Sujok therapy(सूजोक चिकित्सा पद्धति) क्या है?
‘(Sujok therapy)सुजोक-चिकित्सा’ एक्यूप्रेशर(Acupressure)-एक्यूपंक्चर-चिकित्सा पद्धतिपर ही आधारित है। ‘सुजोक‘ कोरियन भाषाका शब्द है, कोरियाकी भाषामें ‘सु’ का अर्थ है हाथ और ‘जोक‘ का अर्थ है पैर। हमारे हाथ एवं पैरोंके अङ्गोंकी बनावटमें हमारे शरीरकी बनावटसे काफी समानता है|

अतः हाथ तथा पैरके सूक्ष्म विन्दुओंका ज्ञान प्राप्त करके रोगोंकी चिकित्सा की जा सकती है। हमारे शरीरमें छः भाग हैं-
सिर, धड़, दो हाथ तथा दो पैर। ऐसे ही हाथके पंजेके भी छः भाग हैं-अँगूठा, हथेली तथा चार उँगलियाँ।

कोरियाके डॉ० पार्कने लंबी खोज एवं अनुसंधानके बाद पाया कि ईश्वरने हाथ-पैरके पंजोंमें ही ऐसी मशीन फिट कर रखी है, जिससे आरोग्य प्राप्त किया जा सकता है। इसी आधारपर डॉ० पार्कने इस पद्धतिको प्रस्तुत किया है। यह चिकित्सा पद्धति एक्यूप्रेशर-एक्यूपंक्चर चिकित्सा पद्धतिकी ही एडवांस टेक्नालॉजी है।
एक्यूप्रेशर(Acupressure) – एक्यूपंक्चर-पद्धतिमें सम्पूर्ण शरीरके विन्दुओंपर दबाव एवं सूई लगाकर उपचार किया जाता है। जबकि ‘सुजोक पद्धति‘ में हाथके पंजेके विन्दुओं एवं पैरके विन्दुओंपर उपचार किया जाता है। इतना ही नहीं हाथकी एक उँगली और उसके एक पोरपर भी उपचार किया जा सकता है। उपचार भी इतना सरल कि यदि रोगी छोटी सूई भी नहीं लगाना चाहता तो केवल गेहूँके दाने बराबर मेगनेट, सीड एवं कलर लगाकर ही उपचार किया जा सकता है। एवं रिजल्ट भी बहुत फास्ट है।
सुजोक पद्धतिमें जन्मसे हुई बीमारियोंके लिये विशेष रूपसे जो व्यवस्था की गयी है वह है जन्मके दिनाङ्क एवं समयके आधारपर। जैसे ज्योतिषमें कुण्डली तैयार की जाती है वैसे ही इसमें जन्म समय आदिको ध्यानमें रखकर स्वास्थ्य-कुण्डली बनायी जाती है। जन्मके समय कौन-सी ऊर्जा प्रवाहित हो रही थी, अब कौन-सी ऊर्जा प्रवाहित हो रही है, यह जानकर उपचार किया जाता है। पञ्चतत्त्वोंका भी संतुलन बनाया जाता है, चक्रोंको भी संतुलित किया जाता है।
हमारा शरीर पञ्चतत्त्वोंसे बना हुआ है और मृत्युके उपरान्त इन्हीं पञ्ज्ञतत्वोंमें विलीन हो जाता है यह हम सभी जानते हैं। इन्हों पक्षतत्वोंमें असंतुलन हो जानेपर शरीर रोगग्रस्त हो जाता है। मोटे तौरपर रोगी के लक्षणों एवं हाथको रेखाएँ हो देखकर पञ्चतत्त्वोंकी जानकारी मिल जाती है। इसे वैज्ञानिक रूपसे परीक्षण करने हेतु हाथकी उँगलियोंमें ऊर्जा-बिन्दुओंको चैक कर बताया जा सकता है कि कौन-सा तत्व कम ज्यादा एवं कौन-सी ऊर्जा कम-ज्यादा है, उसके अनुसार वर्तमान एवं भविष्यमें आनेवाली बीमारियोंका इलाज किया जाता है। इसे पञ्चतत्त्व-उपचार या मेटाफिजिकल ट्रीटमेन्ट कहा जाता है।
इस चिकित्सा पद्धतिकी यह विशेषता है कि इसमें न ही कोई दवा लेनी पड़ती है और न ही कोई साइड इफेक्ट होता है। इस चिकित्सा पद्धतिका किसी चिकित्सा पद्धतिम्ले विरोध नहीं है, कोई भी चिकित्सा चलते हुए इस पद्धतिसे इलाज किया जा सकता है।
आजके व्यस्ततम समयमें हम अपने स्वास्थ्यपर ध्यान नहीं दे पाते। हमारा जीवनयापन, रहन-सहन, खान-पान सभी कुछ प्रकृतिके विपरीत हो गया है। आम आदमी जिंदगीकी आपाधापीमें मानसिक तनावसे ग्रस्त रहता है, जिसके कारण वह रोगग्रस्त हो जाता है। अतः हमें अपने स्वास्थ्यके प्रति विशेष सचेष्ट रहनेकी आवश्यकता है, यदि हमें अपना जीवन सुखमय बनाना है तो अपने खान-पान, रहन-सहन, आचार-विचार तथा दैनन्दिन-चर्याकी उपेक्षा न कर उसे नियमित और संतुलित बनाना होगा।
Sujok therapy:सूजोक चिकित्सा:
भारतके ऋषि-मुनि आजसे हजारों-हजार वर्ष पहले बहुत तरहकी प्राकृतिक चिकित्सा किया करते थे, पर उनमेंसे बहुत-सी चिकित्सा पद्धतियाँ लुप्त हो गयीं। उन लुप्त हुई चिकित्सा पद्धतियोंमें एक सुजोक चिकित्सा भी थी, जिसकी खोज आज दक्षिण कोरियाके डॉ० पार्क जे०वु० ने की है। इस चिकित्सा पद्धतिका नाम डॉ० पार्कने सुजोक पद्धति रखा।
इसकी खोज आजसे करीब 13 साल पहले हुई। भारतमें इस चिकित्साको आये करीब आठ साल ही हुआ है। सुजोक यह कोरियाई शब्द है। सु का मतलब है हथेली तथा जोकका मतलब है पगथली। इस पद्धतिकी यह विशेषता है कि सिर्फ हथेली एवं पगथलीद्वारा ही पूरे शरीरकी चिकित्सा की जा सकती है। पूरी हथेलीमें ही पूरे शरीरके स्विच बोर्ड स्थित हैं एवं उनके द्वारा पूरे

