान मात्रा मे लेकर चूर्ण बना ले|इस चूर्ण को तीन माशे की मात्रा मे शक्कर के साथ खाने से पित और दाह(जलन) जाती रहती है|
- आंवला(ताना) – का रस आँख मे टपकाने से जाला दूर हो जाता है|
- मेहेदी और सूखा आंवला रात को पानी मे भिगोकर सुबह छानकर वह पानी पीने से पेशाब की जलन दूर हो जाती है|
8. शीघ्र-प्रसूति(सुप्रसव)(Early Delivery)-
आज के वैज्ञानिक युग मे बच्चों का जन्म अधिकांश रूप मे माँ के पेट मे चिरा लगाकर कराया जाना देखा,सुना जा रहा है| यह माँ के खान-पान का नतीजा है|आज की माताएं न तो चक्की पीसना पसंद करती है और न टहलने की शौख रखती है|
यदि delivery होने मे ज्यादा विलंभ हो तो केले की जड़ माता के गले मे बांध दे| यदि बच्चा गर्भ मे ही मर गया है तो आधा या पौन तोला गाय का गोबर गरम पानी मे घोलकर पीला देने से मरा हुआ बच्चा बाहर निकल आता है|
हाथ मे चुंबक पत्थर रखने से गर्भिणी को प्रसव पीड़ा नहीं होती है|सवा तोले अमलतास के छिलकों को पानी मे औटाकर और शक्कर मिलाकर पिलाने से प्रसव पीड़ा कम हो जाती है|
तिल और सरसों के तेल को गर्म करके गर्भिणी के पीठ, पसली आदि अंगों पर धीरे-धीरे मलने से delivery शीघ्र हो जाता है|फूल न आए हो ऐसे इमली के छोटे वृक्ष की जड़ को प्रसूति के सिर के सामने बालों मे बाँध देना चाहिए|ऐसा करने से बिना तकलीफ का आसानी से प्रसव होता है| परंतु प्रसव होने के बाद उन बालों को तुरंत कैची से काट देना चाहिए|यह प्रयोग परीक्षित है|