Aarogya Anka

आयुर्वेद दुनिया का प्राचीनतम चिकित्सा प्रणाली है Ιऐसा माना जाता है की बाद मे विकसित हुई अन्य चिकित्सा पद्धतियों मे इसी से प्रेरणा ली गई है Ιकिसी भी बीमारी को जड़ से खत्म करने के खासियत के कारण आज अधिकांश लोग आयुर्वेद के तरफ जा रहे हैΙइस लेख मे हम आयुर्वेद चिकित्सा से जुड़ी हर एक रोग और उसके इलाज के बारे मे बताएंगे Ιआयुर्वेद चिकित्सा के साथ सभी प्रकार के जड़ी -बूटी के बारे मे तथा आयुर्वेद के 8 प्रकारों से हर तरह के रोगों के इलाज के बारे मे बताया गया हैΙ सभी पोस्टों को पढे ओर जानकारी अवश्य ले ताकि आप भी अपना जीवन आरोग्य के साथ healthy बना सके| thanks . 

marichyadi vati(मरिच्यादि वटी) or makardhvaj vati (मकरध्वज वटी) के मात्रा व उपयोग

सबसे पहले हम जानते हाई गुटिका/वटी क्या होता है और इसको कैसे तैयार करते है-

~गुटिका या वटी-

ओषधियों को कूट पीस कर व कपड़छान करके शहद, गुड़, खाण्ड, आदि की चाशनी में मिलाकर अथवा ओषधियों को पानी, स्वरस अथवा क्वाथ आदि में पीस कर अथवा पाक करके जो गोलियाँ बनायी जाती है, उनको ही गुटिका/वटी (गोलियाँ) कहा जाता है। गालियों को हाथ से बनाने पर वे छोटी-बड़ी भी बन सकती है यानी ठीक आकर (साइज) की नहीं बन पाती है। गोलियाँ मशीन द्वारा बनाने पर एक निश्चित साइज की बनती है। ऐसा करना ही अच्छा है।

यदि गोलियों को धूप में सुखाने के लिए निर्देश दिया गया हो तो ही धूप में सुखाना चाहिए अन्यथा गोलियों को छाया में ही सुखाना चाहिए। क्योंकि धूप और छाया के प्रभाव से भी ओषधियों के गुण में अन्तर पड़ता है। आजकल ओषधियों को सुखाने के लिए बाजार में बिजली की “शोषण मञ्जूषिका” (Electrical Dry Chamber) उपलब्ध है। इनका प्रयोग छोटी-बड़ी समस्त रसायन शालाओं में किया

जा रहा है। इनमें एक निश्चित तापमान पर ओषधियों, गोलियों और चक्रिकाओं (टेबलेट) के लिए बनाये गये दानें (मैन्यूल्स Granules) आदि को सब मो में दर्द-गुबार, वर्षा आदि विघ्नोरहित बड़ी ही सुविधापूर्वक * स्वादिष्ट, पाचक ( सुखाया जा सकता है। हाजमा करने वाली) गोलियों का सेवन भोजनोपराना दिन में 2 बार तथा रोगनाशक/रोगनाश हेतु गोलियों का सेवन दिन में 2 बार (सुबह-शाम) रोगानुसार किसी उचित अनुपान के साथ करना चाहिए। 

जिन वटियों में कुचला अथवा अफीम हो उनकी मात्रा/खुराक (डोज Dosage) । गोली से अधिक नहीं होनी चाहिए। स्वादिष्ट/जायकेदार व पाचक (डायजेस्टिव) गोलियाँ बिना अनुपान के भी मुख में रखकर चूस कर प्रयोग की जा सकती है। मात्रा जितनी लिखी हो, उससे कम अधिक करने से हानि भी हो सकती है। कम खाने से गुण नहीं करती है और अधिक खाने से शरीर में लाभ के बदले हानि पहुँचाती है। बच्चों को आयु के अनुसार उचित मात्रा में ही ओषधि सेवन करानी चाहिए।

*गोलियों/ वटियों पर work चढ़ाना-

गुटिका/vati)

यदि गोलियों पर वर्क (सोना-चाँदी के) चढ़ाने हो तो पहले उन्हें मुगलई बेदाना के लुआब से भली प्रकार तर कर लें, फिर उन पर सोने या चाँदी के (जैसी आवश्यकता हो) वर्क डालकर हाथ से मल दें और चीनी मिट्टी के चौड़े मुख वाले बर्तन में डालकर तेजी के साथ उस पात्र को गोल कायदे में तेजी के समान चारों और घुमाना चाहिए। 

इस क्रिया से गोलियाँ सुन्दर बन जाती हैं। इस कार्य को “कोटिंग पैन” (Coating Pan) यन्त्र द्वारा सरलता तथा उत्तमता पूर्वक किया जा सकता है। इस यन्त्र से चीनी का स्तर (शुगर कोटिंग Sugar Coating) भी किया जाता है।

गोली सेवन करते समय गोलियों को बारीक पीस कर अनुपान के साथ मिलाकर सेवन किया जाये तो जल्द ही प्रभाव होता है। कठिन कठोर गोलियों को बिना पीसें कदापि नहीं खाना चाहिए। (अन्यथा कभी-कभी ये गोलियाँ ज्यों की त्यों (पेट के भीतर बिना घुले ही) दस्त के साथ बाहर निकल आती है। जिन ओषधियों के योगों में अथवा उनके निर्माण के समय दी जाने वाली भावनाओं में कोई लसदार/चेपदार द्रव्य नहीं होता है, उनकी गोलियाँ बनाना कठिन होता है।

