~मानसिक अपंगता ~
मानसिक अपंगता(mental disability) एक प्रकार की व्याधि है, जिसका प्रत्यक्ष संबंध बौद्धिक योग्यता से होता है| मूलतः मानसिक अपंगता कोई रोग नहीं है, बल्कि मानसिक अपंग व्यक्तियों मे मानसिक बौद्धिक योग्यता की कमी रहती है, जो इन्हे समान्य व्यक्तियों से अलग करती है|
मानसिक अपंग(mental disability) व्यक्तियों के मानसिक विकास की गति धीमी होती है| यह विकास भी केवल एक केवल एक निर्धारित सीमातक ही होना संभव रहता है| इसलिए इस प्रकार के व्यक्ति अपने कार्यों को ठीक तरह से करने मे पूर्णतः या आंशिक रूप से असमर्थ रहते है|इन्हे अपना कार्य करने के लिए दूसरों की सहायता एवं मार्गदर्शन की आवश्यकता रहती है| संभव ह की इस कारण इन्हे दूसरों पर निर्भर रहना पड़ सकता है| यह निर्भरता इससे संबंधित रहती है की उनका मानसिक विकास किस सीमातक हुआ है|
जो भी व्यक्ति मानसिक या शारीरिक रूप से अपंग है, वे समाज मे घृणा के पात्र नहीं है| हमे उनके साथ सहृदयतापूर्वक मानवता का व्यवहार करना चाहिए और उनके प्रति सद्भाव रखकर उनमे पुरुषार्थ विकसित कर उन्हे शिक्षित बनाना चाहिए|
सामान्य रूप से कहा जा सकता है की, मानसिक अपंगता एक दशा या स्तिथि है, जो व्यक्ति मे जन्म से रहती है|माता -पिता के जागरूकता मे कमी के कारण शुरू के कुछ महीनों , वर्षों इनका उन्हे पता नहीं चलता, क्योंकि विकसात्मक सोपोनो(development milestones) – का ज्ञान , जानकारी न होने के कारण वे इस ओर ध्यान नहीं दे पाते है| स्कूल मे बालक जब अन्य बालको के समान चल नहीं पाता या व्यवहार सम्बन्धी कोई समस्या उत्पन्न हो जाती है तब इस कमी का पता चलता है|सीमित बुद्धि एवं अपर्याप्त समाजिक व्यवहार इनकी विशेषता होती है|
यदि माता-पिता मे जागरूकता हो तो इनकी पहचान जन्म के पश्चात ही अवलोकन द्वारा की जा सकती है| वर्तमान वैज्ञानिक युग मे मनोवैज्ञानिक शीघ्र ही कम आयु मे इसका पता लगाकर उनका उपचार किया जा सकता है, तथा इनके लिए विभिन्न कार्यक्रम सम्पादित किए जा सकते है|जिससे इन्हे अत्यधिक लाभ मिल सकता है और विकास की संभावनाएं बढ़ जाती है|
अवलोकन के द्वारा निम्न बिन्दुओ को देखा जा सकता है-

- समान उम्र, अपनी ही उम्र के बच्चों के समान कार्य करने मे असमर्थता|
- समाजिक स्तिथि मे समायोजन मे कठिनाई या कमी|
- अपनी शारीरिक आयु के अनुरूप क्रियाएं या व्यवहार ना कर पाना|
- मानसिक विकास की कमी के कारण व्यवहार-संबंधी समस्या, बाधा होना|
- अपने कार्यों को वांच्छित परिपक्वता के स्तर के अनुरूप करने मे असमर्थता |
- अपनी शारीरिक बनावट के कारण सामान्य व्यवहार करने मे सफल न हो पाना| कुछ जटिल बीमारियों के कारण बच्चे का शारीरिक विकास आयु के अनुरूप नहीं हो पाता , जिससे उसकी मानसिक योग्यता भी प्रभावित होती है|
- बच्चे का अतिक्रियाशील होना| अपंगता उसकी क्रियाशीलता की गुणवतापर निर्भर करती है|
मानसिक अपंगता के लक्षण
मानसिक रूप से अपंग व्यक्तियों मे इस प्रकार के लक्षण हो सकते है-
- सीमित बौद्धिक स्तर जिसका पता कार्य करने की प्रवृति से चलता है|
- समाजिक समायोजन मे कमी , असमर्थता|
- शीघ्र ध्यान भंग होना, स्मृति कमजोर होना, धारणा शक्ति एवं कल्पना-शक्ति कम होना, रचनात्मक की कमी, चिंतन असमर्थता|
- सीखने की गति धीमी होना|
- आत्मरक्षा की भवना का अभाव एवं खतरे का पूर्वानुमान न लगा पाना|
- उठना,बैठना,चलना, बोलना आदि क्रियाओ मे अस्वाभाविक रूप से देरी होना|