Sujok therapy

शरीरको चिकित्सा की जा सकती है। यह पद्धति बहुत ही सरल है एवं हर कोई इसे सीख सकता है। इसे सीखनेमें समय भी ज्यादा नहीं लगता।
इसके द्वारा चिकित्सा तीन तरहसे की जा सकती है-
(1) सूई चुभोकर
(2) छोटे-छोटे चुम्बक लगाकर एवं
(3) मेथी एवं गेहूँके दाने लगाकर।
इस चिकित्सा पद्धतिद्वारा शरीरके किसी भी प्रकारके दर्दसे तुरंत राहत मिल जाती है।
अनेक असाध्य बीमारियाँ भी इस पद्धतिसे इलाज करके दूर की जा सकती हैं यथा-
(1) हृदय रोग
(2) घुटनेका दर्द,
(3) एड़ीका दर्द,
(4) कमर एवं पीठका दर्द,
(5) सिरका दर्द,
(6) हाथका दर्द,
(7) साइटिका रोग,
(8) लकवा रोग तथा
(9) फेफड़े सम्बन्धी रोग इत्यादि।
अनेक निःशुल्क शिविरोंमें आयोजन करके यह अनुभव किया गया है कि अभी प्रचलित वैकल्पिक चिकित्साके क्षेत्रमें यह पद्धति विशेष सफल हो रही है।
इस चिकित्सा पद्धतिमें यह मान्यता है कि शरीरमें खूनका दौरा सही प्रकारसे चलना चाहिये। यदि
कहीं रुकावट आती है तो वहीं रोग पैदा हो जाता है एवं उस रुकावटको दूर करते ही रोगी फिरसे स्वस्थ हो जाता है।
शरीरमें कुल बारह प्रकारके अवयव कार्य करते हैं एवं उनकी कार्य प्रणालीमें असंतुलन पैदा होते ही बीमारी शुरू हो जाती है। इस पद्धतिद्वारा उस असंतुलनको संतुलित करनेसे बीमारी दूर हो जाती है एवं रोगी राहत पा जाता है।
वे 12 अवयव इस प्रकार है-
(1) फेफड़े, (2) मस्तिष्क, (3) हृदय, (4) जिगर, (5) तिल्ली, (6) गुर्दे, (7) छोटी आँत, (8) रीढ़की हड्डी, (9) बड़ी आँत, (10) जठर, (11) पित्ताशय एवं (12) मूत्रकी थैली।
इस चिकित्सा पद्धतिमें समय भी ज्यादा नहीं लगता है एवं रोगी बहुत जल्दी अपने रोगको दूर करनेमें समर्थ हो जाता है।
मेथी एवं गेहूँको माइक्रो-सर्जरी टेपद्वारा हथेली तथा पगथलीमें लगाकर दबाया जाता है, ताकि खूनके संचारणमें जो असंतुलन हुआ है, वह वापस संतुलित हो जाय।