 किसी-किसी ओषधि की गोली तो बिल्कुल बन ही नहीं पाती है। ऐसी ओषधियों के योग के कुल वजन से 25वां अथवा 30वां भाग शुद्ध बबूल के गोंद का चूर्ण (Gum Accacia Powder गम एकेशिया पाउडर) मिला दिया जाये तो उनमें लस उत्पन्न होकर गोलियाँ बनायी जा सकती है।

वर्तमान समय में गोली बनाने की प्रक्रिया में परिवर्तन होकर काफी सुधार हो चुके हैं। जिन ओषध द्रव्यों की गोलियाँ खाने/सेवन करने में खराब जायके की अथवा खराब गन्धयुक्त होती हैं, उन पर चीनी (शुगर) का स्तर शुगर कोटिंग (Sugar Coating) करके स्वादिष्ट बना दिया जाता है।

आइए अब जानते है मरिचयादी वटी को कैसे तैयार किया जाता है और इसको खाने का मात्रा,अनुपात और उपयोग क्या-क्या और कहा-कहा होता है-

~मरिच्यादि वटी(marichyadi vati)~

~निर्माण विधि-

मरिच्यदि वटी(marichyadi vati)

काली मिर्च और पीपल 1-1 तोला, यवक्षार 6 माशा, अनार का छिलका 2 तोला, तथा पुराना (मसाला रहित) गुड़ 8 तोला लेकर सबसे पहले चूर्ण करने योग्य द्रव्यों का बारीक कपड़छान चूर्ण कर लें। तदुपरान्त गुड़ की चाशनी बनाकर उसमें उपरोक्त द्रव्यों का चूर्ण भली प्रकार मिलाकर, इमामदस्ते में डालकर एक जान होने तक कूटकर 3-3 रत्ती वजन की गोलियाँ बनाकर व सुखाकर सुरक्षित रख लें।

~मात्रा व अनुपान –

marichyadi vati वयस्क रोगियों के लिए-1-1 गोली दिन में 5-6 बार तक मुख में रखकर चूसने हेतु आदेशित करें।

~गुण व उपयोग-

marichyadi vati (मारिच्यादि वटी) -आयुर्वेद जगत में खाँसी नष्ट करने हेतु अत्याधिक प्रसिद्ध है। इसके सेवन से प्रत्येक प्रकार की खाँसी नष्ट हो जाती है। इसके अतिरिक्त इसके प्रयोग से स्वरभंग, गले की खराबी तथा सर्दी जुकाम में भी बहुत ही लाभ होता है। कफ वृद्धि के कारण कभी-कभी रोगी के गले में दर्द होने लग जाता है या गल शुण्डिका (टॉन्सिल) बढ़ जाती है। इसके बढ़ जाने के कारण खाना-पीना तक कष्टकारी हो जाता है। 

क्योंकि गले के भीतर सूजन हो जाती है और श्वास नली (एअरपाइप) कफ से भरी हुई रहती है तथा कभी-कभी तो इस स्थिति में रोगी को ज्वर तक हो जाता है। ऐसी अवस्था में इस (मरिच्यादि) वटी को गर्म जल के साथ रोगी को सेवन कराने से उसका अत्याधिक कल्याण होता है।

~मकरध्वज वटी(makardhvaj vati)~

~निर्माण विधि-

मकरध्वज(makardhvaj vati), कपूर, जायफल, कालीमिर्च, (छिलका साफ की हुई) प्रत्येक 4-4 तोला और कस्तूरी 3 माशा लें। सर्व प्रथम चूर्ण करने योग्य द्रव्यों का बारीक कूटपीस कर कपड़छान चूर्ण कर लें। तदुपरान्त मकरध्वज(makardhvaj vati) को खरल में डालकर सूक्ष्म मर्दन करें। उसके उपरान्त मकरध्वज में काष्ठौषधियों का चूर्ण, कपूर और कस्तूरी मिलाकर जल के साथ मर्दन करके 2-2 रत्ती वजन की गोलियाँ बनाकर तथा छाया में सुखाकर सुरक्षित रख लें।

मकरध्वज वटी(makardhvaj vati )

*विशेष -

यह योग “भैषज्य रत्नावली” में “बहच्चन्द्रोदय-मकरध्वज” के नाम से उल्लिखित है। किन्तु वैद्य समाज में “मकरध्वज वटी” के नाम से ही अधिक विख्यात है। कोई-कोई आयुर्वेद जन इसको “सिद्धमकरध्वज” के नाम से भी व्यवहार करते हैं। इसको पान के रस से मर्दन करके गोली बनाने पर विशेष अच्छी बनती है।

~मात्रा व अनुपान –

वयस्क रोगियों के लिए 1-1 गोली दिन में 2 बार प्रातः-सायं अदरक रस+शहद के साथ अथवा मक्खन, मिश्री, मलाई या गाय के दूध के अनुपान के साथ दें।

~गुण व उपयोग-

रोगानुसार विविध अनुपान भेद से इस वटी का प्रयोग करने से वात, पित्त, कफ एवं त्रिदोष जनित समस्त प्रकार के विकार नष्ट होते हैं। इस ओषधि का विशेष प्रभाव हृदय, मस्तिष्क, वात वाहिनी एवं शुक्रवाहक नाड़ियों पर होता है। अतः समस्त प्रकार के शुक्र (वीर्य) विकार, अधिक मैथुन जन्य अथवा अप्राकृतिक मैथुन जनित इन्द्रिय/लिंग शैथिल्य इस वटी के सेवन करने से शीघ्र ही नष्ट होते हैं। इसके अतिरिक्त प्रमेह, शीघ्रपतन, वीर्य का पतलापन आदि विकार भी नष्ट होते हैं। यह उत्तम पुष्टि कारक, स्तम्भन शक्तिवर्द्धक और नपुंसकता नाशक है। यह शरीर में बल, वीर्य और ओज की वृद्धि करती है।

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