- संवेगों पर नियंत्रण न होना तथा उन्हे प्रकट न कर पाना|
- मूलभूत आवश्यकताओ- खाना-पीना, टट्टी ,पेशाब आदि को बता न पाना|
- असंगठित व्यक्तित्व|
- शारीरिक दोषों का होना, जो मानसिक विकास को प्रभावित करते है|
इन लक्षणों मे से कोई भी लक्षण दिखने पर बाल रोग चिकित्सक एवं मनोवैज्ञानिक से बच्चे की जांच कराना जरूरी रहता है, जिससे की वास्तविक स्तिथि का मूल्यांकन कर बच्चे के लिए उदीपन कार्यक्रम निर्धारित किया जा सके|इसके माध्यम से उसे स्वतंत्र एवं आत्मनिर्भर बनाने की दिशा मे काम किया जा सकता है|
उपचार-
न केवल विशेष प्रकार के विकलान्ग , बल्कि सभी प्रकार के व्यक्तियों को परामर्श देते समय यह आवश्यक हो जाता है की हम उस व्यक्ति को अच्छी तरह समझे | बिना समझे परामर्श नहीं दिया जाना चाहिए|समान्यरूप से मानव व्यवहार को 2 दृष्टिकोणों से देखा जा सकता है-
- बाह्य अथवा वस्तुगत एवं
- व्यक्ति के स्वयं के दृष्टिकोण से|
1. बाह्य अथवा व्यक्तिगत दृष्टिकोण-
इसमे बाह्य व्यक्ति व्यवहार को देखता है| यह सही भी हो सकता है एवं गलत भी| इसमे बहुत अधिक वैयक्तिक भिन्नताए होती है| व्यक्ति एक प्रकार के उदीपक के प्रति विभिन्न प्रकार से प्रतिक्रियाए करते है|व्यक्ति की आवश्कताएं अहम भूमिका निभाती है|घर ,समाज, शाला की महत्वपूर्ण भूमिकाएं होती है|
2. व्यक्ति के स्वयं के दृष्टिकोण से-
व्यक्ति का आत्म-प्रत्यय अर्थात उसके अपने स्वयं के बारे मे क्या दृष्टिकोण(चित्र) है, उसके व्यवहार को समझने के लिए आवश्यक होता है| समान्यतः हम उसी कार्य को करते है, जो स्वयं के अनुरूप प्रतीत होता है|आत्म- प्रत्यय को वर्तमान समाजिक वास्तविकताओ तादात्म्य रखनेवाला होना चाहिए|
व्यक्ति अपने स्वयं को समझ सके, इसके लिए आवश्यक हो जाता है की हम मदद करे कि व्यक्ति की की विशेषताएं है, उसका व्यवहार अन्य लोगों से किस प्रकार भिन्न है एवं इन सबसे महत्वपूर्ण की उसकी शक्तियों- का अधिकतम एवं एवं कमियों का न्यूनतम उपयोग होनेवाला लक्ष्यों का चुनाव किस प्रकार हो सकता है|
मानसिक अपंगता की पहचान हो जाने के उपरांत बौद्धिक स्तर के अनुरूप कार्य करना आवश्यक हो जाता है| इस कार्य मे मनोवैज्ञानिकों की अहम भूमिका रहती है| यह कार्य घर, समाज एवं शाला स्तर पर किए जा सकते है| यहाँ यह जान लेना भी आवश्यक हो जाता है की जैसे ही माता-पिता को बच्चे के सीमित बौद्धिक स्तर के बारे मे जानकारी प्राप्त हो जाय, तुरंत ही उसके सुधार की दिशा मे प्रयास शुरू कर देना चाहिए|
बुद्धि अनेक प्रकार की योग्यताओ का मिश्रण ,योग होती है|किसी मे कोई योग्यता अधिक मात्रा मे रहती है तो किसी अन्य मे दूसरी योग्यता|
इसलिए बौद्धिक स्तर कम होते हुए भी व्यक्ति अनेक कार्यों को करने मे कुशलता प्राप्त कर सकता है| उसमे संभावनाएं रहती है कुछ करने की , कुछ सीखने की| उचित परीक्षण यह निर्धारित करता है की वह कार्यों को किस सीमातक कर पाएगा| यह सामान्यतः इस वातपर निर्भर करता है| की उसमे किस प्रकार की योग्यता अपेक्षा कृत अधिक मात्रा मे है|
जैसा की पूर्व मे भी बताया गया था कि मानसिक अपंग व्यक्तियों-हेतु कार्य तीन स्तर पर हो सकते है| इनके बारे मे संक्षिप्त जानकारी दिया जाना आवश्यक प्रतीत होता है|
(अ) घर-
- माता-पिता बच्चे की कमी को छिपाए नहीं, बल्कि उस कमी को स्वीकार करते हुए उसे दूर करने का प्रयास करे, क्योंकि छिपाने से कमी दूर नहीं होती |
- माता-पिता उचित प्रक्षीकक्षण द्वारा बच्चे मे सीखने की तत्परता उत्पन्न करने की परेणा देवे| इसके लिए बहुत धैर्य की आवश्यकता होती है|और माता-पिता को घर-बाहर का अन्य कार्य भी करना होता है| प्रशिक्षण मे सबसे अधिक योगदान माता-पिता का ही हो सकता है|
- सुधार,प्रशिक्षण ,उदीपन -कार्यक्रम हेतु प्रयास अपंगता का पता चलते ही शुरू कर देना चाहिए|विश्व मे अनेक ऐसे उदाहरण है, जिनमे मानसिक रूप से अपंग व्यक्तियों ने सफलता के शीघ्र स्थान प्राप्त किए है|
- माता-पिता के लिए बहुत आवश्यक होता है कि वो अपने बच्चे को , वह जैसा भी है, स्वीकार करे जिससे की वह बच्चा भावात्मक एवं संवेगात्मक रूप से स्वयं को सुरक्षित अनुभव करे| वे उनके प्रति घृणा टा दया का भाव जैसा दृष्टिकोण न रखे एवं उनको आत्मनिर्भर बनाने मे सहयोग प्रदान करे|
- माता-पिता बच्चे की कभी भी उपेक्षा न करे, न स्वयं अपने ही कोई हीनता की भावना पनपने दे कि वे इस प्रकार के बच्चे के माता-पिता है| यदि परिवार बच्चे को स्वीकार करता है तो समाज भी उसे स्वीकार करता है| वर्तमान समय मे इस प्रकार के बच्चों के प्रति सकारात्मक अभिवृति से अनेक बच्चों को लाभ मिल रहा है|
- माता-पिता के लिए यह भी आवश्यक है कि वे अपने इस प्रकार के बच्चे की तुलना अन्य समान्य बच्चों से ना करे| कोई भी व्यक्ति अपने आप मे पूर्ण नहीं होता|उसमे अच्छाइयाँ एवं कमियाँ दोनों ही होती है| विवशता है की इन बच्चों मे कमियाँ अपेक्षाकृत अधिक होती है, परंतु इनमे जो अच्छाइयाँ गुण है, उनका पता लगवाकर उन्हे अधिकतम सीमा तक सीखाने का प्रयास किया जाना चाहिए|
(ब) समाज-
समाज के दृष्टिकोण से यह आवश्यक हो जाता है कि वे इन लोगों एवं इनके माता-पिता के प्रति सकारात्मक अभिवृति रखे| जिससे बच्चों को उचित समाजिक वातावरण मिल सके और बच्चे उनकी सीमाओ के अंतर्गत उपलब्ध योग्यता का अधिकतम उपयोग कर आत्मनिर्भर बन सके|
इस प्रकार के बच्चों का समाजीकरण होना अत्यंत आवश्यक होता है| शुरू मे कठिनाइयाँ आने की संभावना रहती है, पर धीरे-धीरे वे उस वातावरण से समायोजित हो जाते है|समाज के सभी सदस्य- विशेष कर पड़ोसी भी ऐसे परिवार के प्रति अच्छा दृष्टिकोण एवं अभिवृति रखे, जिसमे इस प्रकार का बच्चा है|
(स) शालाएं-
वर्तमान समय मे इस प्रकार के बच्चों के प्रशिक्षण हेतु अनेक प्रकार की शासकीय अशासकीय संस्थाएं कार्यरत है, जिनमे बच्चों को बहुत लाभ हो रहा है| पर इन सब के बाद भी इन बच्चों के विकास मे माता-पिता परिवार की अत्यंत ही महत्वपूर्ण भूमिका रहती है|क्योंकि वह बच्चा उनमे से एक है|
चिकित्सकों को भी चाहिए की वे माता-पिता को अंधकार मे न रखकर आशावादी तरीके से वास्तविक जानकारी दे दें| ऐसे मे चिकित्सकों को एक अच्छे परामर्श दाता की भूमिका का निर्वाह करना चाहिए|
यह बहुत ही महत्वपूर्ण है की इस प्रकार के बच्चे के उदीपन , प्रशिक्षण-कार्यक्रम , बच्चे की वास्तविक आयु और मानसिक आयु को ध्यान मे रखकर बनाए जाए| सीखना धीरे-धीरे सरल कठिन की ओर सरल चरणों होना चाहिए| ऐसा लक्ष्य निर्धारित जिसे प्राप्त करने की संभावना हो| सीखने के लिए संवेगात्मक सुरक्षा, स्वतंत्रता , आत्मसम्मान, आत्मविश्वास और समान व्यवहार(casual) -द्वारा प्रेरणा देनी चाहिए|
मानसिक अपंग(mental disability) व्यक्तियों के उतस्थान मे हर कदम पर चिकित्सकों एवं मनोवैज्ञानिक की अपनी भूमिका है, पर इन सबसे महत्वपूर्ण भूमिका माता-पिता एवं परिवार सदस्यों की है; क्योंकि वह उनका अपना बच्चा है|